खामोश दीवारें......
खामोश दीवारें कब बोलेंगी
चार दीवारी का भेद कब खोलेंगी
क्या दीवारों के सिर्फ कान होते हैं
होती नही आँखें
क्यों ये मूक होकर देखती रहती हैं
सिसकियों और चीखों को सुनती हैं बस
अपने पहलू में क्या कुछ होने देती हैं
छत को बचाने के लिए नही
बोलती ये दीवारें
रिसता पानी दीवारों से कुछ बयां तो करता है
पर खुलकर कुछ नही बताती ये दीवारें खामोश खड़ी ये दीवारें
और जब साहस करके कुछ बोलती हैं तो टूट कर बिखर जाती हैं ये दीवारें
संगीता माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
खामोश दीवारें ,silent walls, khamosh divare
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Sach m divaro k kan hote h
ReplyDeleteBahut sundar lika hai👍
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