ये कैसी जिंदगी , life,

मैंने ऐसे कई व्यक्ति देखे जिनकी नजर में जिंदगी की परिभाषा कुछ और ही है उसी पर मैंरे मन के विचार

     ये कैसी जिंदगी
उनके विचारों के प्रतिबिंब में , 
     जिंदगी की झलक नहीं दिखती

सोचती हूँ ,कैसे होंगे उनके
विचार  
कैसा होगा उनका आचार
जो आम जिंदगी में ,
नहीं पाया जाता
          
क्या इतने उच्च विचार है,
उनके जहाँ जिंदगी का निशा
तक नहीं 
या हम जीते हैं वो जिंदगी नहीं
  
 उनकी नजरों में क्या है जिंदगी   
लेकिन कभी सोचती हूँ ,
वे केवल सोचते हैं
उनके विचार में है जिंदगी              
सांसों में नहीं  
 
 उनके सपनों में है जिंदगी,
बातों में नही ।
उनके विचारों के प्रतिबिंब में
जीवन की झलक नहीं मिलती
                    संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित
 

ये रिश्तों की बगिया,garden of relationships.,


      ये रिश्तों की बगिया........

ये रिश्तों की बगिया ,यूँ ही नहीं महकती।
मिट्टी सा समर्पण,और बीज सा धैर्य
रखना होता है।
मिलती तो हैं बहार ,पर पतझड़
को भी सहना पड़ता है,
और काँटों तले फूलों सा
खिलना पड़ता है।
ये रिश्तों की बगिया, यूँ ही नही महकती,
पत्तियों और शाख़ की जिम्मेदारी भी निभानी होती है।
कभी मालिक तो कभी माली बनना पड़ता है।
सुखी टहनियों को,अलविदा कहकर
नयी कोपलों की उम्मीद
जगानी पड़ती है।
ये रिश्तों की बगिया यूँ ही नही महकती,
त्याग और विश्वास से इसे
सींचना पड़ता है।।।
              ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

आदमी आदमी ना रहा

    जिस रफ्तार से हम जी रहे है अपने आपको पीछे छोड़ते जा रहे है इसी व्यथा को बंया करः रही मेरी रचना     
 
आदमी आदमी ना रहा
फिरते हैं शब्द भी, अपने अर्थ के लिये
रिश्तों की मिठास, अट्टहास बन गई

उलझा है आदमी ,
शब्दों के जाल मे ऐसे,
सहेजता कुछ नही उड़ेलता है ,बस

हर त्यौहार फीका -फीका सा लगता है
दिखावा ही आदमी की पहचान बन गई
कुदरत ने बदला कुछ नही,
बस हम इंसानों की नियत बदल गई
रिश्तों की जिम्मेदारी
अब आफत बन गई

दिखावा और  बेईमानी
अब शराफत  बन  गई
देखो अपनी संस्कृति को
पश्चिमी   सभ्यता छल गई

आदमी आदमी न रहा
मशीन बन गया
आदमी का काम मशीन
और मशीन का काम आदमी
कर  रहा

देखो कैसे जीने के नाम पर
अपने आपको छल रहा
और राजनीति के नाम पर आज भी देश बंट रहा !
             ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

भ्रूण हत्या 👧female foeticide

  बेटियाँ जब माँ के गर्भ में ही मार दी जाती है तो उसे कन्या भ्रूण  हत्या कहते हैं

 एक बेटी जब माँ के गर्भ में आती है तो वह अपने आप को इस दुनिया में लाने के लिए कहती है ,

मेरे शब्द उसी  व्यथा को  बयां कर रहे हैं 

कैसे एक अजन्मी बेटी अपने माँ पिता और दादा -दादी से अपने जीवन को बचाने के 

और दुनिया में लाने का कहती है  ।    

भ्रूण हत्या (अजन्मी बेटी)

माँ से कहती है
  सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे।
मैं भी आँखों का तारा बनूँगी ,
तुम्हारा मैं भी सहारा बनूँगी।
फिर कहती पिता से, प्रतिबिम्ब हूँ तेरा
यूँ मुझसे नाता न तोड़।
यूँ जीवन देकर मुँह न मोड़ ।
सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा मुझे आकार तो लेने दे।
दादा-दादी से कहती है ,
मैं भी तुम्हारा मान बढ़ाऊँगी।
दादा को मैं भी सोने की सीढ़ी चढ़ाऊँगी।
संस्कार में भी सारे पूरे करूँगी
तुम्हारी ममता का मान में भी रखूँगी
अंश हु तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे
आज जो कहना है ,वह कहने दे
नयी सृष्टि तो मैं ही रचूँगी,फिर क्यों मेरी रचना की होती है विकृति
क्या ? यही है तुम्हारी संस्कृति !!!
                ✍️संगीता दरक
                सर्वाधिकार सुरक्षित

चुनावी बारिश,election rain,

   सोचिये कभी  चुनाव भी बारिश की तरह हो तो ,आनंद लीजिये और पढ़िये मेरी रचना
    
   चुनावी बारिश
चुनाव का मौसम आया
प्रचारों की बारिश लाया ।
देखते है ,बाढ़ आयेगी या अकाल। बूँदेआयेगी या मूसलाधार बारिश ।
बादल सब तरफ काले होते है
पहले कहते है,
फिर सब मुहँ मोड़ लेते है।
देखते है कौन सी बारिश आगी।
इक्कीसवीं सदी का कीचड़ लायेगी ।
जिस पर बिना फिसले
ही हर कोई चल सकेगा।।।
         
            ✍️संगीता दरक "माहेश्वरी"
                 सवार्धिकार सुरक्षित

ख़्वाब ऐसे होते है....dreams are like this,

आज सपनो की बात करते है कैसे बुंनते है हम सपने .....

रात के कैनवास पर जीवन के रंगों से
उकेरी हुई आकृतियाँ ,
होती है ख़्वाब ।
कुछ मन से,कुछ अनमने से ।
लुभावने ख़्वाबों, को
पूरा करने में जुट जाता
ये तन-मन
होते पूरे, जब ख़्वाब
झूम उठता मन
अधूरे ख़्वाब मिटते ,
फिर लेते नया कोई आकार।।
                संगीता दरक माहेश्वरी
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

रफ्तार ऐ जिंदगी, speed a life , Rafter a jindagi


जीवन की भागदौड़ में हम माता पिता को ही भूल रहे है ,हमारे पास उनके लिये समय नही है दोस्तों आप मेरी बात से सहमत है पढ़िये इसी विषय पर मेरी रचना

रफ़्तार ऐ जिंदगी
नजर भर उनको भी,
देख लिया कर,
जिनकी आँखों में तू ही बसा।
हर खबर में तू रहना,
पर उनकी( माँ पिता) भी खबर रखना।

जेहन में अपने, इतनी सी बात रखना।
तेरा रब जो हैं, उसको भी"माँ"ने बनाया।

कोई तेरा इंतजार करे,ऐसी
उम्मीद जगाये रखना।
और देना हो जब
उन्हें कांधा ,तो तू तैयार रहना।

उन सुखी टहनियों पर भी
कभी नरम कोपले,
हुआ करती थी
जिस छाँव पर ,आज
तू इतरा रहा है ,
कभी उसी शाख़ की टहनी
हुआ करता था।
          संगीता दरक माहेश्वरी
          सर्वाधिकार सुरक्षित

यूँ हर बात का हिसाब ,yu her bat ka hisab

यूँ हर बात का...

क्यों कभी कोई अचानक दुनिया को छोड़ने का फैसला कर लेता है ,क्यों लाखो दिलो पर राज करने वाले अपने दिल के राज किसी को बता नही पाते
आज की मेरी ये रचना भी इसी बात को लेकर है....


यूँ हर बात का हिसाब ना लगाया कर
जिंदगी है जी लिया कर

माना कि सफर लंबा है
थोड़ा ठहर भी जाया कर

ख्वाब जो हुए पूरे
खुशियाँ उनकी भी मना लिया कर

अधूरे ख्वाब को ख्वाब समझ
भूल जाया कर

जिंदगी है जी लिया कर

बेशक चेहरे पर चेहरा चढ़ा लिया कर,
पर किसी एक से तो दिल की बात किया कर

माना कि लाखों गम है जिंदगी में
खुशियाँ भी तो हजार हैं
कभी उनको भी समेट लिया कर

जिंदगी है जी लिया कर
जिंदगी है जी लिया कर

         संगीता दरक
        सर्वाधिकार सुरक्षित

#तेरी_रजा_क्या_है#Zindagi

कुछ ख़्वाब कुछ उम्मीदें हैं
तुझसे, जिंदगी
बता तेरी रज़ा क्या है,
हर बात तेरी ही होकर रही तो
जीने के लिये बचा क्या है !

         संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित
      

करः लीजिये ना, थोड़ा एडजस्ट,adjust a bit ,adjustment

☺️"थोड़ा एडजस्ट करः लीजिये "

Adjust बड़ा सहज और सुंदर सा
ये दिखने वाला शब्द कितने ही रिश्तों की नींव का पत्थर बना बैठा है।
इस एडजस्ट के कारण जाने
कितने रिश्ते साँस ले रहे है।
नाम भले ही 6 अक्षर का ,
पर काम बड़े बड़े करः जाता ।
जीवन के हरेक मोड़ पर इस शब्द को सार्थक करना पड़ता है।
और आश्चर्य की बात ये है कि एडजस्ट शब्द हमारे (नारियों) हिस्से कुछ ज्यादा ही आया है।
रिश्ते के हर रूप को सँवारने के लिये, हमें एडजस्टमेन्ट बिठाना ही पड़ता है।
बहुत कम बार ऐसा होता है कि
हमारे लिये कोई और
एडजस्ट करता है।
और हाँ अगर किसी ने हमारे लिये एडजस्ट किया है ।
तो उसका ऋण हम अच्छी तरह से लौटाती है ।
बचपन में ही माँ कह देती है,
बेटी थोड़ा तू ही समझ ले (मतलब समझ जाओ की ये समझना ही एडजस्टमेंट है) थोड़ा एडजस्ट करः ले।
फिर बात  पढाई की हो या हो ख्वाहिशो की फिर वहाँ
भी एडजस्टमेंट ।
और जब रिश्तो को जोड़ने की बारी आती है तो ये "एडजस्ट" हमारे पीछे ही खड़ा होता है।
जैसे ही इसकी जरूरत हुई बीच में आ जाता है ,और नए रिश्ते के साथ इस "एडजस्ट" के पौधे को भी सींचते रहो। कहि कोई रिश्ता टूटने की कगार पर हो तो झट से सब सलाह देने लगते है, कि किसी एक को तो एडजस्ट करना चाहिए।
और एडजस्ट करते -करते हम तो ऐसे आदी हो जाते है, कि हमारा एडजस्टमेन्ट एक तरह का "कम्पोस्ट" बन जाता है।
जब रिश्तो में कुछ तकरार हुई, और रिश्ता मुरझाने लगा तो, हमने एडजस्टमेंट की कम्पोस्ट उसमे डाल दी। हो गया फिर  से रिश्ता हरा भरा
रिश्तों की बात हो या खाने पीने की आज जरा "एडजस्ट" करः लीजिये ।
कभी सैलेरी हाथ में  कम आती हो तो सहसा मुँह से निकल ही जाता है कि अबकी बार तो "एडजस्ट" करना पड़ेगा
और हम मिडिल क्लास के लोगो के लिये तो "एडजस्टमेंट" एक एंटीबायोटिक की तरह है ,
अपने सपनो और ख्वाहिशो के पूरे ना होने पर उनके रिएक्शन से ये एंटीबायोटिक एडजस्टमेंट ही हमे बचाता है।
सफर करते वक्त आपको टिकना होतो, आप कह देते है थोड़ा एडजस्ट करः लीजिये।
आपने तो कह दिया पर अब बैठा हुआ हर व्यक्ति थोड़ी -थोड़ी जगह आपके लिये बनायेगा,
और आखिरी किनारे पर जो व्यक्ति बैठा है एडजस्ट का सब बोझ उस पर आएगा ।
आप चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिये, बैठ जायेंगे ।
ये जीवन भी ऐसा ही है कोई थोड़ा एडजस्ट करने को राजी हुआ तो दूसरे चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती हैं ,
बस हमे ये ध्यान रखना है कि एडजस्ट का भी अपना एक लिमिट होता है, करने वाला व्यक्ति कहि इसके बोझ को बर्दाश्त न करः पाए और या तो रिश्ते बिखर जायेंगे या वो खुद बिखर जायेगा ।
यदि a d j u s t को हम इस तरह अलग अलग आपस में बाँट ले तो कोई एक इसके बोझ तले नही रहेगा।
जीवन सहज और सुखद हो जायेगा।
             संगीता दरक ©
    

मैं नारी,i woman, M naari

                 मैं नारी
मैं और तुम शक्ति का प्रतिबिंब है,
रिश्तों का हर छोर बंधा हमसे
हमसे ममता हमसे प्यार, दुलार
हाँ,प्रकृति में  हमसे ही है प्यार
घर संसार हमसे ही तो बसा
हाँ हमने ही तो संसार रचा
रिश्तों के हर रूप को हमने
ही तो सवाँरा है
हरेक रिश्तों में  हमने ही तो
रंग बिखेरा है
यूँ तो हर दिन पर हमारा राज है
पर आज कुछ  खास है
चाँद और मंगल पर भी घर नही बस सकता
हमारे बिना फिर earth की तो क्या बात है

      ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
            सर्वाधिकार सुरक्षित

हाँ मैने जीना सीख लिया,yes i learned to live,हाँ मैंने जीना सीख लिया

  सादर नमन
मेरी ये रचना आपमें नयी ऊर्जा का संचार करः देगी
और आप कह उठेगी की
हाँ मेने जीना सीख लिया

हाँ मेने जीना सीख लिया
कुछ मन को समझाया,   
कुछ मैंने समझ लिया ।  
बैरंग तस्वीरों में,
रंग भरना सीख लिया ।
हाँ,मैंने जीना सीख लिया   
सपनों के पीछे भागना,
मैंने छोड़ दिया 
अपने आपको हकीकत
से जोड़ दिया ।
निकली थी जिन राहों पर
पाने को मंजिल
उन राहों पर फिर से
चलना सीख लिया।         
हाँ,मैंने जीना सीख लिया ।  
गम को उलझाना ,
और खुशियों को सुलझाना ,
खामोशी से हर बात,
अपनी कह जाना सीख लिया ।
हाँ मैंने जीना सीख लिया। 
जिंदगी के मेंले में मिले हजारों,
लेकिन मैंने अपने आप से
मिलना सीख लिया ।
कोई मुझे समझ ना पाया पर मैंने ,सबको समझ लिया।
हाँ मैंने सबको समझ लिया।
गम के मोतियों को खुशियों की
माला में पिरोना सीख लिया ।
 हाँ मैंने जीना सीख लिया।
हाथों की लकीरों को मैंने
पढ़ना सीख लिया ।    
तकदीर से आगे बढ़ना सीख लिया।
तकदीर से आगे बढ़ना सीख लिया ।
हाँ मैंने जीना सीख लिया!
हाँ मैंने जीना सीख लिया!!

           संगीता दरक माहेश्वरी
              सर्वाधिकार सुरक्षित

              

जाने किस पशोपेश में

हम रिश्तो को सींचते है उसकी देखरेख करते है कि वो बड़ा होकर हमारा सहारा बनेगा ,हमारे सपनो को वो पूरा करेगा

  जाने किस पशोपेश में
बोया मिट्टी में बीज,
फल की आस में ।
बीज बना पौधा ,
उसकी देख-रेख में ।
पौधा बना पेड़,
छायादार लेकिन ।
भूल गया मुझको,
जाने किस पशोपेश में !!!!
           संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

सृष्टि सृजन को है तैयार the world is ready to be created


Hello दोस्तों  अभी बरसात का मौसम है और इसी मौसम में प्रकृति सृजन या निर्माण करती है बारिश धरती माँ को भिगोती है 

और मिट्टी में बीज  समाकर सृजन करते है आनंद लीजिये मेरे शब्दों के साथ 

     सृष्टि सृजन को है तैयार

सृष्टि सृजन  को है तैयार,
मेघ बरसे मिट्टी को भिगोकर ,हुए आनंदित
बीज मिट्टी की गोद में समाया,
सूरज की किरणों ने आकर
उसको जगाया।
आती जाती धूप सहलाती,
नन्हा बीज मिट्टी से झाँकता ।
उतावला बाहरी दुनिया को
देखने को ।
अंजान है बाहर के मौसम से,
हवा के थपेड़ों से और हम
इंसानों के प्रहारों से ।
अनुकूल प्रतिकूल मौसम को सहता
देखो वो नन्हा बीज,
पौधा और फिर पेड़ बन गया !
फल -फूल छाँव और जीवन
हर रोज हमको  देता ।
और अपने जीवन को सार्थक करता!!
               ✍️संगीता दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित
                   
       .

#तुम ही तो हो, #love#shyari

      तुम  हाँ  तुम❤️
साँसों से जो गुजरता है ,
वो पल हो तुम !
धड़कनों की रफ्तार हो तुम,
मेरा दिल जो सोचे,
                         वो ख्याल हो तुम !
मेरी आँखे देखे, वो सपना हो तुम !
दर्द में जो राहत दे ,वो दवा हो तुम!
ख़ुशी का एहसास हो तुम,
क्या कहूँ तुम्हे ,तुम जीने
का अंदाज हो !
जीना सीखा दे वो अदा हो तुम !!
"मेरी हर साँस तुमको
छूकर गुजरती है
यादो से तुम्हारी ,
मेरी तन्हाई भी महकती है।।।।
❤️✍️संगीता दरक माहेश्वरी
          सर्वाधिकार सुरक्षित

वो पिता ही तो है vo pita hi to h

   

पिता हर दिन जीता है ,अपने बच्चो के सपनों के लिये , जीवन की धुप में पिता एक घने वृक्ष की भांति हमे छाव देता है , पिता अपने बच्चो की ख़्वाहिशों को पूरा  करने में कोई कमी नही करते ।पढ़िये मेरी रचना  पिता ही तो है 


"पितृ दिवस पर एक बेटी कीतरफ से" 
          पिता ही तो है
शिशु के एहसास,को जो जीता है
वो पिता ही तो हैं ।
उसके सपनो में ,जो रंग भरता है।
पल-पल उसके लिये सवँरता बिखरता है।
 वो पिता ही तो है!!
उसके(बच्चे) कदम-कदम पर, जो अपनी हथेली बिछा देता है।
कभी उसे सर पर तो कभी कांधे पर बिठा लेता है ।
वो पिता ही तो है!!
जमीं पर,सितारे बिछा देता है।
बिन मांगे जो हर ख्वाहिश पूरी कर देता है।
उसकी साँसो में जो जीता है।।
वो पिता ही तो है,
जो बच्चे के जन्म के समय एक बार ,फिर जी उठता है!!
           हाँ वो पिता ही तो है

            ✍️संगीता दरक
            सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं और मेरा मोबाइल,me and my mobile

मैं और मेरा मोबाइल
मै मोबाइल सा,
और मोबाइल मुझसा हो गया
पहले हम इसे चलाते थे
अब ये हमें चलाता है
देखो दिन ये कैसे दिखलाता है
रिश्तों का नेटवर्क
आजकल मिलता नही
अपनों का प्यार वाला ,रिश्तों का प्लान ज्यादा दिन चलता नहीं
इनकमिंग आऊंटगोइंग
एक साथ रह सकते नही,
वैलेडिटी ,लाइफ टाइम की
हम दे सकते नही
देखो व्हाट्सएप पर
चैटिंग चल रही है
सास बहू की सेटिंग बिगड़ रही है
ऑन लाइन सब कुछ मिलता यहाँ,
मन फिर भी शांति के लिए
भटक रहा है
फेसबुक के चेहरों से,
देखो नजर इनकी हटती नही
अपनों की सूरत पढ़ने की
फुर्सत मिलती नही
नेट पर,हर रिश्ता देखो
सेट हो रहा है
नेट पेक खत्म तो ,
सब ख़त्म हो रहा है
वैलिडिटी,बढ़ानी हो तो
बात कर लो,
सस्ता कोई समझौते का
प्लान कर लो
सुबह सवेरे व्हाट्सएप
की खिड़की से, ऑनलाइन
के सूरज को ताकते है
खिड़की से अगल बगल झाँकते है
पोस्ट प्रोफाइल और सेल्फी
के चक्कर में हम ऐसे पड़े हैं,
कहाँ कहाँ और कैसी जगह खड़े है
साथ किसी का हो न हो,
बस ढेरो से लाइक हमें चाहिये
"रिश्तों का लैंड लाईन वाई फाई
के चक्कर में बिगड़ गया,
नेटवर्क मिलाने की आस में हम
ऊपर (पशिचमीसंस्कृति)
की ओर बढ़े जा रहे है
और पैरो तले की जमीन (संस्कार) खोते जा रहे"
अपनों की भीड़ में आज भी अकेले हम चैट किये जा रहे।
आज भी अकेले हम,,,,,
                            
               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

आदमी हूँ मैं , i am human


मेरी रचना का विषय है "आदमी हूँ मैं" हम इंसान भी अपने आप से प्रतिस्पर्धा करः रहे है पढ़िये ......

   आदमी हूँ मैं
आदमी हूँ आदमी की तरह
सोचता हूँ ।
दौड़ में आगे निकलने के लिए,
अपने आप को पीछे धकेलता हूँ।।
कभी अपनी परछाई ,
पाने के लिएअपने आप को
मिटाता हूँ
कभी जीने के लिए ,
अपनी ही साँसों को छिनता हूँ।।
गम को सहने के लिए ,
अपनी ही हँसी को तोड़ता हूँ।।
आदमी हूँ हर वक्त ऊपर उठने
  की  सोचता हूँ।।

     ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित
                  

नारद जी और कोरोना ,korona ,

कोरोना महामारी से सभी परेशान हो गए मेरे मन में विचार आया की पृथ्वी पर जब कोरोना महामारी भयानक रूप में फैल रही है तो ईश्वर भी कुछ करः रहे होंगे बस ऐसा सोचते सोचते ये रचना बन गई आप भी मेरे साथ कल्पना की उड़ान भरिये और ईश्वर की अदालत में हम पृथ्वी वासियों का मुकदमा देखिये

एक दिन नारद जी का पृथ्वी भ्रमण
और कोरोना को देखना:-
पृथ्वी पर कोरोना की हाहाकार को देखकर ,
नारद जी ने चिंता जताई ।
और जाकर बात ब्रह्मा जी को बताई !!
सुनकर ब्रह्माजी ,ने सभी देवगणों
की सभा बुलाई।
सभा में नारद जी ने विस्तृत में
बात बताई !!
चीन नामक देश से आया
एक कीड़ा कोरोना,
पृथ्वी पर जिसने काफी उत्पात मचाया ।
पृथ्वी वासियों ने "लॉकडाउन" नामक शस्त्र से अपने आप को बचाया !
महीनों बंद रहे गाँव और शहर,
थमा नहीं फिर भी कोरोना
का कहर ।
प्रभु उपाय अब आप ही कुछ बताऐ
इतने में  बोले वरुण देवता - प्रभु मेरा जल शुद्ध हो गया,और
भागीरथी माँ गंगा पावन हो गई!!
पवन देव भी मुस्कुराये,
बिल्कुल प्रभु मैं भी
खुल कर जी रहा हूँ।
मानो अमृत पी रहा हूँ!!
इतना सुन पक्षीराज से भी
ना रहा गया बोले,
आसमाँ लगता है अब हमारा,
चारों ओर हमने अपने पंखों को पसारा!!
इतने में बोले महादेव ,
बढ़ गया पृथ्वी पर पाप अनाचार ।
करती है प्रकृति भी इन पर प्रहार,
रखना होगा मनुष्य को यह याद !!
मशीन बना मानव
कुछ पल के लिए रुक गया ।
धर्म और संस्कृति से जुड़ गया !!
बोले नारद जी मानव स्वभाव तो करता आया है भूल ,
प्रभु संकट से तो आप ही तारों
बोले ईश्वर ,बस कुछ दिन की है बात ,
रखना होगा थोड़ा धैर्य
और करनी होगी प्रकृति की सुरक्षा!!
फिर सब ठीक हो जाएगा यह कोरोना भी दुम दबाकर भाग जाएगा !!
                 संगीता दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित

ऐ तकदीर,my luck,destiny


 कहते है कि जो भाग्य में होता है वही मिलता है ,वक्त से पहले और तकदीर से अधिक किसी को कुछ नही मिलता 

आज इसी विषय पर मेरी रचना

       ऐ तकदीर

ऐ तकदीर, तुझसे करुँ क्या गिला 
मेरे हिस्से में था, जो मुझे  मिला 


कदम मेरे भी उठे थे ,मंजिलों  की तरफ 
कारवाँ भी था ,पर हमसफर ना मिला 
ऐ तकदीर तुझसे करुँ क्या गिला 
जब अपना कोई ना मिला 


होठों पे हसीं मैं भी लाती रही
अश्कों कोअपने छुपाती रही
चेहरे पर चेहरा लगाती रही
ऐ तकदीर तुझसे करुँ क्या गिला 
जब आईना ही बेवफा मिला

 
आशियाना मैंने भी बसाया था 
थोड़ा आसमां मैंने भी बचाया था 
सितारों से सजाया था 
ऐ तकदीर तुझसे करुँ क्या गिला 
सितारों भरा आसमा मुझे न मिला 


कश्ती होती मेरी भी किनारों पर 
किस्मत होती जो मेरे साथ 
ऐ तकदीर........

संगीता दरक माहेश्वरी 

सर्वाधिकार सुरक्षित 


👊#तेरा पाला हमसे पड़ा है# ja korona ja

"👊तेरा पाला हमसे पड़ा है"
   जा कोरोना जा 😷
जानता नही तेरा पाला किससे पड़ा है ।
तू अभी मेरे हिंदुस्तान में खड़ा है!!
अरे तूने ,हमको घरों में कैद कर दिया।
बरसो बाद हमने अपनों के साथ जिया !!
माना छीन ली तूने बाजार की रौनके ,
पर मेरे घर की रौनक को बढ़ा दिया!!
तेरे आने से हवाएँ, मेरे शहर की साफ हो गई।
मैली थी जो गंगा आज वो निर्मल और स्वच्छ हो गई!!
अरे, जो  दौड़ता था आदमी वो कुछ देर के लिये सुस्ताने लगा ।
वो सड़के जो लहूलुहान हो जाती थी कुछ दिनों के लिये खुशियो के रंग में रंगी है!!
बरसो से जो गाँव तरस गए अपनों के लिये, तेरे कारण वो घर लौट आये !!
अरे ,मुस्कान बसती है दिलो में होठों की कहाँ जरूरत ।
मुस्कुरा लेंगे हम आँखो से बच लेंगे तुझसे तो चेहरा छिपा के !
हमारी पुरानी संस्कृति नमस्कार को अपना लेंगे
अरे तेरे कारण बच्चो को रामायण महाभारत देखने को मिली।
ऐ कोरोना, माना तूझसे मेरे देश की अर्थव्यवस्था तो गड़बड़ाई ।
पर (कोरोना योद्धा) लोगो ने भी खूब नेकी निभाई !
कितनो ने बढ़ाए मदद के हाथ
दिया ,
सबने भरपूर दिया साथ !!
अरे तेरे कारण हमें अपनों (स्वदेशी) की पह्चान हुई
बंद हुआ!!
बच्चो का फ़ास्ट फ़ूड खाना,
फालतू बीमारियों में पड़ना । और डॉ के यहाँ पैसे भरना !!
माना की, तेरे कारण बंद हो गये
हम महिलाओं की किटी पार्टी
और घूमना फिरना और शॉपिंग करना ।
कड़कड़ाती सर्दी ,लू तपाती गर्मी और बरसात ,ओले और तूफान और अपनों के गम और खुशियाँ सब उत्सव की तरह हम मना लेते है।
अपना इम्युनिटी पावर तो वैसे ही स्ट्रांग है ।
तू कर अपनी फ़िक्र !
जा कोरोना जा ,
जानता नही तू कहाँ खड़ा है! तेरा पाला हमसे पड़ा है  !!!!
         संगीता दरक©


#आयो जमानो कैसो,# change# #naya jamana

 नयी पीढ़ी में आये बदलाव को पढ़िए,मेरी मालवी भाषा की कविता में और आनन्द लीजिये

"आयो जमानो कैसो "
आयो जमानो कैसो यो नी पेला जैसो
मोबाइल से मैसेज भेजे,
इंटरनेट से करे चेटिंग ,
माँ बाप से पेला हो जावे सेटिंग! !
छोरा-छोरी में फर्क नहीं पेला जैसो,
छोरिया ले जावे बराता,ने छोरा वारा मुंडो ताके ।
हाथ जोड़कर स्वागत करें वाको आयो जमानो कैसो यो नी पेला जैसो
(आजकल के बच्चे ,युवा)
सुबह को सूरज तकिया में छुप गयो,
ने ताजी हवा ने A.C. निगल गयो ।
पैदल तो ई चाले कोनी,
बाईक बिना हाले कोनी ।
आयो जमानो कैसो,
यो नी पेला जैसो।
आजकल का टाबरा (बच्चे) ने नी भावे रोटी साग ,
ई तो खावे बर्गर पिज्जा और हॉट डॉग !
परिवार ने टाइम ई नी देवे ,
टी वी ,मोबाइल को ज़ीव ले वे !!
(आजकल की बहुए)
अक्षरा सी (सीरियल की बहू) रेवे ,
ने बात- बात में हाईपर हो जावे ।
कमर में राखे मोबाइल जाणै के तलवार !
पेला तो ई छोटो परिवार चावै,
पेला तो ई छोटो परिवार चावै
ने फेर मामा भुवा कठे से लावे
आयो जमांनो कैसो यो नी पेला जैसो
आयो जमानो कैसो यो नी पेला जैसो
  संगीता दरक माहेश्वरी
       सर्वाधिकार सुरक्षित

ये दोस्ती ,this friendship ,Dosti, friend ship day

सारे रिश्तों में सबसे खूबसूरत एक रिश्ता दोस्ती का जिसमे न कोई बंधन न स्वार्थ
सच में सच्चा मित्र जीवन के लिए अनमोल खजाने की तरह है
आज की रचना दोस्ती के नाम,

दोस्ती के नाम👏
हर मोड़ पर, मिलता है कारवाँ
पर तुमसा नहीं कोई यहाँ
सितारे बहुत है जहाँ में,
लेकिन तुमसा उजाला नही
मिलते है बहुत ,
बेगानों में अपने ,
पर तुमसा ना कोई मिला
ये दोस्ती जिसपे हमें नाज है
तुम होतो ये हमारे पास है
                  संगीता दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित

पत्थर हूँ मैं,i am stone, Pather hu m


           पत्थर हूँ मैं
तराशते रहना तुम,पत्थर हूँ मैं
ढल जाऊँगी एक दिन ,तुम ढालते रहना ।।
रच देना कोई रूप ,
एक दिन रचनाकार हो तुम  
पत्थऱ हूँ मैं ,तुम तराशते रहना
दे दोगे कोईआकार,तो सवँर जाऊँगी
वरना सबकी ठोकरे ही खाऊँगी
तुम झरते नीर से बहते रहना
देखना पत्थऱ दिल से ,
मैं भी नर्म हो जाऊँगी
किसी की राह का रोड़ा नही बनना मुझे
बना सको तो ,किसी मंदिर की सीढ़ी बना देना
कदम पड़े मुझ पर ,जो ईश्वर दर्श को जाये
पत्थर हूँ मैं ,तुम तराशते रहना  ।     
   किसी थके राहगीर की  सफर  का आश्रय बन जाऊँ मैं
या बन जाऊँ नींव का पत्थर ।।
हाँ पत्थर हूँ मै ,तुम तराशते रहना!
        संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित

हिंदी दिवस हिंदी के कच्चे हिंदी भाषा

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