सादर नमन
मेरी ये रचना आपमें नयी ऊर्जा का संचार करः देगी
और आप कह उठेगी की
हाँ मेने जीना सीख लिया
हाँ मेने जीना सीख लिया
कुछ मन को समझाया,
कुछ मैंने समझ लिया ।
बैरंग तस्वीरों में,
रंग भरना सीख लिया ।
हाँ,मैंने जीना सीख लिया
सपनों के पीछे भागना,
मैंने छोड़ दिया
अपने आपको हकीकत
से जोड़ दिया ।
निकली थी जिन राहों पर
पाने को मंजिल
उन राहों पर फिर से
चलना सीख लिया।
हाँ,मैंने जीना सीख लिया ।
गम को उलझाना ,
और खुशियों को सुलझाना ,
खामोशी से हर बात,
अपनी कह जाना सीख लिया ।
हाँ मैंने जीना सीख लिया।
जिंदगी के मेंले में मिले हजारों,
लेकिन मैंने अपने आप से
मिलना सीख लिया ।
कोई मुझे समझ ना पाया पर मैंने ,सबको समझ लिया।
हाँ मैंने सबको समझ लिया।
गम के मोतियों को खुशियों की
माला में पिरोना सीख लिया ।
हाँ मैंने जीना सीख लिया।
हाथों की लकीरों को मैंने
पढ़ना सीख लिया ।
तकदीर से आगे बढ़ना सीख लिया।
तकदीर से आगे बढ़ना सीख लिया ।
हाँ मैंने जीना सीख लिया!
हाँ मैंने जीना सीख लिया!!
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित