मेरे गाँव की मिट्टी,soil of my village

भारत गाँवो में बसता है ,लेकिन आधुनिकरण ने गाँव की वो पुरानी रौनक की जगह नयापन दे दिया है लेकिन आज भी मन करता है कि मेरा गाँव ,गाँव ही रहे बस दोस्तों इसी विषय पर पढ़िये मेरी रचना .....

मेरे गाँव की मिट्टी
मेरा गाँव, गाँव ही रहे तो अच्छा है
गाँव का हर बच्चा बच्चा ही रहे तो अच्छा है
सुख मिले ,सुकून मिले सुविधाये भी सारी हो
सब अपने हो और प्यारी सी फुलवारी हो
आधुनिकता की आड़ में कपड़े बदन के कम न हो
और आज भी जब लड़की अकेली हो ,राहों में तो गम न हो
नीम की ठंडी छाँव हो न हो, अपनों का घना साया हो
घर में आँगन हो ,बैठे अपने सारे  ख़ुशी और गम की बातें हो
सब पास हो  न हो, पर दिलो की दुरियाँ ना हो
कच्चे मकान हो पर रिश्ते पक्के हो
आज भी चौराहों पर देश की बातें हो
पास में कुछ हलचल होतो सबकी सब पर नजर हो
रफ़्तार से दौड़ती सड़कें हो पर, ले जाये मंजिलो की और
शहर सी भागदौड़ हो पर सुस्ताने को बरगद की छाँव हो 
  शिक्षा चाहै हो अंग्रेजी की पर नैतिकता की बाते  हो
शहर सी चकाचोंध हो पर गाँव की रौनक कम न हो
मेरे गाँव को गाँव ही रहने दो क्यों कि आज भी
मेरे गाँव में सुकून बसता है!

         संगीता माहेश्वरी दरक
            सर्वाधिकार सुरक्षित

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