#जीवन ये चल रहा है,#life goes on

      जीवन ये चल रहा है
जीवन ये कैसा चल रहा हैं,
अपना ही अपने को छल रहा हैं।
हर तरफ कैसा ये माहौल है,
हरेक चेहरे पर उठता एक सवाल है।
बढ़ती महंगाई और जीवन की जिम्मेदारियाँ,
कम आमदनी में सबकी (सारे खर्च की) हिस्सेदारियां।
वो परिवार के साथ में बैठना,
और दिल खोलकर बातें करना।
अब तो सब सपना सा हो गया हैं
वक्त की अपनों के पास,
कमी सी हो गई है।
दुनियां की भीड़ में,
सुकूँ को तलाशता है आदमी।
अपनों के बीच अपनेपन
को तरसता है आदमी।
अपने आप से देखो
भाग रहा है आदमी।
और अंत में...
तलाश रहा हूँ मैं भी वही,
सुकून इस जहाँ में
शायद नयी कोई भोर होगी
और जीवन मेरा उजाले
से भर जायेगा।।
                   संगीता दरक
                सर्वाधिकार सुरक्षित

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बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts

 शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि  यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान         संगीता दरक माहेश्वरी