आदमी हूँ मैं , i am human


मेरी रचना का विषय है "आदमी हूँ मैं" हम इंसान भी अपने आप से प्रतिस्पर्धा करः रहे है पढ़िये ......

   आदमी हूँ मैं
आदमी हूँ आदमी की तरह
सोचता हूँ ।
दौड़ में आगे निकलने के लिए,
अपने आप को पीछे धकेलता हूँ।।
कभी अपनी परछाई ,
पाने के लिएअपने आप को
मिटाता हूँ
कभी जीने के लिए ,
अपनी ही साँसों को छिनता हूँ।।
गम को सहने के लिए ,
अपनी ही हँसी को तोड़ता हूँ।।
आदमी हूँ हर वक्त ऊपर उठने
  की  सोचता हूँ।।

     ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित
                  

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