पत्थर हूँ मैं
तराशते रहना तुम,पत्थर हूँ मैं ।
ढल जाऊँगी एक दिन ,तुम ढालते रहना ।।
रच देना कोई रूप ,
एक दिन रचनाकार हो तुम ।
पत्थऱ हूँ मैं ,तुम तराशते रहना ।
दे दोगे कोईआकार,तो सवँर जाऊँगी ।
वरना सबकी ठोकरे ही खाऊँगी ।
तुम झरते नीर से बहते रहना ।
देखना पत्थऱ दिल से ,
मैं भी नर्म हो जाऊँगी।
किसी की राह का रोड़ा नही बनना मुझे ।
बना सको तो ,किसी मंदिर की सीढ़ी बना देना ।
कदम पड़े मुझ पर ,जो ईश्वर दर्श को जाये ।
पत्थर हूँ मैं ,तुम तराशते रहना ।
किसी थके राहगीर की सफर का आश्रय बन जाऊँ मैं ।
या बन जाऊँ नींव का पत्थर ।।
हाँ पत्थर हूँ मै ,तुम तराशते रहना!
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
या बन जाऊँ नींव का पत्थर ।।
हाँ पत्थर हूँ मै ,तुम तराशते रहना!
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
बेहद उम्दा रचना।
ReplyDeleteजिस तरह आप शब्दों को तराशती हो, अद्भुत
ReplyDeleteVry nice
ReplyDeleteVry nice
ReplyDeleteBadhiya
ReplyDeleteबहुत खूब 👌
ReplyDelete