बात का बतंगड़ !
क्या सच में बनता है बात का बतंगड़
और राई का पहाड़
क्या सच में बात बिगड़ती सँवरती है
बात- बात होती है क्या हर बात
में जज्बात होते हैं
या होता है शब्दो का गुच्छा
जो कभी उलझा देता है तो कभी सुलझा देता है
क्या सच में बाते कड़वी और मीठी होती है
होता है इनमें स्वाद,
कहते है हम तोल कर बोल, तो
क्या सच मे इन बातों का होता है कुछ मोल
क्या सच में बात करने से जी हल्का हो जाता है
मन मे रोष हो या हर्ष बात करने से होता है व्यक्त
कहते है कि
"बात निकली है तो दूर तलक जायेगी
सच मे बात निकली है तो दूर तलक जायेगी
पर किसी को ज़ख्म तो किसी को मरहम दे जायेगी
कही अनकही बाते मतलब बेमतलब की बाते
तेरी ,मेरी, इसकी,उसकी, बेहिसाब बाते
कभी चुप्पी साधे ,तो करती कभी शोर ये बाते
ये बाते चारो और बिखरी हुई
जिंदगी चलती इनके इर्दगिर्द
सच मे ये बाते........
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
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