ये औरते बेहद अजीब होती हैं,these women are so weird

"महिला दिवस" के अवसर पर पढ़िए मेरी कलम से उम्मीद करती हूँ आप सबको पसंद आएगा🙏🙏

ये औरते बेहद अजीब होती है
"एक पौधा जब जमीन छोड़ता है तो बढ़ता नही लेकिन एक बेटी जब अपने घर से ब्याह कर के पराये घर जाती है तो पूरे घर को संवार देती हैं"
ये औरते बेहद अजीब होती हैं
जहाँ पैदा होती हैं वहाँ ये रहती नही,
माँ का आँचल छोड़ आती हैं भले ही खुद माँ बन जाती है पर माँ को ये भूलती नही ।
पराये घर को कब अपना बना लेती है ,अपनी पसंद अपने शौक सब छोड़कर कब नये सफर पर हमसफ़र के साथ चल पड़ती है ।
नये रिश्तो के साँचे में ढलकर रिश्तों को सँवारती सजाती
अपने हर ख़्वाब को उसकी(पति) आँखों में देखती।
सहजता से सहेजना बखूबी आता है हमे,
परिस्थितियों को भांपकर आंसुओं को थामना और होठों पर मुस्कान बिखेरना बखूबी आता है हमे ।
सच में हमऔरते बेहदअजीब होती है।
अपनी पसंद नापसंद को बदलना और परिवार में सबके साथ पूर्ण रूप से सामंजस्य बैठाना कोई सीखे हमसे।
मायके में अपनी उपस्थिति को महत्वपूर्ण बनानाऔर ससूराल और मायके में तालमेल बैठाना बहुत सहजता से कर जाती है हम
रात-रात भर बच्चों के लिए जागना और बड़े होने पर  उनके लिए हर कदम पर साथ खड़े रहना ।अपने सींचे हुए संस्कारो को अपने बच्चों को देना।बेटी बहन पत्नी माँ और सारे रिश्तो के छोर हमसे जुड़ें उनको बखूबी निभानाआताहै  सच में हम औरतें बेहद अजीब होती है।
अपनी सेहत का ख्याल रखे ना रखे पर सबके लिए डॉक्टर से कम नहीं और सैलरी का महीने के आखिरी दिन तक चलाने का हुनर हमसे बेहतर किसी के पास नहीं सच हम औरते बेहद अजीब होती हैं। अपने अधूरे सपनों को लेकर बच्चों के लिए नए सपने बुनना जीवन के हर मोड़ पर सबके लिए मौजूद रहना ।
बेटी से औरत तक के सफर की कहानी में हर पात्र में जान डाल देती है ।यही बेटी बहन पत्नी माँ और इन रिश्तों के पहलू में ढेर सारे रिश्ते जिनको पनाह मिलती है इनकी सहनशीलता सामंजस्य और स्त्रीत्व में !
"माँ का आँचल अम्बर सा
गोद माँ की धरा हो जैसे"
      
       ✍️संगीता दरक©

आप सभी को महिला दिवस की बधाई

मन ,mind , ego,


       मन  सब कुछ बर्दाश्त करता है लेकिन कभी कभी बोल पड़ता है
दोस्तों आपके साथ भी ऐसा होता होगा पढ़िये और कमेंट जरूर कीजिये       
               
              "मन"
मन को आज बड़ा समझाया
की मान जा तू जिद ना कर
हर बार की तरह तू ही मेरी सुन
कहने लगा मन हर बार
मुझे ही क्यों झुकना पड़ता है
हर बार मुझे ही क्यों मरना पड़ता है
कभी तो मेरे मन की मुझे करने दो
हर बात मन की मन में रह जाती है
यही कसक मन को दुखाती है
           संगीता दरक माहेश्वरी
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#दिल टूट सा जाता हैं, #heart breaks ,Dil tut sa jata h

Hello दोस्तों ,दिल कितनी बार टूटता बिखरता ,जुड़ता यही सब चलता रहता जीवन भर,कभी कुछ छूटता तो दिल टूटता ये दिल........

दिल💔 टूट सा जाता हैं
जब कोई लम्हा जिंदगी का
पीछे छुट जाता हैं।
यादो में बिखरी जिंदगी
समेटती हूँ
तो आँख भर आती हैं
रिश्तों में उलझी जिंदगी
बैगानो सी मिलती हैं
अपनों की छाँव दूर तलक नहीं,
जिंदगी धुप के साये में मुरझाई सी लगती हैं
जीती हूँ, जी लेती हूँ जिंदगी
फिर भी कुछ आस बाक़ी हैं
साँसों की रफ्तार और
मेरी उम्मीदों का फासला
जीने की आरजू और
मौत की तमन्ना सा हैं    
         
       ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
              सर्वाधिकार सुरक्षित
        

रुकिये साहब..😷 rukiye sahab

रुकिये साहब.....😷
ये कोरोना है जनाब (साहब)
फर्क  किसी में नहीं करता
हाथ में दस्ताने मुहँ पर मास्क
और सेनेटाइज से ये डरता
सर्दी खाँसी और सांस लेने में 
यदि हो परेशानी
करोना बिलकुल आनाकानी
हो जाओ कोरोंटाइनऔर रखो सावधानी 
यूँ छुपने छिपाने से
कोरोना नही हारेगा
इसे इलाज से  ही ज़ीतना होगा

(डॉ और पुलिस की सेवा को मेरा नमन)
माना कि ये फर्ज है उनका
पर देश तुम्हारा भी तो है
बेटा वो भी किसी का होगा
राह उसकी भी कोई  देखता होगा
कैसी ये पूजा और  कैसी  इबादत
करता नही जो
इंसानियत की हिफाजत
रहो घर में यूँ सबकी
मुश्किलें ना बढ़ाओ
अपनी और अपनों की जान बचाओ
ये कोरोना है साहब
फर्क किसी में नहीं करता !
              संगीता दरक
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अधूरी है कहानी मेरी,my story is incomplete,adhuri khavahishe

समय बीतता जाता है बहुत कुछ पाने के बाद भी लगता है कुछ बाकि सा है और सपने पूरे करना है ख्वाहिशे बाकि है
    
    अधूरी है कहानी मेरी

  अधूरी है कहानी मेरी
  अभी कुछ किरदार बाकी है
  चंद ख्वाहिशे हुई है पूरी
  अरमान सारे बाकी है
  मुट्ठी भर जमीं हाथ आई है
अभी तो पूरा आसमान बाकी है
  खिले हैं फूल चंद मुस्कुराहटो के ,
अभी तो पूरा गुलशन बाकी है
  इश्क अभी - अभी  हुआ है
    जिंदगी से  
  फलसफा  ऐ  जिंदगी 
समझना अभी बाकी है!
                ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
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ऐ वक्त

कहते है कि वक्त किसी का नही होता न ही किसी के लिये ठहरता है ये वक्त...

ऐ वक्त
जवाब नही ऐ वक्त तेरा कि कब किसकी तरफ तू हो  जाये
कंरूँ क्या मैं अभिमान कि तू पहलू में जाकर किसी और  के बैठ जाये
मैं थामना भी चाहूँ तुझको
तो क्या  एक लम्हा भी न समेट पाऊँ 
फिर करू क्यों मैं गुमाँ
हर हस्ती को मिटा आया है तू
चाहे  जर्रा हो या हो चट्टान
थमता  नही  तू किसी के लिये चाहे साँसे थम जाये
             संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं इश्क सा, i love

    मैं इश्क सा💞💞💞
मैं इश्क सा बरसता रहुँ
तू वफ़ा सी खिलती रहे
मैं हवा सा बहता रहूँ,
तू खुशबू सी मिलती रहे
बन जा कभी तू मेरा आसमाँ,
तो मैं जमीं बन जाऊँ
तुझे देख देख मैं भी सवँर जाऊँ
         संगीता दरक माहेश्वरी
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#मेरी चुभन,#my prick #meri chubhan

फूल तो हर बार कुछ कहते है कभी कभी काँटों की भी सुन लिया करो आज पढ़िये
क्यों कि काँटे फूलों के साथ ही रहते है ...

         मेरी चुभन
बड़ा होता मैं साथ पौधे के
लेकिन शूल ही कहलाता
चाहे डाली पर खिला हो फूल
पतझड़ में छोड़ जाते है सब
रहता हूँ  मैं डाली पर
बढ़ते कदम को रोकता
तूफाँ को भी  मैं झेलता
शूल हूँ पर बनना चाहता हूँ फूल
मेरा भी कोमल मन है
पर कोमलता से कोई छूता न मुझे
मुझमें भी इंसानी फिदरत है चुभ ही जाता हूँ !
तभी तो काँटा कहलाता हूँ !!!!!!
      ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
            सर्वाधिकार सुरक्षित

# होगी तेरी जीत #will be your victory

      होगी तेरी जीत     
जिंदगी कितना भी कर ले 
हमको तू परेशां
नहीं हम कमजोर जो गिर जाए  
 जो गिर भी जाए कभी तो 
संभलना आता है हमें     
राहों में आये ,चाहे
कितनी भी मुश्किलें ,
काँटों के बीच राह बना लेंगे हम     
  सपनों व उम्मीद के सहारे , 
मंजिल को अपनी पा ही लेंगे    
ना मिली मंजिले तो भी ,
हमें गम नहीं,
गमों के बीच 
भी खुशियों की राहे
 कम नहीं
माना अभी हम भँवर (तूफान)
से गिरे हैं ,
पर किनारे तो आएंगे                  
तेरा तूफाँ भी थमेगा ,
हमारे धैर्य के आगे
जिंदगी तुझे तो झुकना होगा
साथ हमारे ही चलना होगा !

            ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित

#उम्मीद की हो चार दीवारें,#four walls of hope

सपनो का घर, ख्वाहिशो का स्वर्ग से सुंदर घर और भी न जाने क्या क्या उपमा हम देते है और सोचते है, पढ़िये मेरी रचना में अपने उम्मीद की चार दीवारें

   उम्मीद की हो चार दीवारें

उम्मीद की हो चार दीवारें ,
ख्वाहिशों की हो छत   
खुशियों का हो दरवाजा जिसमें ,
 सपनों की हो खिड़क़ी

यादों का रंग रोगन हो दीवारों पर,
फर्श पर बिछी हो कालीन
तेरी मेरी बातों की
गम के लम्हों में मुस्कुराहटों के
लगे हो जहाँ पर्दे
                             
  चैन सुकून बसता हो जहाँ ,
अपनों का प्यार बिखरा
हो वहाँ   
                
आओ ऐसा आशियाना बनाए
आओ ऐसा आशियाना बनाए!
          संगीता माहेश्वरी दरक
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आ जाओ कान्हा , God please come

जब जब धरती पर पाप अनाचार बढ़ जाता है तब ईश्वर अवतार लेते है आज मन कुछ ऐसा ही कह रहा है पढ़िये मेरी प्रार्थना

आ जाओ कान्हा एक बार फिर इस धरा पर
आ जाओ कान्हा........
आ जाओ एक बार फिर इस धरा पर
बनकर तुम नटखट नंदलाला
बस्तो के बोझ से दबे इन बच्चो को
अपने बचपन से मिलवा दो
आ जाओ कान्हा अपनी अठखेलिया
इनको सिखलादो
हाथ में जिनके मोबाइल है,बाँसुरी उनको तुम थमा दो
गोकुल के प्यारे ,उनको भी अपने जैसा बना दो
आ जाओ कान्हा एक बार फिर
इस धरा पर बनकर तुम ग्वाल
आकर देख लो इस धरा पर अपनी गैया के हाल
बेसुध मारी-मारी फिरती है
आज भी तेरी बाँसुरी की तान को तरसती है
आ जाओ कान्हा एक बार फिर
इस धरा पर,
बनकर सच्चे सखा
रिश्तों में आकर बैठा कंस यहाँ पर
आकर मधुरता बिखेर जाओ तुम
सच्चे सखा सुदामा के तुम
कुछ हमे भी सीखा जाओ तुम
आ जाओ कान्हा एक बार फिर
इस धरा पर,
प्रियतम तुम बने गोपियों के
निश्छल प्रेम के हो प्रतीक
आज देखो यहाँ प्रेम वासना बन चूका है
आ जाओ कान्हा एक बार
फिर इस धरा पर
देवकी और यशोदा की गोद तुमने पाई थी
क्या खूब तुमने बेटे का फर्ज निभाया था
इस फर्ज से आज बेटे अंजान है
माँ आज भी रोती है,पिता बेहाल है
आ जाओ कान्हा,एक बार फिर इस धरा पर,
बन जाओ तुम सारथी
मेरे जीवन रथ के
पार कर सकू धर्म से इस पथ को
दे दो गीता का ज्ञान बना दो हमको अच्छा इंसान।
आ जाओ कान्हा एक बार फिर इस धरा पर लेकर अवतार🙏
              संगीता माहेश्वरी दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित
        

ये वक्त है जनाब

कोरोना महामारी में लॉक डाउन के कारण जब सब बंद था तब हर दिन एक समान थे सातो दिन छुट्टी इसलिये रविवार (सन्डे ) की भी कोई एहमियत नही थी

ये वक्त है जनाब,
कद्र किसी की नही करता
एक सन्डे का दिन था ,
जो छः दिन पर पड़ता था भारी ,
और अब आकर चला जाता है
कोई इसे पूछता तक नही
       संगीता दरक©

ये दिन...........लॉक डाउन के

ये दिन...लॉक डाउन के
मार्च की 20 तारीख तक हमने ऐसा नही सोचा था कि हम ऐसे ठहर जायेंगे ।बच्चो की परीक्षा चल रही थीं सबने अपने अपने स्तर पर भविष्य के लिये कुछ सोच रखा था और अचानक से ये लॉक डाउन  और सब वही रुक गए कुछ समझ नही पा रहे थे की ये क्या हो रहा है आज 8 अप्रैल के बाद भी आगे कुछ समझ नही आ रहा है पर मन कहता है कि हम मनुष्य बहुत अहंकारी हो गए हमे सिर्फ अपना स्वार्थ नजर आता है हमें  प्रकृति की परवाह नही हम जंगल काटे जा रहे और उस पर कंट्रक्शन का काम हरेक जगह हमारा हस्तक्षेप बढ़ गया हम समझने लगे की हर जगह हमारा ही राज है हम भूल गए थे की ये कुदरत सबसे बड़ी होती है तभी तो
सब कुछ थम गया है नही थमा है तो बस प्रकृति का काम सूरज का आना- जाना चाँद का सितारों को लेकर आना और पेड़ो का हमे प्राण वायु देना वही रात और अँधेरे को चीरती  वही सुबह पैरो तले  जमीं और सर पे हमारे वही आसमाँ
हमने प्रकृति को अपनी सत्ता समझ रखा है लेकिन प्रकृति हमे अपनी संतान  समझती है
वो सड़के जो रफ्तार से हाफ जाती थी आज सुस्ता रही है
आकाश में पक्षियों को उड़ने के लिये विचरण के लिये देखना पड़ता था वो आसमाँ आज खाली  है
हम प्रकृति से खिलवाड़ करते आ रहे है प्रकृति का संतुलन हम बिगाड़ रहे है और हम फिर भी प्रकृति से उम्मीद रखे की वो हमें माफ़ करती रहै हम कब सबक लेंगे।केदारनाथ का प्रलय हम भूल गए ।
कब तक हम अपना स्वार्थ ही साधते रहेंगे।आज इतना सब हम सोच रहे है क्योंकि हम इन 21 दिनों में अपना आत्मविश्लेषण कर रहे है देश के बारे में बात कर रहे हैं
हमने तो रामायण देखि हमारी नयी पीढ़ी को तो ये भी पता नही है  की हनुमान जी सँजीवनी बूटी लेने गए थे । लेकिन अभी के बच्चो को अब पता लग रहा है
रामायण में मैने पढ़ा है कि जब धरती पर अनाचार पाप बढ़ता है तो धरती माता गौ का रूप बनाकर देवताओं के पास जाती हैं और तब देवताओं द्वारा राम के अवतार लेने की बात कही जाती हैं ।
तात्पर्य है कि पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ गया है हम अपने स्वार्थ के लिये क्या कुछ नही कर रहे ।कुदरत को हर रोज हम नजरअंदाज करते है
आज हवाऐ साफ हो गई नदियों के पानी में अब फैक्ट्रियों का गन्दा पानी नही पहुँच रहा है नदिया अब चैन की साँस ले रही हैं । आज हमको अपनी जान की परवाह है आज सब बराबर है कोई अमीर नही कोई गरीब नही
आज डॉक्टर और पुलिस के काम को सराहा जा रहा है
चैत्र महीना जिसमे राम जन्म हुआ ऐसे में पृथ्वी पर पाप का नाश हुआ क्यों की अभी हर कोई ईश्वर आराधना में लगा हुआ है। आज भले ही हम कोरोना की डर से घरों में है लेकिन अपनों के साथ है
यदि हम देश के लिये कुछ करना चाहते है तो हमे घर में ही रहना चाहिए ।
    फिर मिलते है आप भी रहिये अपनों के साथ सुरक्षित
        जय हिंद
         संगीता माहेश्वरी दरक
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उजाले की और,path of light,new morning

जीवन में हमे उम्मीद का दामन नही छोड़ना चाहिए परिस्तिथियां कैसी भी हो
हर रात की सुबह जरूर होती है
'उजाले की और" पढ़िए मेरी रचना

उजाले की और

सपनो को साथ लिए
 बोझिल आँखों से
मेने भी देखी है ,चिलचिलाती धूप

लेकिन मैं थकी नही,
पल भर भी रुकी नही
क्यों कि मालूम था मुझे होगा नया उजाला

जिसकी रोशनी में बैठकर करूँगी सपने सारे साकार
आज भी करती हूँ, इंतज़ार

  एक नये आत्मविश्वास का
  खोये हुए अहसास का
पल भर भी नही लगा ,
और टूटा था मेरा सपना
आज भी अरमान है,
उसे पूरा करने का।
इंतजार है मुझे,
एक नई सुबह का !!!!
                   संगीता माहेश्वरी दरक
                       सर्वाधिकार सुरक्षित

लम्हा लम्हा

लम्हा लम्हा
ऐ जिंदगी तेरे दाँव पेच से हार गया
मैं, अपने कर्मो को करते रहा बस
पाप पुण्य न देखा मैंने ,बस कर्म ही करता रहा
              संगीता माहेश्वरी दरक
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खामोश दीवारें ,silent walls, khamosh divare

खामोश दीवारें......
खामोश दीवारें कब बोलेंगी
चार दीवारी का भेद कब खोलेंगी
क्या दीवारों के सिर्फ कान होते हैं
होती नही आँखें
क्यों ये मूक होकर देखती रहती हैं
सिसकियों और चीखों को सुनती हैं बस
अपने पहलू में क्या कुछ होने देती हैं
छत को बचाने के लिए नही
बोलती ये दीवारें
रिसता पानी दीवारों से कुछ बयां तो करता है
पर खुलकर कुछ नही बताती ये दीवारें खामोश खड़ी ये दीवारें
और जब साहस करके कुछ बोलती हैं तो टूट कर बिखर जाती हैं ये दीवारें
         संगीता माहेश्वरी
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लॉक डाउन के पॉजिटिव इफेक्ट

विषय-" लॉक डाउन के पॉजिटिव इफ़ेक्ट"
सबसे पहले में अपने देश को नमन करती हूँ जो इतनी मुश्किल घड़ी मेभी डटकर खड़ा है
लॉक डाउन ने हमारी भागदौड़ भरी जिंदगी पर रोक लगा दी इंसान मशीन बनकर रह गया था  घर परिवारऔर अपनेआप से भी दूर हो गया था
लॉक डाउन भले ही कठिन परिस्थतियों से लड़ने के लिये किया गया है। लेकिन अपनों का साथ पाकर इंसान सरल हो गया है परिवार के साथ  भोजन, साथ में ईश्वर आराधना  और हमारे पुराने खेल जो मोबाइल और दौड़ती जिंदगी में पीछे छूट गए थे आज सबसे परिचय हो रहा हरेक रिश्ता अपने आपको समय दे रहा है कोरोना को परिवार के साथ रहकर हम निश्चित मात दे देंगे
इस लॉक डाउन ने बाहरी दुनिया की दुरी भले ही बड़ा दी लेकिन अपनों को तो ये पास में ले आया है वो बच्चे जो बाहर का खाना खाएं बगैर नही रहते थे  वो घर का खाना आराम से खा रहे है क्योंकि परिवार के साथ में बैठकर सुखी रोटी भी पकवान होती है मेरे विचार से रफ्तार भरी जिंदगी में ठहराव थोड़ा सुकून पाने को आया है
         संगीता दरक माहेश्वरी
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मेरे गाँव की मिट्टी,soil of my village

भारत गाँवो में बसता है ,लेकिन आधुनिकरण ने गाँव की वो पुरानी रौनक की जगह नयापन दे दिया है लेकिन आज भी मन करता है कि मेरा गाँव ,गाँव ही रहे बस दोस्तों इसी विषय पर पढ़िये मेरी रचना .....

मेरे गाँव की मिट्टी
मेरा गाँव, गाँव ही रहे तो अच्छा है
गाँव का हर बच्चा बच्चा ही रहे तो अच्छा है
सुख मिले ,सुकून मिले सुविधाये भी सारी हो
सब अपने हो और प्यारी सी फुलवारी हो
आधुनिकता की आड़ में कपड़े बदन के कम न हो
और आज भी जब लड़की अकेली हो ,राहों में तो गम न हो
नीम की ठंडी छाँव हो न हो, अपनों का घना साया हो
घर में आँगन हो ,बैठे अपने सारे  ख़ुशी और गम की बातें हो
सब पास हो  न हो, पर दिलो की दुरियाँ ना हो
कच्चे मकान हो पर रिश्ते पक्के हो
आज भी चौराहों पर देश की बातें हो
पास में कुछ हलचल होतो सबकी सब पर नजर हो
रफ़्तार से दौड़ती सड़कें हो पर, ले जाये मंजिलो की और
शहर सी भागदौड़ हो पर सुस्ताने को बरगद की छाँव हो 
  शिक्षा चाहै हो अंग्रेजी की पर नैतिकता की बाते  हो
शहर सी चकाचोंध हो पर गाँव की रौनक कम न हो
मेरे गाँव को गाँव ही रहने दो क्यों कि आज भी
मेरे गाँव में सुकून बसता है!

         संगीता माहेश्वरी दरक
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अभी अपने घर में ही रहना

कोरोना को हराना है तो आप सब घर में रहे🙏
ये वक्त गुज़र जायेगा सब्र तो कर
जान को जान समझ ऐसे तो ना कर
अपनों के साथ उनकी
जान का दुश्मन न बन
दूरियां बना ले तू
मुश्किलों का कारण तो न बन
है ज़रूरत प्रण की बस
इतना ही कर
करना है जो अपने
घर में रहकर ही कर
                 संगीता दरक माहेश्वरी
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कोरोना को हराना है ,Corona has to be defeated ,kill korona


कोरोना को हराना है
पडी है देश पर कोरोना की मार
मिलकर करो इस पर प्रहार
थोड़ा सा धैर्य और संयम रखो
ना जाओ बाजार लगाओ ना भीड़ रखो दूरियां सबसे यदि
रहना हो अपनों के पास
घर की दाल रोटी खाओ और
परिवार के साथ दिन बिताओ
यूँ  राशन की दूकानों पर कतारे ना बढ़ाओ
रखा है जितना पहले वो तो पकाओ
हम भर भर कर लायेंगे तो दूसरे कहाँ जायेंगे
अरे हम उस धरा पर रहते है जहाँ आज भी होली में बुराई
और दशहरे में रावण को जलाते हैं
और आज भी कान्हा जी घर घर के पालनों में झुलते है
ये वक्त भी निकल जायेगा और कोरोना भी खत्म हो जायेगा |
मुँह पर लगाकर रखिये मास्क और धोते रहे अपने हाथ
डॉक्टर, पुलिस और सफाईकर्मी के काम को सराहना है
और अपने घर में रहकर कोरोना को पछाड़ना है
जय हिन्द 
संगीता दरक माहेश्वरी 
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दर्पण हूँ मैं, i am the mirror , Darpan hu m


               दर्पण हूँ मैं
दर्पण हूँ मैं ,सबको खुश नही रख
 पाता हूँ
जो सच है ,वही दिखलाता हूँ ।  
चेहरे पर जो चढ़े है नकाब , 
 उन्हे  हटाता हूँ  !
सच का साथ हरदम निभाता हूँ !
टूटकर बिखर जाता हूँ , फिर भी सच ही बोलता हूँ !
दर्पण  हूँ मैं सबको खुश  नही रख पाता |  "ऐ दोस्त सूरत और सीरत
    तु अपनी सँवार ले  
  फिर खुद को मुझमे निहार ले "!!!
          
         संगीता माहेश्वरी दरक
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बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts

 शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि  यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान         संगीता दरक माहेश्वरी