जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास भर दे
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं
जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
मिट जाए, हर मन की त्रास
रिश्तों में हो भरी मिठास
अपने कर्मों का हो एहसास
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
ईश्वर में हर पल हो आस्था,
सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
बड़ो को मिलता हो सम्मान
मिट जाए जग से अज्ञान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
वाह , अति सुंदर सृजन परंपराओं के दिये सदैव जलते रहेंगे
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteBahut sunder
Deleteबहुत सुंदर व सही
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