#हाय रे महगांई, #hi re inflation

           "हाय रे महंगाई "
  सुबह से शाम तक दौड़ रहा है 
आदमी
 पता नहीं ,किसके पीछे भाग
रहा है आदमी
  जितना पास जाता है, उतना
दूर होता है
    पता नहीं, किसके पीछे भाग
रहा है आदमी
         ऐसी ही है महंगाई.....
   सुबह से शाम तक करती है
पीछा महंगाई
चीनी से लेकर दाल तक छाई हैं  महंगाई

  काजू ,बादाम तो मिलते नहीं थे
अब दाल रोटी भी नसीब
नहीं होती।  
बच्चो को पढ़ाना हो गया है भारी
 सैलेरी महीने से पहले हो जाती है
पूरी

आते है त्यौहार ,मनाने पड़ते है।
  घर में तेल हो न हो तो भी दीये जलाना पड़ते है

जेब में पैसे हो न हो,बच्चो को
तोहफे दिलाने पड़ते है
   घर का खर्च चलाना हो
गया है मुश्किल
      आसमान चढ़ती महंगाई ने
दिन में तारे दिखा दिये।
            ✍️संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित

1 comment:

  1. सही कहा आपने अब तो दाल भी कहना मुश्क्रिल हो गया है आम जनता के लिए। और प्रतिपल बढ़ रही हैं ये महँगाई।

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