ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं,These lamps burn themselves

 जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो  दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास  भर दे

ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं

जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।

  मिट जाए, हर मन की त्रास
  रिश्तों में हो भरी मिठास
  अपने कर्मों का हो एहसास
  ये दीये तो ख़ुद  ही जल उठते हैं।

  ईश्वर में हर पल हो आस्था,
  सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
  अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
  ये दीये  तो ख़ुद ही जल उठते हैं।

  परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
  बड़ो को मिलता हो सम्मान
  मिट जाए जग से अज्ञान
   ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
              संगीता दरक
        सर्वाधिकार सुरक्षित
                 

4 comments:

  1. वाह , अति सुंदर सृजन परंपराओं के दिये सदैव जलते रहेंगे

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