वक्त हूँ. Wakt hu , i am the time

 वक्त ,समय जी हाँ बहुत कीमती है आजकल किसी को भी समय नही है हर कोई कहता है कि समय नही है  अपने अपनों के लिये भी वक्त नही निकालते है और कभी बेवजह भी खर्च कर देते है ।
पढ़िये मेरी रचना 
   
     वक्त हूँ मैं

वक्त हूँ
वक्त हूँ ,यूँ बेहिसाब खर्च न किया कर,
    कभी अपनों से मिलकर ,
   अपनी खबर भी लिया कर ।
ख्वाईशो में अपनेें,
सपने उनके भी मिला लिया कर ,
देखकर जो तुझे जीते है,
कभी उनके लिये भी जी लिया कर ।
बुन लिया कर ख़्वाब,उनके भी
 जो  आज भी पैबंद
अपने खुद सीते है।
 बेशक उड़ तू आसमानों में,
पर पैर जमी पर रखा कर
साथ उनके भी कभी
चल लिया कर ।
जिनके बगैर तू चलता न था ।
छत है ,वो घर की दीवारों से
लगाये रखना ।
आशीष उनका अपने
हिस्से में बचाये रखना।
वक्त हूँ ,यूँ बेहिसाब खर्च
न  किया कर ।
पर अपनों पर यु बेगानो
सा हिसाब ना लगाया कर!!
वक्त ही हूँ अपने  - अपनों
पर बेहिसाब खर्च किया कर!!
                    संगीता दरक माहेश्वरी
                सर्वाधिकार सुरक्षित

2 comments:

  1. बहुत सुंदर सृजन

    मधु भूतड़ा 'अक्षरा'
    गुलाबी नगरी जयपुर से

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