व्यंग्य
होली के रंग राजनीति के संग
होली के दिन पूछा मैंने नेताजी से
क्यों ?आप नहीं खेलेंगे होली ,
वे बोले, क्यों करते हो भाई हंसी ठिठोली अपनी नीति में कई रंग हैं
परिवर्तन की लहर अभी भी संग हैं
रंग लगाओ हमें तुम ही कौन सा,
देखो हर रंग में रम जाएंगे।
काला छोड़ सब हमें प्रिय हैं,
उसमें हम पहले ही पूर्ण हैं,
सफेद रंग हे प्रिय हमारा
समझो है वो सहारा।
वैसे तो हम रंग जमाते हैं,
वर्षभर होली मनाते हैं ,
भ्रष्टाचार घोटालों के रंगों में
डुबकियाँ लगाते हैं,
फिर भी बेरंग हम निकल आते हैं।
वर्ष पर हम खेलते हैं होली
जनता बड़ी हैं भोली
अब तुम ही बोलो रंग हम लगाते हैं ना
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
व्यंग्य "होली के रंग राजनीती के संग" (Sarcasm) Holi colors with politics
#माँ तू ऐसी क्यों है?, #mother why are you like this , #Maa tu aesi kyu h
माँ तू ऐसी क्यों हैं ?
बचपन में जितनी परवाह थी, आज भी वो बरकरार क्यों हैं।
निकल गए हम उम्र की आपाधापी में कितना आगे,
तू आज भी वहीं रुकी क्यों हैं...
माँ तू ऐसी क्यों हैं ?
मैं रिश्तों में उलझ गया,
तेरी पसंद नापसंद को भूल गया,
पर याद तुझे आज भी
मेरी हर बात क्यों हैं...
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
छत तेरी हो न हो, बनती हर
मुसीबत में तुम दीवार
समेटकर सारी खुशियाँ
तू हम पर देती वार
ये छत और दीवार सी क्यों है......
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
बहू के ताने सुनकर भी देती उसको दुआएं,
बेटे की फिर ले लेती सारी बलाएं
जिसके इंतजार में तूने सही
कितनी पीड़ा
आज उस बेटे से कहती कुछ
क्यों नही है...
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
भूल जाएं खुशियों में हम तुझे
लेकिन दर्द से मेरे आज भी
तेरा नाता है,
आह निकलने से पहले जुबाँ पर माँ तेरा ही नाम आता है।
मोम सा हृदय तेरा पाषाण सी सहनशीलता क्यों है
मोम सा ह्रदय तेरा पाषाण सी सहनशीलता क्यों है.......
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
बेटे हो भले ही चार
माँ की ममता सबके हिस्से आती,
एक माँ तू है जो किसी के हिस्से में नहीं आती।
एक होकर चारों में बंट जाती क्यों है
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
बता माँ, तू ऐसी क्यों हैं?
- संगीता दरक
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होली के रंग जीवन के संग
भारत त्योहारो का देश है जानिए मेरे साथ होली का त्यौहार हम क्यों और कैसे मनाते हैं।
होली के रंग,जीवन के संग
जैसा कि हम जानते हैं भारत देश त्योहारों का देश है ,और हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई वजह या परंपरा जरूर होती है ,
मार्च महीना चल रहा हैं ,बसंत का आगाज हो चुका है,आम के पेड़ों पर मोड़ (आम के फूल)आ गए हैं ।
और प्रकृति ने चारों और रंग बिखेर दिया है। जीवन में अनेक रंग, रंग ना हो तो बैरंग जिंदगी जिसमें खुशियों का स्वाद ना होता ।
रंगो के त्यौहार होली की ही आज हम बात करते हैं ,जीवन में रंगों का अपना एक महत्व है ,
हरेक रंग कुछ ना कुछ कहता है,
अंबर नीला है तो धरती हरी भरी है , हमारे यहाँ तो प्रकृति में ही रंग बिखरा है, तो भला हम रंगों से दूर कैसे रह सकते हैं।
होली का त्यौहार फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है एक पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दो भाई थे, हिरण्याक्ष बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था, उसके बढ़ते पापा को देखकर को देखकर भगवान विष्णु ने उनका संहार किया था ।
भाई की मृत्यु से हिरण्यकश्यप बहुत दुखी हुआ ,उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया ,
और उसने अपनी प्रजा से कहा कि वह उसकी पूजा करें ।
उसने भगवान विष्णु को पराजित करने के लिए ब्रह्माजी और शिवजी की तपस्या की ,और वरदान प्राप्त किया। हिरणकश्यप के एक पुत्र प्रहलाद था,
जो बचपन से ही भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था।
प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करते देखा तो, उसे क्रोध आया।
उसने पुत्र प्रहलाद को कई तरह की यातनाएं दी, लेकिन प्रभु की भक्ति के कारण प्रहलाद को आंच नहीं आती।
हिरणकश्यप प्रहलाद को मारने के लिए युक्ति सोचने लगा, हिरण्यंकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। हिरण्यकश्यप ने होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर बैठ जाए।
(होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती)
अग्नि प्रज्वलित होगी तो प्रहलाद जलकर खाक हो जाएगा, और तुम
बाहर आ जाना ।
लेकिन अधर्म और पाप के कारण होलिका जल जाती है। और भगवान विष्णु का जाप करता हुआ प्रहलाद सुरक्षित बाहर आ जाता है ।
उस दिन से होलिका का दहन किया जाता है ।
अधर्म पर धर्म की विजय होती है और इसी उत्साह में सब लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते है
इस पौराणिक मान्यता के कारण ही आज भी हम होलिका दहन करते है लकड़ियों को रखकर ,
गोबर के थेपले जैसे गोलाकार चक्रियो जैसी बड़बुले की माला और गोबर से ही नारियल बनाकर लड़किया होलिका की पूजा करके चढ़ाती है ।
और उस नारियल को भाई द्वारा फोड़ा जाता है , उसके बाद लड़किया अपनी सहेलियों के घर परमल बाँटती है। उसके बाद संध्या मुहर्त में होलिका पुजन और दहन नगर जन द्वारा किया जाता है उसके बाद जलती हुई होली में गेहूँ की बालियों (नई फसल) को भूनकर खाया जाता है ।
होलिका दहन के अगले दिन धुंलेडी होती है ,रंगों का ये त्यौहार पंचमी और सप्तमी और रंग तेरस तक चलता रहता है ।
अलग अलग प्रान्त में रंगों का ये त्यौहार खूब उत्साह से मनाया जाता है।
पूर्णिमा को होलिका दहन और उसके बाद धुलेंडी और रंगपंचमी ।
हमारी परम्पराओं की बात निराली हैं ,
हम होली को जलाते भी हैं और उसे शीतल भी करते हैं छः दिनों तक, और ठंडा खाना बनाकर सप्तमी के दिन खाते है और राजस्थान में तो इस दिन होली भी खेलते है ।
गावँ में तो आज भी चूल्हा( अगले दिन) होली की आग लाकर ही जलाते थे ।
रंगों का ये त्यौहार कई जगह रंग तेरस के दिन भी मनाते है, दिन भर होली खेलते हैं और शाम को भोजन का आयोजन होता है ,जुलुस की भव्यता भी देखने लायक होती है ।
मंदिरों में फागुन के पुरे महीने में भजन और रंग गुलाल की मस्ती छाई रहती है । "बुरा न मानो होली है" ऐसा कहकर सभी को रंग लगाया जाता है जिससे दुश्मन भी दोस्त बन जाता है और चारों और खुशियों के रंग बिखर जाते है ।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, Please bring my old days back, koi lota d mere bite hue din
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
देखा मैंने आज बचपन को अपने आसपास ,
मन में जगी फिर से बच्चा बनने की आस,
मिल जाये मुझको सुहाना बचपन आज, बन जाऊँ बच्चा करूँ सब पर राज ।
ना कोई चिंता ना झमेले,
बस खुशियों के रेलम पेले,
पकड़ा -पकड़ी छुपम छुपाई ,
राजा-मंत्री चोर सिपाही खेल निराले,
सामान्य ज्ञान आसानी से बढाऊँ
लैपटॉप पर नए प्रोजेक्ट पाऊँ
फ्रोजन का बैग डाल कांधे पर इठलाऊँ पिंक ड्रेस पहन कर खुद बॉर्बी डॉल बन जाऊँ
इंद्रधनुषी रंगीन अपनी सारी दुनिया सजाऊँ,
खेलकूद पढ़ाई में हमेशा अव्वल आऊँ,
माता-पिता का सहयोग
और पूरा अटेंशन मैं पाऊँ,
सुबह से शाम तक मस्ती वाली नियमावली बनाऊँ ।
सारे जहाँ को भूलकर माँ की गोद में आऊँ,
कभी टीचर तो कभी पुलिस बन जाऊँ विशद परिष्कृत मन में सुंदर विचार गढ़ जाऊँ,
खुशियाँ इतनी की झोली में समेट ना पाऊँ।
ना ख़्वाहिशों का बोझ,ना भविष्य की चिंता
ना डाइट की फिक्र, बस खुशियों का जिक्र,
वो खुली छत पर सोना, आसमान को निहारना,
टूटते तारे से मन ही मन में कुछ मांगना।
जाने कितने अरमान भरे,
यह प्यारे -प्यारे दिन,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।
संगीता दरक माहेश्वरी
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"लेडीज फर्स्ट " ladies first
लेडीज फर्स्ट
जी हाँ , "पहले आप"
मैं आपकी और मेरी ही बात करः रही हूँ क्यों न आज हम अपनी ही बात करें आज तो दिन भी हमारा हैं
"हैप्पी वुमन्स डे"
और अपने आप से एक वादा यह भी करे की हर दिन हम अपने आपको याद रखेंगे।
"लेडीज फर्स्ट" सब कहते है पर हम लेडीज सबसे आगे कहा रहना
चाहती हैं।
ऐसी बात नही की हम महिलाये पीछे हैं
हम में से कई महिलाओं ने सफलता के नये आयाम स्थापित किये हैं
मेरी बात उन बहनों के लिये जो हमेशा कहती है की, हमें अपने लिये समय नही मिलता,
वो अपने आप को सबके बाद देखती हैं
हमे अपने आप को महत्व देना होगा, तभी हमे कोई और महत्व देगा, और हमारे महत्व को समझ पायेगा।
केरियर हो या अपनी पसंद का खानपान या हो पहनावे की बात या हो हमारा पुराना कोई शौक हम पहले आपने आप को कहा मौका देते है।
हम तो दिन भर में अपने आप से मिल ले वही बहुत है, हमे सबके लिये समय होता है बस हमअपने लिये ही समय नही निकाल पाते ।
हम जिम्मेदारियों के साथ इतना आगे निकल जाते है कि हम आपने आप को छोड़ देते है। और जब कभी कोई आपकी पसंद का काम करता है तो आपको याद आता है कि हाँ ये तो मुझे भी पसंद है, चाहे वो कोई हुनर हो या डांस या गाने की हो बात,
जब हमारे बच्चे छोटे होते हैं, तो हम सोचते है की बच्चे बड़े हो जाये।
लेकिन हम ये भूल जाते हैं,
कि जिम्मेदारियो से कभी मुक्त नही हो पाते ,जीवन में कुछ न कुछ लगा रहता है। इसलिये हमे अपने आप को भी साथ में रखना चाहिये।
विवाह से पहले की स्थिति में जब हम होते है तो बात कुछ और होती है और विवाह के पश्चात नयी जिम्मेदारियों के साथ हम आगे बढ़ते रहते है, मैं ये नही कहती की हमे जिम्मेदारियों का वहन नही करना चाहिए बल्कि हमें अपने आपके प्रति भी सजग होना चाहिए।
40 की उम्र पर करने पर हमें शारीरिक चुनोतियों को स्वीकारना होता है,
वैसे भी हम में फिजिकल बदलाव होते है तो हम महिलाये अक्सर मोटापे का शिकार हो जाती है ,
हमे अपने आपको फिट भी रखना होगा
स्वस्थ और खुश रहेंगे तो हर काम बखुबी करः पाएंगे ।
आप सुबह अपने रूटीन से 10 मिनिट पहले उठिये और आँखे बंद करके अपने बारे में सोचिये हर रोज अपने आप से मिलिए जानिए ,
अपने आप से पूछिए की क्या आप अपने आप से संतुष्ट है ।
दिनभर कितना भी व्यस्त रहे 15 मिनिट अपनी पसंद का काम जरूर करिये ।
अभी भी देर नही हुई है
"जब जागे तब सवेरा" अपने शौक और ख़्वाहिशों को समय देकर सींचिये देखना ये फिर से हरे भरे हो जायेगे
और आप भी मुस्कुराने लगेगी
हम सबमें कोई न कोई हुनर या हममें कोई शौक होता है जो समय के साथ हम उसे समेट देते हैं
अरे हम सबको सहेजते सवाँरते हैं
चाहे वो घर हो या रिश्तें फिर
हम अपने आपको बिखरा हुआ क्यों रखते है ।
हर सुबह आप आईने के सामने जब सँवरती है तब उस चेहरे को गौर से देखिये और उससे हर रोज मिलने का वादा करिये और जब फुर्सत मिले या निकाले उससे बात करिये उसे समझिए
फिर देखिये हर दिन आपका आपके साथ गुजरेगा। और आप अपने आप में वो ढूँढ़ लेंगी जिसको आपने खो दिया।
अपने आप के साथ रहिये मस्त रहिये।
"बेटी,बहन पत्नी माँ और कई किरदार सबमें समाई,
लेकिन बारी जब खुद की आई,
तो क्यों हम खुद को ही भूल गई"
महिला दिवस की आपको ढेरों बधाई
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
ना बंदिशों की परवाह , flight of confidence ,उड़ान है आत्मविश्वास की
ना बंदिशों की परवाह है
ना बंदिशों की परवाह है,
ना परंपराओं की जकड़न
आत्मविश्वास का पहना,मैंने अचकन उम्मीद से भरे पंख मेरे,
हौसलों से भरी उड़ान है ,
समेट लूँ आज,सारा जहां में
कि साथ मेरे सपनों का आसमान है,
ना मन को समझाऊं मैं,
ना पग धरु पीछे में,
ना ख्वाहिशों को अपनी छिपाऊँ में , काबिलियत अपनी सारे जहां
को दिखाऊँ मैं।
कि साथ मेरे सपनों का आसमान है।
तारों के साथ आज,
उजाले की बात करते हैं ।
काले अँधेरो पर आज रौशनी बिखेरते है।
सपनों के आसमान में सूरज सा जगमगाते है,
धरती के तिमिर को पल में हराते है।
बस इतना सा अरमान है ,
साथ मेंरे आज सपनों का आसमान है।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
जय जवान जय किसान, jay jawan jay kisan
जय जवान जय किसान
जय जवान जय किसान
ये है तुम्हारी पहचान।
धरती को चीर के सोना उगाते हो,
पसीने को पानी के जैसे बहाते हो।
फिर आज क्यों हाथों में तुम्हारे "हल" नही।
हवा और पानी का रुख तुम बेहतर समझते हो,
फसल और खरपतवार को अलग करते हो।
अपनी उचित मांगो का तुम भले ही निराकरण करो,
माँ भारती के लाल यूँ तुम राष्ट ध्वज का अपमान ना करो।
अन्नदाता हो तुम, यूँ अपने आप को बदनाम ना करो।
अपनी जमीं अपना है आसमाँ,
फिर क्यों दूसरो के बहकावे में आते हो।
अपनी धरती माँ का शीश झुकाते हो।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
आसान नही होता, wouldn't be easy ,aasan nhi hota
Hello दोस्तों,
जीवन में क्या सब आसान होता है,कितना कुछ सहेजना और छोड़ना पड़ता है ,यहाँ कुछ भी आसान नही है ,
पढ़िये मेरी रचना
आसान नही होता
आसान नहीं होता
आसान नहीं होता
बिखरते पलों को समेटना
और,
नये लम्हों को सजाना,
अनकही बातों को यूँ संभालना,
कहाँ आसान होता है।
ज़िंदगी के शोर में ,
ख्वाहिशों की चुप्पी को सुनना,
कहाँ आसान होता है।
हर बार अपने आप से मिलना,
मिलकर भी अनदेखा करना ,
कहाँ आसान होता है।
रिश्तों को निभाना और
अपनी खुशी को बयां करना,
कहाँ आसान होता है।
हर बार जीना और
जीने के लिये मरना ,
कहाँ आसान होता है...।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
मेरा हिसाब,mera hisab,my account
मेरा हिसाब,,,,,,,,,
👨साल का आखिरी महीना आज सबके हिसाब करके नये साल से नयी शुरुआत करनी होगी
........और मेरा हिसाब👩
बेटी बहन ,पत्नी बहु और माँ कितने ही किरदारों में,. मैं सिमटी
हर किरदार को बखुबी निभाती
इन सब में अपने आप को भी
भूल जाती ।
बेटी बनती तो भाई नाराज और
बहन बनती तो भाभी नाराज हरेक को मुझसे अपेक्षाएं।
पत्नी और बहू के किरदार में तालमेल कभी सास की ख़ुशी तो कभी पति की इच्छाओं का सम्मान,
बच्चो के लिये कभी ढाल बनती तो,
कभी बन जाती बिना डिग्री लिये बेमिसाल वकील ,जो हर दलील में खुद को ही गवाह और मुजरिम भी मानती।
कभी सोचती हूँ, ईश्वर ने नारी को ऐसे रचा जो हर साँचे में फिट बैठता है।
ढेरों किरदार हर रोज निभाती ना कोई पगार ना छुट्टी और ना इंनक्रीमेन्ट की झंझट।
कभी मायके तो कभी ससुराल में,
मैं हरदम सामंजस्य के पूल बनाती
और अपने सफर को आसान
बनाने की कोशिश में लगी रहती ।
मायके में रहती तो जी जान लुटाती पर उस घर को अपना न कह पाती।
और कभी जो अपना हक मांग
लिया तो,
सबकी नजरो में गलत ठहराई जाती।
और ससुराल के घर को वो सर्वस्य सौंपकर भी अपना नही जता सकती कहने को वो हाउस वाइफ होती है पर बात जब कभी आत्मसम्म्मान की आती, और बात अलगाव पर पहुँचती तो उसे अहसास होता की वास्तव में उसका घर है कहाँ।
जमीं का टुकड़ा ,कीमत चुकाकर खरीदो और पैसों के बल पर मकान बना लो
पर उसको घर स्त्री ही बना सकती है
जी हाँ आज भी ऐसे घर जहाँ गृहलक्ष्मी
का वास नही वहाँ सुकूँन नहीं।
इसलिये कभी हमारा भी आकलन कर लिया करो
आपके हिसाब के एक हिस्से में हमसे ही आपका पलड़ा भारी है
"माना कि पुरुष के पीछे नारी चलती है पर संसार नारी के बिना नही चलता"
संगीता दरक©
#यूँ तो अक्सर, #yes so often , #yu to akser
हम हर रोज कितनों से मिलते है लेकिन कोई ऐसा मिलता है जो सबसे अलग होता है ........
यूँ तो अक्सर.........
यूँ तो अक़्सर मिलते हैं ,
बहुत से लोग इस जहाँ में।
मग़र कोई मिलता नहीं ,मुझसे
जैसे तुम मिलते हो।
दिन ढलता है, पलक झपकते
रात गुज़र जाती है,
और तुम शाम की तरह बस
एहसास में रह जाते हो।
मेरी हर बात, हर चुप्पी में
तुम ही तुम होते हो ।
मग़र शब्दों के बादलों में
चाँद की जैसे छुप जाया करते हो।
किसी नज़ारे में कोई बात
नहीं होती,
हर बात बेबात,
जब कभी... जहाँ कहीं... तुम मेरे इर्दगिर्द होते हो।।।।
संगीता दरक
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पुरुष, Male, purush
. ।। पुरुष।।
ये पुरुष, जैसे विशाल समंदर का आगाज़
अनंत गहराई उसमें छिपे राज़
छत मेरी,सर पे उसके
जिम्मेदारियों का ताज
भावनाओं के किनारों में,
ये कभी बंधता नहीं
कभी शांत, कभी उफ़ना के,
शांत रहता नहीं
वोअपनी बात,कभी किसी से
कहता भी नही,
रिश्तों में बंधा हुआ बेटा,भाई पति,व पिता
सबके सपनों को सदा
अपनी आँखों में बुनता
हमेशा अपने चेहरे पर,
मुसकान से खिलता,
विषम परिस्तिथियों में जैसे
मजबूत कांधा हो ,
प्रकृति ने इसे जैसे अति
कठोरता से सँवारा हो ।
बचपने से बुढ़ापा मज़बूती से
उसे निखारा हो ।
अपनी भावनाओ को वो,
बाखूबी से छिपाता है ,
बेटी,बहन,पत्नी,माँ के
लिये खुशियाँ लाता है
इच्छाऐं बेच कर,वो सपने सबके ख़रीदता है
हाँ ये पुरुष समंदर सा होता है ......
✍️संगीता दरक
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#तुम और यादे , #you and memories#
"तुम और गुलाब "
तेरी यादों से भरी यह किताब,
उस पर यह गुलाब ।
क्या कहूँ, तेरी हर बात बेहिसाब। अनगिनत लम्हें,जो भुलाए नहीं भूलते यादों में आज भी हम मिलते,
खुशियों के फूल हैं खिलते।
बस उस रोज का वह गुलाब ,
और तेरा वह जवाब,
है मेरे लिए नायाब ।
आज भी दिल के कोने में
उसकी खुशबू का पहरा है।
तेरी मेरी यादों का रिश्ता
आज भी गहरा है ।
तुम ,गुलाब और यादों की किताब
❣️❣️✍️संगीता दरक
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स्वाभिमान मेरा भी👩,my self respect
स्वाभिमान मेरा भी.....
आज एक सीरियल में इन शब्दों को सुनकर मेँ सोचती रह गई..........
"स्त्री का स्वाभिमान उसकी जिद और पुरुष की जिद उसका स्वाभिमान"
वाकई ये शब्द हरेक स्त्री के जेहन में
होते है, बस हर कोई कह नही पाता।
अपने आप को महत्व देना,
कोई कम बात नही होती।
कहने को कितना कुछ बदला है,
पर आज भी स्वाभिमान और जिद,
और जिद और स्वाभिमान के बीच
का फासला कम नही हुआ ।
आज भी पुरुष का अहंकार ज्यों का त्यों है और स्त्री का समर्पण आज भी बरकरार है ।
स्त्री को रिश्तों को निभाने की दुहाई दी जाती है,और संस्कारों की दीवार खड़ी कर दी जाती है ।
पति पत्नी के रिश्तों में तनातनी हो या रिश्ता टूटने की कगार पर हो तो सबसे ज्यादा गलती पत्नी की ही निकाली जाती है ,अभिप्रायः यह है कि समर्पण स्त्री के हिस्से ही आया है। त्रेता युग में सीता जी ने त्याग किया और आज भी स्त्रियों से त्याग की अपेक्षा की जाती है,
और उनको खरा उतरना भी पड़ता है अपने को सही साबित करने के लिये करना पड़ता है।
मैं यह भी नही कहती की समय परिवर्तन नही हुआ पर सोच वही है।
ना में रिश्तों को तोड़ने के पैरवी कर रही हूँ ,मैं तो बस मन को समझने और स्वाभिमान को बरकरार रखने की पक्ष में हूँ,।
आपकी जिद का सम्मान होता है ,
तो हमारे स्वाभिमान की कद्र भी होनी चाहिए। और ये अपेक्षा मायके और ससुराल दोनों पक्षों के हरेक रिश्ते से रहती है।
रिश्तों की डोर की पहली और दूसरी
दोनों छोर की और नारी ही होती है
और रिश्ता बरकरार रखने में
नारी की ही भूमिका महत्वपूर्ण होती है ।फिर हर बार उसको समझने में ही कमी क्यों है सोचियेगा जरूर✍️
संगीता दरक©
मतलब के रिश्तों में,matlab k rishto m,
मतलब के रिश्तों में,
बेमतलब उलझने लगे।
परायों की भीड़ में,
हम अपनों को ढूंढने लगे।
चंद रोज की है जिंदगी,
और इसे हम अपना समझने लगे।
ख़्वाहिशें अपनी भूलकर,
सींचे जिनके सपने,
बदल गए वो ,
ना रहे अब अपने।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
मैं अक्षर, letter i ,M akasher
मैं अक्षर✍️
और अक्षर से बना शब्द।
शब्दो से तुक मिले तो बने जीवन की कविता,
और शब्दों के ताने बाने से बुनी ये कहानियां
जीवन की कहानी या कहानी के आसपास जीवन,
कहानी मन को सुहाती जब सुखद होता उसका परिणाम।
और दुःखद अंत होता जो हो मन उदास उठते सो सवाल ।
कहानी कागज पर हो, और कलम करती हो फैसला।
तो देते मोड़ अपने हिसाब से, और जो हो जीवन की कहानी तो उस ईश्वर के हाथ हमारी कहानी की कलम
और भाग्य का कागज जो होता तकदीर में लिख देता वो।
कहानी दिखाती है जीवन को आईना बिन बोले बहुत कुछ कह जाती ।
कहानी के पात्र हमारे जेहन मे घुमते,
और कभी हम उन पात्रों में खो जाते।
कहानियां नये मोड़ देती जीवन को ताजगी से भर देती।
कहानियां कल्पना की धरा पर सजती सँवरती और कभी भटके हुए को राह दिखाती तो कभी उदास चेहरों पर मुस्कान बिखेर जाती
बुलन्दी को छूने वाले और महान लोगो की कहानियां करती हमे प्रेरित उंचाइयों को छूने को ।
कहानियां का सफर बंद किताबो और लाइब्रेरी, तक था लेकिन आज मोबाइल लेपटॉप की स्क्रीन पर आकर ये ठहरा है
बहुत सारे मन पर आज भी कहानियों का पहरा है।
इन कहानियों को कभी सच्चे शब्दों में तो कभी काल्पनिक शब्दों में गढ़ा जाता ।
सच में ये कहानियां साँसे लेती है जीती है
अनंत समय तक ..........
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
जी लो..ये जिंदगी,live this life
जी लो........ये जिंदगी
जान लो जीवन का मर्म,
कर लो अच्छे कर्म।
जो किसी को दुःख पहुँचाओगे,
तो सुख कहाँ से तुम पाओगे।
रिश्तों में तुम कड़वाहट न घोलो,
हँसकर मीठा तुम सबसे बोलो।
क्या तुम लाए क्या ले जाओगे,
अपनी अच्छी यादें ही,
यहाँ छोड़ जाओगे।
छोटा सा जीवन है,
कर्म अच्छे तुम कर लो।
खाते में ढेर सारा अपने
पुण्य अर्जित कर लो।।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
बेजार सी एक रात,a poor night
बेजार सी एक रात
बेजार सी एक रात आँखों में,
आज मेरे यूँ उतरती है।
ख्वाबो की खलिश,आँखों को
यूँ खटकती हैं।
ख्वाहिशों की बंजर जमीं में
रेगिस्तान सी पसरी हुई यादे
कैक्टस सी चुभ रही है।
अँधेरी रात आँखों से
कतरा-कतरा बह रही हैं।
बेताब है आँखे मेरी पाने
को आफताब
शायद अब्र उजाले के ले आए।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
ये दिसंबर ,december
ये दिसम्बर
अधूरे ख़्वाब और
पूरी हुई मन्नतों का गवाह है
ये दिसम्बर।
मिली हुई मंजिलो और
अधूरे सफर का हमसफ़र है
ये दिसम्बर।
किसको क्या मिला,किसे है गिला
हिसाब सबका रखता है
ये दिसम्बर।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
वो शादियां वो रस्म रिवाज ,Those marriages, those rituals,
कितना कुछ बदल गया समय के साथ-साथ
रीत रिवाज और हमारे पुराने अंदाज ,पहले के शादी समारोह में खर्च कम और आनन्द अधिक मिलता था और अब सब बदल गया ।
इन्ही सबको दर्शाती मेरी रचना पढ़िये और याद कीजिये पुराने दिनों को और हो सके तो कुछ सोचियेगा 🙏🙏
"वो शादियां वो रस्म रिवाज"
जाने कहा गई,
वो शादियां वो रस्म रिवाज़।
शरमाई सी दुल्हन और दूल्हे के अंदाज।
वो उन दिनों की रौनक ,
और घर को सजाना,
पड़ोसियों के घर मेहमान को ठहराना ।
वो गीत वो बताशों की मिठास,
वो अपनों के साथ,ख़ुशी और अट्टहास।
वो हल्दी की खुशबु , मेहंदी वाले हाथ,
जाने कहा गई वो शादियां वो रस्म
रिवाज़।
वो दुल्है को देखने की होड़,
वो बारात की भीड़।
वो हर द्वार पर दूल्हे का स्वागत ,
जाने कहा गई हर वो बात,
वो शादियां वो रस्म रिवाज़।
वो स्वागत,आदर और सत्कार,
वो भोजन परोसने की मीठी मनुहार,
वो मीठी नोकझोंक वो तकरार।
जाने कहा गई वो शादियां,
वो रस्म रिवाज़।
वो रस्में जिनमें देते नेक,
और सबके पीछे छिपी वजह अनेक,
वो सात फेरों के साथ,
वचनों की सौगात,
जाने कहा गई वो हर बात
रिश्तों के गठबंधन की मजबूत गाँठ,
वो कम खर्च के महंगे ठाठ।
जाने कहा गई वो शादियां वो रस्म रिवाज़।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
नये साल में फिर.......
नये साल में फिर
नये साल में फिर ,मुलाकात होगी।
फिर दिल से दिल की बात होगी।
कुछ यादे, कुछ फ़साने,
कुछ हमारे कुछ तुम्हारे।
नयी आशाओं के दीप जलेंगे,
उम्मीदों के फूल खिलेंगे।
फिर नई कोई बात होगी,
नये साल में फिर मुलाकात होगी ।
फिर साँझ ढलेगी सुप्रभात होगी,
आँगन में फूलों की महक होगी,
नये साल में फिर मुलाकात होगी।
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
अलविदा 2020
अलविदा 2020
बीतने को है एक साँझ,
होने को है एक नयी भोर।
नया उजाला नयी उमंग,
फैली चारो और।
नया गगन नयी चली है बयार,
खोलकर पंख उड़ने को,
जिंदगी है बेकरार।
सपनो की कश्ती में सवार,
किनारे की और।
बीतने को है एक साँझ
होने को है एक नयी भोर।
नयी ख्वाहिशे नयी उमंगें
ले रही है आकार,
नया सफर नयी मंजिले
भी हैं तैयार।
बीतने को है एक साँझ,
होने को है एक नयी भोर।
"थमता नही सफर जिंदगी का,
बस मुसाफिर बदल जाते है,
आइने वही रहते,
बस चेहरे बदल जाते है"।
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
हाथों की लकीरे, hand lines , hatho ki lakiren
क्यों हम कर्म से ज्यादा विश्वास हाथों की लकीरों पर करते है ।आज इसी विषय पर मेरी रचना पढ़िये और सोचिये और अपने कर्मो पर विश्वास रखिये।🙏
हाथों की लकीरे
हाथों की लकीरों को हाथों में रहने दे
है मंजूर, तकदीर को जो होने दे
मुकद्दर से जो मिलता है,
वो समेट लिया कर
आरजुएं इतनी भी अच्छी नही होती
पढ़ले तकदीर हर कोई हमारी
इतनी सस्ती भी नही होती
वक्त से पहले और नसीब से ज्यादा
किसी को मिलता नही
काँटों के बिना गुलशन कभी
महकता नही
जो बैठे है तकदीर को पढ़ने वाले
पूछो उनसे अपनी किस्मत का हाल
रख भरोसा तू नेक काम किये जा
तकदीर पूछेगी तुझसे बता
तेरी रजा क्या है।।।
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं,These lamps burn themselves
जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास भर दे
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं
जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
मिट जाए, हर मन की त्रास
रिश्तों में हो भरी मिठास
अपने कर्मों का हो एहसास
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
ईश्वर में हर पल हो आस्था,
सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
बड़ो को मिलता हो सम्मान
मिट जाए जग से अज्ञान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
एक वक्त की बात है,once upon a time ,ek vkt ki bat h
मन कभी-कभी अतीत में चला जाता है और पुरानी बातों को याद करता है मेरी कलम आज यही लिख रही है
एक वक्त की बात है
जब गाँव शहर सब एक थे,
मुखोटों के पीछे छुपे,
दिल सबके नेक थे।
जब वादों की कीमत पर ,
जलती थी इंसानियत।
और ख्वाबो के सितारों पर,
चमकती थी कायनात।
समय की हवाओं में बहके,
ऐसे दूर हम आ गए।
जहाँ गाँव हुए चकाचोंध
शहर में समा गए।
लोग बदले सोच बदली और
चल पड़े तलाश में मौजमस्ती
बड़ी ईमारत और सुनहरे
ख़्वाब में।
उस कस्तूरी की तलाश में
भटका वो सारा जँहा ।
जब सब बसा सकता था
वही अपना गाँव अपना देश,
अपनी दुनिया ।
भूल गया वो गाँव,
जो एक वक्त देश था।
बदल गये सब लोग,
जैसे कल का उतरा वेश था ।।
एक वक्त की बात है।।।
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
बचपन बचाओ,save childhood, Bachpan bachao
आप सभी पाठकों को नमस्कार
बाल मजदूरी में बचपन खो जाता है ,
बचपन बचाओ
इसी विषय पर मेरी आज की रचना जो मार्च 1997 में दैनिक भास्कर समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी , प्रस्तुत है
(बालशोषण)
बचपन बचाओ
बचपन में मैं खेला नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
गरीबी का पालन पोषण
करता,
अपने बचपन को उसमें
दफन करता।
कंधों पर मेरे घर का बोझ था।
शरीर से कोमल कमजोर था,
सुबह से शाम तक हुक्म चलता था।
बचपन से ही जुल्म हुए मुझ पर कितने। बचपन में मैं खेला नहीं,
स्कूल को मैंने देखा नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
कंधे मेंरे बोझ से दबे हुए,
आंखें मेरी सपनों में डूबी हुई।
मैं भी बच्चा बनना चाहता हूँ,
मैं भी पढ़ना चाहता हूँ।
बचपन मेरा बीत न जाए।
सपने मेरे बिखर न जाए।
कोई हमारा बचपन बचाओ ।
बड़ों से हमें बच्चा बनाओ।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
ये जीवन है y jivan h, this is life
जीवन कैसे रचता है बसता है उतार चढ़ाव
में भी ठहरता नही
पढ़िये मेरी रचना में बीज का सफर
जीवन के छोर तक🙏
ये जीवन है......
सृजन को लालायित बीज,
बना इक पौधा
यौवन की दहलीज पे आके,
सजा वृक्ष घना
फैली शाखाएँ चारों ओर,
रचाया संसार अपना
फलता फूलता, सुगंधित, सुरचित,
तन पर अपने नीड़ बनाता
सुख, दुख की छांव और धूप तले
जड़ें गहराईं, शाखाओं ने आकाश नापा
इक ओर किसी डाली के
बिछड़ने का शोक मनाया,
तो दूसरी ओर नयी कोपलों की
परवरिश में खिलखिलाया,
पतझड़ और बहार के मौसम को
उसने हरदम यूँ सहज अपनाया।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
आम आदमी हूँ मैं
सबसे सरल और सीधा लेकिन मुश्किलों भरा जीवन जीने वाला आम इंसान ।
लेकिन उसे अपने आप को हरेक परिस्तिथियों में खुश रखना आता है यही सब मेरी रचना में पढ़िये.....
आम आदमी हूँ
जानता हूँ, जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती हैं।
जीएसटी और नोटबंदी को
त्यौहार सा मना लेता हूँ।
दिये हो तो रोशन कर देता हूँ
वरना ,अंधेरों से काम चला लेता हूँ। आम आदमी हूँ,ख्वाहिशें
बेचकर गुजारा कर लेता हूँ।
उलझता नहीं मैं अच्छे दिनों की
प्यास में।
जानता हूँ, बरसो बैठा रहा
मेरा राम भी इसी आस में ।
काले और सफेद(धन)
के चक्कर में नहीं पड़ता ,
मिट्टी में सोना उगाना जानता हूँ।
जानता नहीं मैं, राजनीति के
दाँव पेच लेकिन 56 इंच का
सीना लिए पहरेदारी करता हूँ
सीमा पर ।
आम आदमी हूँ साहब जीना जानता हूँ
आता है मुझे, अपनी ख्वाहिशों
पर पैबंद लगाना ।
देता हूँ बच्चों को आसमाँ उड़ने के
लिए पर , बंदिशें आरक्षण
की भी जानता हूँ।
सामान्य सी मुस्कान लिए आरक्षण
का दर्द भी झेल जाता हूँ।
हँसता हूँ हर पल जिंदगी जी लेता हूँ। जानता हूँ , जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती है मुझे !!!
✍️संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts
शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान संगीता दरक माहेश्वरी
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नमस्कार दोस्तो आज मेरी रचना का विषय है " माहेश्वरी हैं हम" जी में भगवान महेश से उतपन्न माहेश्वरी समाज की बात कर रही हूँ माहेश्...
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कोरोना को हराना है पडी है देश पर कोरोना की मार मिलकर करो इस पर प्रहार थोड़ा सा धैर्य और संयम रखो ना जाओ बाजार लगाओ ना भीड़ रखो दूरियां स...