#तुम ही तो हो, #love#shyari

      तुम  हाँ  तुम❤️
साँसों से जो गुजरता है ,
वो पल हो तुम !
धड़कनों की रफ्तार हो तुम,
मेरा दिल जो सोचे,
                         वो ख्याल हो तुम !
मेरी आँखे देखे, वो सपना हो तुम !
दर्द में जो राहत दे ,वो दवा हो तुम!
ख़ुशी का एहसास हो तुम,
क्या कहूँ तुम्हे ,तुम जीने
का अंदाज हो !
जीना सीखा दे वो अदा हो तुम !!
"मेरी हर साँस तुमको
छूकर गुजरती है
यादो से तुम्हारी ,
मेरी तन्हाई भी महकती है।।।।
❤️✍️संगीता दरक माहेश्वरी
          सर्वाधिकार सुरक्षित

वो पिता ही तो है vo pita hi to h

   

पिता हर दिन जीता है ,अपने बच्चो के सपनों के लिये , जीवन की धुप में पिता एक घने वृक्ष की भांति हमे छाव देता है , पिता अपने बच्चो की ख़्वाहिशों को पूरा  करने में कोई कमी नही करते ।पढ़िये मेरी रचना  पिता ही तो है 


"पितृ दिवस पर एक बेटी कीतरफ से" 
          पिता ही तो है
शिशु के एहसास,को जो जीता है
वो पिता ही तो हैं ।
उसके सपनो में ,जो रंग भरता है।
पल-पल उसके लिये सवँरता बिखरता है।
 वो पिता ही तो है!!
उसके(बच्चे) कदम-कदम पर, जो अपनी हथेली बिछा देता है।
कभी उसे सर पर तो कभी कांधे पर बिठा लेता है ।
वो पिता ही तो है!!
जमीं पर,सितारे बिछा देता है।
बिन मांगे जो हर ख्वाहिश पूरी कर देता है।
उसकी साँसो में जो जीता है।।
वो पिता ही तो है,
जो बच्चे के जन्म के समय एक बार ,फिर जी उठता है!!
           हाँ वो पिता ही तो है

            ✍️संगीता दरक
            सर्वाधिकार सुरक्षित

मैं और मेरा मोबाइल,me and my mobile

मैं और मेरा मोबाइल
मै मोबाइल सा,
और मोबाइल मुझसा हो गया
पहले हम इसे चलाते थे
अब ये हमें चलाता है
देखो दिन ये कैसे दिखलाता है
रिश्तों का नेटवर्क
आजकल मिलता नही
अपनों का प्यार वाला ,रिश्तों का प्लान ज्यादा दिन चलता नहीं
इनकमिंग आऊंटगोइंग
एक साथ रह सकते नही,
वैलेडिटी ,लाइफ टाइम की
हम दे सकते नही
देखो व्हाट्सएप पर
चैटिंग चल रही है
सास बहू की सेटिंग बिगड़ रही है
ऑन लाइन सब कुछ मिलता यहाँ,
मन फिर भी शांति के लिए
भटक रहा है
फेसबुक के चेहरों से,
देखो नजर इनकी हटती नही
अपनों की सूरत पढ़ने की
फुर्सत मिलती नही
नेट पर,हर रिश्ता देखो
सेट हो रहा है
नेट पेक खत्म तो ,
सब ख़त्म हो रहा है
वैलिडिटी,बढ़ानी हो तो
बात कर लो,
सस्ता कोई समझौते का
प्लान कर लो
सुबह सवेरे व्हाट्सएप
की खिड़की से, ऑनलाइन
के सूरज को ताकते है
खिड़की से अगल बगल झाँकते है
पोस्ट प्रोफाइल और सेल्फी
के चक्कर में हम ऐसे पड़े हैं,
कहाँ कहाँ और कैसी जगह खड़े है
साथ किसी का हो न हो,
बस ढेरो से लाइक हमें चाहिये
"रिश्तों का लैंड लाईन वाई फाई
के चक्कर में बिगड़ गया,
नेटवर्क मिलाने की आस में हम
ऊपर (पशिचमीसंस्कृति)
की ओर बढ़े जा रहे है
और पैरो तले की जमीन (संस्कार) खोते जा रहे"
अपनों की भीड़ में आज भी अकेले हम चैट किये जा रहे।
आज भी अकेले हम,,,,,
                            
               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

आदमी हूँ मैं , i am human


मेरी रचना का विषय है "आदमी हूँ मैं" हम इंसान भी अपने आप से प्रतिस्पर्धा करः रहे है पढ़िये ......

   आदमी हूँ मैं
आदमी हूँ आदमी की तरह
सोचता हूँ ।
दौड़ में आगे निकलने के लिए,
अपने आप को पीछे धकेलता हूँ।।
कभी अपनी परछाई ,
पाने के लिएअपने आप को
मिटाता हूँ
कभी जीने के लिए ,
अपनी ही साँसों को छिनता हूँ।।
गम को सहने के लिए ,
अपनी ही हँसी को तोड़ता हूँ।।
आदमी हूँ हर वक्त ऊपर उठने
  की  सोचता हूँ।।

     ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित
                  

नारद जी और कोरोना ,korona ,

कोरोना महामारी से सभी परेशान हो गए मेरे मन में विचार आया की पृथ्वी पर जब कोरोना महामारी भयानक रूप में फैल रही है तो ईश्वर भी कुछ करः रहे होंगे बस ऐसा सोचते सोचते ये रचना बन गई आप भी मेरे साथ कल्पना की उड़ान भरिये और ईश्वर की अदालत में हम पृथ्वी वासियों का मुकदमा देखिये

एक दिन नारद जी का पृथ्वी भ्रमण
और कोरोना को देखना:-
पृथ्वी पर कोरोना की हाहाकार को देखकर ,
नारद जी ने चिंता जताई ।
और जाकर बात ब्रह्मा जी को बताई !!
सुनकर ब्रह्माजी ,ने सभी देवगणों
की सभा बुलाई।
सभा में नारद जी ने विस्तृत में
बात बताई !!
चीन नामक देश से आया
एक कीड़ा कोरोना,
पृथ्वी पर जिसने काफी उत्पात मचाया ।
पृथ्वी वासियों ने "लॉकडाउन" नामक शस्त्र से अपने आप को बचाया !
महीनों बंद रहे गाँव और शहर,
थमा नहीं फिर भी कोरोना
का कहर ।
प्रभु उपाय अब आप ही कुछ बताऐ
इतने में  बोले वरुण देवता - प्रभु मेरा जल शुद्ध हो गया,और
भागीरथी माँ गंगा पावन हो गई!!
पवन देव भी मुस्कुराये,
बिल्कुल प्रभु मैं भी
खुल कर जी रहा हूँ।
मानो अमृत पी रहा हूँ!!
इतना सुन पक्षीराज से भी
ना रहा गया बोले,
आसमाँ लगता है अब हमारा,
चारों ओर हमने अपने पंखों को पसारा!!
इतने में बोले महादेव ,
बढ़ गया पृथ्वी पर पाप अनाचार ।
करती है प्रकृति भी इन पर प्रहार,
रखना होगा मनुष्य को यह याद !!
मशीन बना मानव
कुछ पल के लिए रुक गया ।
धर्म और संस्कृति से जुड़ गया !!
बोले नारद जी मानव स्वभाव तो करता आया है भूल ,
प्रभु संकट से तो आप ही तारों
बोले ईश्वर ,बस कुछ दिन की है बात ,
रखना होगा थोड़ा धैर्य
और करनी होगी प्रकृति की सुरक्षा!!
फिर सब ठीक हो जाएगा यह कोरोना भी दुम दबाकर भाग जाएगा !!
                 संगीता दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित

ऐ तकदीर,my luck,destiny


 कहते है कि जो भाग्य में होता है वही मिलता है ,वक्त से पहले और तकदीर से अधिक किसी को कुछ नही मिलता 

आज इसी विषय पर मेरी रचना

       ऐ तकदीर

ऐ तकदीर, तुझसे करुँ क्या गिला 
मेरे हिस्से में था, जो मुझे  मिला 


कदम मेरे भी उठे थे ,मंजिलों  की तरफ 
कारवाँ भी था ,पर हमसफर ना मिला 
ऐ तकदीर तुझसे करुँ क्या गिला 
जब अपना कोई ना मिला 


होठों पे हसीं मैं भी लाती रही
अश्कों कोअपने छुपाती रही
चेहरे पर चेहरा लगाती रही
ऐ तकदीर तुझसे करुँ क्या गिला 
जब आईना ही बेवफा मिला

 
आशियाना मैंने भी बसाया था 
थोड़ा आसमां मैंने भी बचाया था 
सितारों से सजाया था 
ऐ तकदीर तुझसे करुँ क्या गिला 
सितारों भरा आसमा मुझे न मिला 


कश्ती होती मेरी भी किनारों पर 
किस्मत होती जो मेरे साथ 
ऐ तकदीर........

संगीता दरक माहेश्वरी 

सर्वाधिकार सुरक्षित 


👊#तेरा पाला हमसे पड़ा है# ja korona ja

"👊तेरा पाला हमसे पड़ा है"
   जा कोरोना जा 😷
जानता नही तेरा पाला किससे पड़ा है ।
तू अभी मेरे हिंदुस्तान में खड़ा है!!
अरे तूने ,हमको घरों में कैद कर दिया।
बरसो बाद हमने अपनों के साथ जिया !!
माना छीन ली तूने बाजार की रौनके ,
पर मेरे घर की रौनक को बढ़ा दिया!!
तेरे आने से हवाएँ, मेरे शहर की साफ हो गई।
मैली थी जो गंगा आज वो निर्मल और स्वच्छ हो गई!!
अरे, जो  दौड़ता था आदमी वो कुछ देर के लिये सुस्ताने लगा ।
वो सड़के जो लहूलुहान हो जाती थी कुछ दिनों के लिये खुशियो के रंग में रंगी है!!
बरसो से जो गाँव तरस गए अपनों के लिये, तेरे कारण वो घर लौट आये !!
अरे ,मुस्कान बसती है दिलो में होठों की कहाँ जरूरत ।
मुस्कुरा लेंगे हम आँखो से बच लेंगे तुझसे तो चेहरा छिपा के !
हमारी पुरानी संस्कृति नमस्कार को अपना लेंगे
अरे तेरे कारण बच्चो को रामायण महाभारत देखने को मिली।
ऐ कोरोना, माना तूझसे मेरे देश की अर्थव्यवस्था तो गड़बड़ाई ।
पर (कोरोना योद्धा) लोगो ने भी खूब नेकी निभाई !
कितनो ने बढ़ाए मदद के हाथ
दिया ,
सबने भरपूर दिया साथ !!
अरे तेरे कारण हमें अपनों (स्वदेशी) की पह्चान हुई
बंद हुआ!!
बच्चो का फ़ास्ट फ़ूड खाना,
फालतू बीमारियों में पड़ना । और डॉ के यहाँ पैसे भरना !!
माना की, तेरे कारण बंद हो गये
हम महिलाओं की किटी पार्टी
और घूमना फिरना और शॉपिंग करना ।
कड़कड़ाती सर्दी ,लू तपाती गर्मी और बरसात ,ओले और तूफान और अपनों के गम और खुशियाँ सब उत्सव की तरह हम मना लेते है।
अपना इम्युनिटी पावर तो वैसे ही स्ट्रांग है ।
तू कर अपनी फ़िक्र !
जा कोरोना जा ,
जानता नही तू कहाँ खड़ा है! तेरा पाला हमसे पड़ा है  !!!!
         संगीता दरक©


#आयो जमानो कैसो,# change# #naya jamana

 नयी पीढ़ी में आये बदलाव को पढ़िए,मेरी मालवी भाषा की कविता में और आनन्द लीजिये

"आयो जमानो कैसो "
आयो जमानो कैसो यो नी पेला जैसो
मोबाइल से मैसेज भेजे,
इंटरनेट से करे चेटिंग ,
माँ बाप से पेला हो जावे सेटिंग! !
छोरा-छोरी में फर्क नहीं पेला जैसो,
छोरिया ले जावे बराता,ने छोरा वारा मुंडो ताके ।
हाथ जोड़कर स्वागत करें वाको आयो जमानो कैसो यो नी पेला जैसो
(आजकल के बच्चे ,युवा)
सुबह को सूरज तकिया में छुप गयो,
ने ताजी हवा ने A.C. निगल गयो ।
पैदल तो ई चाले कोनी,
बाईक बिना हाले कोनी ।
आयो जमानो कैसो,
यो नी पेला जैसो।
आजकल का टाबरा (बच्चे) ने नी भावे रोटी साग ,
ई तो खावे बर्गर पिज्जा और हॉट डॉग !
परिवार ने टाइम ई नी देवे ,
टी वी ,मोबाइल को ज़ीव ले वे !!
(आजकल की बहुए)
अक्षरा सी (सीरियल की बहू) रेवे ,
ने बात- बात में हाईपर हो जावे ।
कमर में राखे मोबाइल जाणै के तलवार !
पेला तो ई छोटो परिवार चावै,
पेला तो ई छोटो परिवार चावै
ने फेर मामा भुवा कठे से लावे
आयो जमांनो कैसो यो नी पेला जैसो
आयो जमानो कैसो यो नी पेला जैसो
  संगीता दरक माहेश्वरी
       सर्वाधिकार सुरक्षित

ये दोस्ती ,this friendship ,Dosti, friend ship day

सारे रिश्तों में सबसे खूबसूरत एक रिश्ता दोस्ती का जिसमे न कोई बंधन न स्वार्थ
सच में सच्चा मित्र जीवन के लिए अनमोल खजाने की तरह है
आज की रचना दोस्ती के नाम,

दोस्ती के नाम👏
हर मोड़ पर, मिलता है कारवाँ
पर तुमसा नहीं कोई यहाँ
सितारे बहुत है जहाँ में,
लेकिन तुमसा उजाला नही
मिलते है बहुत ,
बेगानों में अपने ,
पर तुमसा ना कोई मिला
ये दोस्ती जिसपे हमें नाज है
तुम होतो ये हमारे पास है
                  संगीता दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित

पत्थर हूँ मैं,i am stone, Pather hu m


           पत्थर हूँ मैं
तराशते रहना तुम,पत्थर हूँ मैं
ढल जाऊँगी एक दिन ,तुम ढालते रहना ।।
रच देना कोई रूप ,
एक दिन रचनाकार हो तुम  
पत्थऱ हूँ मैं ,तुम तराशते रहना
दे दोगे कोईआकार,तो सवँर जाऊँगी
वरना सबकी ठोकरे ही खाऊँगी
तुम झरते नीर से बहते रहना
देखना पत्थऱ दिल से ,
मैं भी नर्म हो जाऊँगी
किसी की राह का रोड़ा नही बनना मुझे
बना सको तो ,किसी मंदिर की सीढ़ी बना देना
कदम पड़े मुझ पर ,जो ईश्वर दर्श को जाये
पत्थर हूँ मैं ,तुम तराशते रहना  ।     
   किसी थके राहगीर की  सफर  का आश्रय बन जाऊँ मैं
या बन जाऊँ नींव का पत्थर ।।
हाँ पत्थर हूँ मै ,तुम तराशते रहना!
        संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित

माहेश्वरी है हम. maheshwari hai hum माहेश्वरी है हम


नमस्कार दोस्तो 

आज मेरी रचना का विषय है 

"माहेश्वरी हैं हम" जी में भगवान महेश से उतपन्न माहेश्वरी समाज की बात कर रही हूँ 

माहेश्वरीयों की अपनी एक पहचान है महेश नवमी वंशो उतपत्ति दिवस पर प्रस्तुत है मेरी रचना पढ़िये और जानिए 



Maheshwari h hum

माहेश्वरी हैं हम

माहेश्वरी हैं हम माहेश्वरी है हम

वंशज शिव के हम है,
लोहागर्ल हमारा उतपत्ति स्थल
सेवा,त्याग,सदाचार प्रतीक हमारे है
जीवन में सदा हम इनको अपनाते हैं
सर पर बांधे पगड़ी,
ललाट पर लगता श्री हमारे
हम माहेश्वरीयो के अंदाज निराले है
शिक्षा का हो क्षेत्र
चाहे राजनीति की बाते हो,
हम माहेश्वरी सबसे आगे है
उज्जैन में सिंहस्थ की बात हो
चाहे धाम बद्रीनाथ
सेवा सदन की सेवा
हर कदम पर है साथ
रंग तेरस का रंग हो या हो गणगौर की झेल
सातू तीज की बात निराली है
हर त्यौहार की अपनी एक कहानी है
संस्कारो और संस्कृति के पहरेदार है हम
माहेश्वरी हैं हम माहेश्वरी है हम
व्यापार हो या हो नोकरी
जी जान से करते हैं
कमाये कम या ज्यादा
बड़ी शान से जीते हैं।
72 हमारी खापें और गोत्र सारी है
सतियो और कुल देवी की
महिमा अति भारी है
माहेश्वरी है हम बात हमारी निराली है
करता जिसकी शिव रखवाली है
माहेश्वरी हैं हम माहेश्वरी हैं हम
       संगीता दरक माहेश्वरी
       सर्वाधिकार सुरक्षित

आप अगर माहेश्वरी उतपत्ति दिवस महेशनवमी के बारे में पढ़ना चाहते है तो जरूर पढ़िये आपको लिंक दिया गया है https://sangeetamaheshwariblog.blogspot.com/2021/06/blog-post_13.html

ये जीवन है यही है रंग रूप ,these colors of life

    
सच
संभालो इस सच को,
 हाथ से फिसल न जाये
झूठ की तपिश से पिघलकर
कही बह न जाये ये ।
      हश्र
समंदर भी कही सूखा है
बहता दरिया भी कही रुका है
आती हैं चट्टाने रोकने को "हश्र"उन्ही,
से पूछो क्या उनका होता है।।
         वक्त
वक्त हूँ ठहरता नही बदलता जरूर हूँ
देता हूँ दर्द पर मरहम भी बनता हूँ
गिराता हूँ कभी पर सँभालता भी हूँ
वक्त हूँ ,हरदम साथ निभाता भी हूँ
     दर्द
  दर्द तो दर्द है, दर्द से तो
आह निकलती है
कभी अपनों के लिये गैरो से भी दुआ निकलती हैं
              ख़ुशी
दामन में काँटे सजाकर भी खुश हूँ।मै
आती हैं जब ओरो के दामन से फूलो की खुशबु
             गम
दर्द को बहाना चाहिए
गम का एक अफसाना चाहिये
कभी अश्को मे बह जाता हैं
कभी दिल में रह जाता हैं
                    संगीता दरक माहेश्वरी
                      सर्वाधिकार सुरक्षित

#भूख से पलायन#run out of hunger

   भूख का एहसास कोई भूखा व्यक्ति ही करः सकता है, जिसे पकवान मिलते हो और भूख से पहले ही भोजन मिलता हो वो भूख को नही समझ सकता, और भूख के सामर्थ्य
को भी नही, ये भूख इंसान से क्या क्या करवाती है ।पढ़िये मेरी पसंदीदा रचना
ये मैंने कोरोना महामारी के दौरान पलायन करते मजदूरों पर लिखी

     "भूख" से पलायन
भूख होती क्या? हमें नही पता
हमने देखा और ,पढ़ा है बस ।
क्यों की हमारी भूख की
दस्तक से पहले ही,भोजन
हमारे सामने होता हैं
हमारी भूख का सामर्थ्य,
हमे पता ही नही,
की ये क्या- क्या करवाती है
ये भूख गाँव को
शहर ले आई थी
मिटा न पाया शहर तो आज
फिर भूख गाँव लौट आई
भूख से भागना और
जीने की लालसा,
देखती है आँखे, हजार बातें
किसे भूख नजर आईऔर
किसी ने अपनी भूख मिटाई
फिर पिसता है आदमी ,
अपनी ही किस्मत के पाटो में
मजदूर मजबूर है
अपनी भूख के हाथों।।।
            संगीता दरक माहेश्वरी
              सर्वाधिकार सुरक्षित

घर की अर्थ व्यवस्था में हमारी भूमिका


कोरोना महामारी के कारण सब बंद है लेकिन हम महिलाओं की रसोई कभी बंद नही रहती हमारी जिम्मेदारियां अभी और बढ़ गई है ,ऐसे वक्त में जब आमदनी का कोई साधन नही है तब हमारी भूमिका रसोई से लेकर अर्थ तक हो जाती है पढ़िए मेरे विचार...

आज रसोई में क्या बनाया जाये ।
क्या चीज ख़त्म हुई है किसका स्टॉक है लॉक डाउन और कोरोना के कारण घर की सब्जी दाल ही बना ले आदि का ध्यान हम महिलाये ही रखती है
हम नारियों के बिना सृष्टि का हर काम अधूरा है
घर की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में हम नारियों की  भूमिका
1.स्त्री के बिना  घर की कल्पना संभव ही नहीं है नारी जीवन की धुरी है जब सारे व्यापार व्यवसाय और कामकाज बंद है तब भी हमारा काम चलता रहता है हमे कोई छुट्टी नही कोई अवकाश नही और हमारी सेलेरी परिवार के सदस्यों की मुस्कान है अभी के समय में डॉ,पुलिस और सफाईकर्मी के कार्य सराहनीय है तो हम लोगो का कार्य भी कुछ कम नहीं कोरोना महामारी से बचने के कारण जो लॉक डाउन हुआ है उससे हमारी आर्थिक व्यवस्था गड़बड़ा गई है आमदनी तो रुक गई है लेकिन खर्च यथावत या यूँ कहु कुछ बड़ गया है ऐसे समय में हमारी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है यूँ तो  परिवार के हर मौके पर चाहे वह खुशी हो चाहे दुख की घड़ी हो हमारीभूमिका महत्वपूर्ण ही है
2.हम महिलाएँ  बचत करने में निपुण होती है  हम बचत ऐसे  वक्त के लिए ही करते हैं हमारे बचत विषमपरिस्थितियों में ही काम आती है  रसोई में हमारी भूमिका अभी हमें घर की सब्जी दाल का उपयोग करना चाहिए और ऐसी खाद्य वस्तुओं का उपयोग कम मात्रा में करना चाहिए जो बाजार से लाना पड़े हमें एक सब्जी  या दाल से भी काम चला लेना चाहिए ।
हमारे आस पास कोई ऐसा व्यक्ति या परिवार भोजन चाहता हो तो उसे हम कम मूल्य पर भोजन बनाकर दे सकते हैं हम घर पर मास्क और सैनिटाइजर भी बना सकते हैं और चाहे तो न्यूनतम मूल्य पर मास्क और सैनिटाइजर दूसरों को दे भी सकते हैं ऐसे समय जब पुरुषों की आमदनी का कोई स्रोत नहीं है तब हम अपनी दक्षता से उनको संबल प्रदान कर सकते है अभी 31मई तक लॉक डाउन का समय हो सकता है और  कोरोना महामारी का नियंत्रण  ना हो  तो ये अवधि बढ़ भी सकती है इसलिये तब तक उचित मात्रा में ही धन का व्यय करें जरूरी हो तभी और लॉक डाउन  खुलने  के बाद फालतू की फिजूलखर्ची ना करें हमें सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए अपने परिवार को स्वस्थ रखना है  हम पहले जो ऑनलाइन खरीदी करते थे उसको नहीं करते हुए हमें देश के व्यापारी भाई से ही खरीददारी करना है अभी
कोरोना महामारी ने हमें अपने पराए की पहचान कराई है विदेशी कंपनियों ने हमारे देश को कोई मदद नहीं की है स्वदेशी कंपनियों ने हीं मदद की है यह ध्यान रखना चाहिए आप अपनी आय के स्रोत ऐसे  भी शुरू कर सकती हैं आप अपने कौशल को मोबाइल के माध्यम से शेयर करके पैसे कमा सकती है
सरकार भी अर्थव्यवस्था को संभालने में बहुत सी  योजनाये शुरु करेंगी हम भीअपनी खर्च को कम करने  के उपाय कर सकते है
3.हम अभी घर का खाना ही खा रहे हैं और गाड़ी का उपयोग भी नही कर रहे हम इस फिजूल खर्ची को भी रोक सकते है   हम अपने परिवार के  उत्सव आयोजन में भी खर्च की संख्या निर्धारित निर्धारित कर सकते है
4.अभी लॉक डाउन के कारण  मृत्युभोज भी बंद हो गए हैं अगर यह हमेशा के लिए बंद हो जाए तो यह फिजूलखर्ची रुक सकती है हमारे समाज में होने वाली शादियों में भी पकवानों की संख्या निर्धारित हो जाए जाए जाए और एक सीमा तक खर्च निर्धारित हो तो इस पर भी फिजूलखर्ची भी फिजूलखर्ची रुक सकती है और  भी  ऐसे रिवाज जिसमें दिखावा होता है और जिसमें फिजूलखर्ची होती वह बंद हो जाना चाहिए ।
5.एक खास बात पहले के समय में हमारे बड़े अपना काम खुद ही करते थे आजकल सभी घरों में कामवाली आती है अभी लॉक डाउन के समय भी तो हम अपना काम खुद कर रहे है फिर हमेशा क्यों नही ये भी हमारी बचत का हिस्सा होगा
हाँ अगर आप जॉब करती है तो ठीक है पर हम अपना काम स्वयं करेंगे तो स्वस्थ भी रहेंगे ।
       जय महेश
        संगीता दरक माहेश्वरी
          सर्वाधिकार सुरक्षित
        
         

#ख्याल_हूँ _तेरा_#Love_think_ of_ you


ख्याल
हूँ तेरा
ख्याल हूँ तेरा, सोच तो सही
हर कदम पर साथ हूँ तेरे
मंजिलो की और कदम बड़ा तो सही

धड़कती हूँ तेरे दिल में,धड़कन सी
तू साँसे लेकर तो देख
तेरी हर बात में ,बात मेरी है
तू बात करके तो देख

तेरा हर ख़्वाब ,मेरी हदों से गुजरता है
तू ख़्वाब को हकीकत करके तो देख
दर्द में शामिल हूँ ,तेरी खुशियों की पहरेदार हूँ

वक्त हूँ  तेरा ,तू आज़माकर तो देख
ख्याल हूँ तेरा, तू मुझे सोच
कर तो देख 

लफ़्ज़ों में शामिल हूँ तेरे,
कागज़ पर उतार कर तो देख  
  तेरी हर साँस पर पहरा है मेरा,
मेरे प्यार की गहराई,
नाप कर तो देख 

  मर न जाऊ ,तो कहना
तू कभी कह कर तो देख
ख्याल हु तेरा ,तू सोचकर तो देख

           संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरे इश्क को,to my love,status,shyari , Love

        मेरे इश्क को❤️
1. मेरे इश्क को रफ्तार देती हैं
तुम्हारी तन्हाइयां
मेरे अक्स में दिखती है
तुम्हारी परछाईयां

2. मेरे इश्क को तेरी आदत सी हो गई हैं
तूने आदतें ही बदल ली ये और बात है

3. इश्क जो मुकम्मल हो जाता तो वो इश्क, इश्क कहाँ रहता
और दर्द को जो दिल में बसाये बैठे है
वो दर्द कहाँ रहता

                 ❤️संगीता दरक माहेश्वरी
                       सर्वाधिकार सुरक्षित

जीवन की उधेड़ बुन


     जीवन की उधेड़बुन
रिश्तो की उधेड़ बुन मै लगी हूँ 
जो मतलब के रिश्ते है,

 नकोउधेड़  रही हूँ 

रूठे रिश्ते बुन रही हूँ ,
जीवन की इस दौड़ -धुप में ,

अपनों का साया हो |
आशाओ की ऐसी चादर बुन रही हूँ !
अनसुलझे ख्वाब,अधूरी चाहतो को उधेड़ रही हूँ  !
सच्चे और नेक चेहरे ,बुन  रही हूँ
चलता रहे जीवन मिलती रहे मंजिले ऐसा काफिला बुन  रही हूँ !!
जिंदगी की उधेड़ बुन में लगी हूँ  |
लम्हा लम्हा बुनती हूँ , सदियों की आस में  !
गम को उधेड़  रही हूँ खुशियों की प्यास में  !
आओ बुनते है ऐसी खुशियों भरी जिंदगी  ,
जिसमे पैबंद ना हो गम का  |
जीवन की उधेड़ बुन में लगी हूँ !!!

संगीता दरक माहेश्वरी 

सर्वाधिकार सुरक्षित 


हर एक दिन माँ के नाम हो,every day mother's name,Maa,

    
               माँ
"माँ " इस शब्द में पूरी सृष्टि समाई हुई है
क्या एक ही दिन माँ को याद करने का होता है  या बिना माँ को  याद किये कोई दिन गुजरे ही नही  ऐसा होता है
जब हम छोटे रहते तो माँ का चेहरा हमारे लिए खास होता है जब बचपन में हम चलना सीखते तो माँ का हाथ उनकी बाहों का हमे जो सहारा मिलता वो किसी जन्न्त से कम नही होता
जैसे जैसे हम बड़े होते हम माँ से दूर होते जाते हम भूल जाते की जिस माँ से हमने जीना  सीखा  हमे लगता है कि हम माँ से ज्यादा समझते हैं
जिस माँ की गोद में जाने के लिये
हम तड़पते है उस माँ के लिये
अब हमारे पास वो तड़प और
वक्त है ही नहीं माँ से बात करने
का उसके पास बैठने का
हमारे पास समय नही
सब अपनी जिंदगी में व्यस्त है माँ बाप को आज भी हमारी फ़िक्र है लेकिन हमें अपने आप से फुर्सत नही
मैं ये भी नही कहती की सब  ऐसे होते हैं लेकिन जो ऐसे है उनको तो समझना होगा
वो आँखे जिनमे कभी  तुम्हारे सपनो की चमक हुआ करती थीं अब धुंधला गई है उनको तुम्हारी परवाह ( नजरो )की जरूरत है
आज भी उनकी धड़कनों को रफ्तार मिल जाती है जब तुम खुश होते हो
अभी भी वक्त है वरना कांधे पर रखकर जब छोड़ने उनको (माँ-पिता )जाओगे तो बड़ा पछताओगे ।लेकिन तब बहुत देर हो चुकी होगी इस दुनिया में सब मिलते एक माँ और पिता का रिश्ता है जो दुबारा नही मिलता
माँ जो कई रिश्तों से गुजरते हुए "माँ" के मुकाम पर ठहर जाती है एक स्त्री जब माँ बनती है तब उसे पूरी कायनात मिल जाती है उसका जीवन पूर्ण हो जाता है
माँ क्या नही बनती हमारे लिये जीवन भर हमारी ढाल बनती माँ आपको नमन है
       संगीता  माहेश्वरी दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित
    

घर से निकला .....

दो वक्त की रोटी कमाने हम कितनी दूर निकल आये,,,,,,

घर से निकला था,,,,,,,,
🏚️घर से निकला था
बहुत सारा वक्त लेकर
पर लगता हैं
सब खर्च हो गया
हो सके तो
माँ थोड़ा वक्त और भिजवा देना
दो वक्त की रोटी,और थोड़ी सी ख्वाहिशे निकला था कमाने, क्या पता था सबकुछ गँवा बैठूँगा!!!
               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                         सर्वाधिकार सुरक्षित
    

ये औरते बेहद अजीब होती हैं,these women are so weird

"महिला दिवस" के अवसर पर पढ़िए मेरी कलम से उम्मीद करती हूँ आप सबको पसंद आएगा🙏🙏

ये औरते बेहद अजीब होती है
"एक पौधा जब जमीन छोड़ता है तो बढ़ता नही लेकिन एक बेटी जब अपने घर से ब्याह कर के पराये घर जाती है तो पूरे घर को संवार देती हैं"
ये औरते बेहद अजीब होती हैं
जहाँ पैदा होती हैं वहाँ ये रहती नही,
माँ का आँचल छोड़ आती हैं भले ही खुद माँ बन जाती है पर माँ को ये भूलती नही ।
पराये घर को कब अपना बना लेती है ,अपनी पसंद अपने शौक सब छोड़कर कब नये सफर पर हमसफ़र के साथ चल पड़ती है ।
नये रिश्तो के साँचे में ढलकर रिश्तों को सँवारती सजाती
अपने हर ख़्वाब को उसकी(पति) आँखों में देखती।
सहजता से सहेजना बखूबी आता है हमे,
परिस्थितियों को भांपकर आंसुओं को थामना और होठों पर मुस्कान बिखेरना बखूबी आता है हमे ।
सच में हमऔरते बेहदअजीब होती है।
अपनी पसंद नापसंद को बदलना और परिवार में सबके साथ पूर्ण रूप से सामंजस्य बैठाना कोई सीखे हमसे।
मायके में अपनी उपस्थिति को महत्वपूर्ण बनानाऔर ससूराल और मायके में तालमेल बैठाना बहुत सहजता से कर जाती है हम
रात-रात भर बच्चों के लिए जागना और बड़े होने पर  उनके लिए हर कदम पर साथ खड़े रहना ।अपने सींचे हुए संस्कारो को अपने बच्चों को देना।बेटी बहन पत्नी माँ और सारे रिश्तो के छोर हमसे जुड़ें उनको बखूबी निभानाआताहै  सच में हम औरतें बेहद अजीब होती है।
अपनी सेहत का ख्याल रखे ना रखे पर सबके लिए डॉक्टर से कम नहीं और सैलरी का महीने के आखिरी दिन तक चलाने का हुनर हमसे बेहतर किसी के पास नहीं सच हम औरते बेहद अजीब होती हैं। अपने अधूरे सपनों को लेकर बच्चों के लिए नए सपने बुनना जीवन के हर मोड़ पर सबके लिए मौजूद रहना ।
बेटी से औरत तक के सफर की कहानी में हर पात्र में जान डाल देती है ।यही बेटी बहन पत्नी माँ और इन रिश्तों के पहलू में ढेर सारे रिश्ते जिनको पनाह मिलती है इनकी सहनशीलता सामंजस्य और स्त्रीत्व में !
"माँ का आँचल अम्बर सा
गोद माँ की धरा हो जैसे"
      
       ✍️संगीता दरक©

आप सभी को महिला दिवस की बधाई

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...