आम आदमी हूँ मैं

सबसे सरल और सीधा लेकिन मुश्किलों भरा जीवन जीने वाला आम इंसान ।
लेकिन उसे  अपने आप को हरेक परिस्तिथियों में खुश रखना आता है यही सब मेरी रचना में पढ़िये.....

         आम आदमी हूँ
जानता हूँ, जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती हैं।
जीएसटी और नोटबंदी को
त्यौहार सा मना लेता हूँ।
दिये हो तो रोशन कर देता हूँ
वरना ,अंधेरों से काम चला लेता हूँ।  आम आदमी हूँ,ख्वाहिशें
बेचकर गुजारा कर लेता हूँ।
उलझता नहीं मैं अच्छे दिनों की
प्यास में।
जानता हूँ, बरसो बैठा रहा
मेरा राम भी इसी आस  में ।
काले और सफेद(धन)
के चक्कर में नहीं पड़ता ,
मिट्टी में सोना उगाना जानता हूँ।  
जानता नहीं मैं, राजनीति के
दाँव पेच लेकिन 56 इंच का
सीना लिए पहरेदारी करता हूँ
सीमा पर ।
आम आदमी हूँ साहब जीना जानता हूँ
आता है मुझे, अपनी ख्वाहिशों
पर पैबंद लगाना ।
देता हूँ बच्चों को आसमाँ उड़ने के
लिए पर , बंदिशें आरक्षण
की भी जानता हूँ।
सामान्य सी मुस्कान लिए आरक्षण
का दर्द भी झेल जाता हूँ।
हँसता हूँ हर पल जिंदगी जी लेता हूँ। जानता हूँ , जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती है मुझे !!!
               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                     सर्वाधिकार सुरक्षित

1 comment:

  1. लाज़वाब हुनर है जी आपके पास🙏👌🙏

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