मेरा हिसाब,,,,,,,,,
👨साल का आखिरी महीना आज सबके हिसाब करके नये साल से नयी शुरुआत करनी होगी
........और मेरा हिसाब👩
बेटी बहन ,पत्नी बहु और माँ कितने ही किरदारों में,. मैं सिमटी
हर किरदार को बखुबी निभाती
इन सब में अपने आप को भी
भूल जाती ।
बेटी बनती तो भाई नाराज और
बहन बनती तो भाभी नाराज हरेक को मुझसे अपेक्षाएं।
पत्नी और बहू के किरदार में तालमेल कभी सास की ख़ुशी तो कभी पति की इच्छाओं का सम्मान,
बच्चो के लिये कभी ढाल बनती तो,
कभी बन जाती बिना डिग्री लिये बेमिसाल वकील ,जो हर दलील में खुद को ही गवाह और मुजरिम भी मानती।
कभी सोचती हूँ, ईश्वर ने नारी को ऐसे रचा जो हर साँचे में फिट बैठता है।
ढेरों किरदार हर रोज निभाती ना कोई पगार ना छुट्टी और ना इंनक्रीमेन्ट की झंझट।
कभी मायके तो कभी ससुराल में,
मैं हरदम सामंजस्य के पूल बनाती
और अपने सफर को आसान
बनाने की कोशिश में लगी रहती ।
मायके में रहती तो जी जान लुटाती पर उस घर को अपना न कह पाती।
और कभी जो अपना हक मांग
लिया तो,
सबकी नजरो में गलत ठहराई जाती।
और ससुराल के घर को वो सर्वस्य सौंपकर भी अपना नही जता सकती कहने को वो हाउस वाइफ होती है पर बात जब कभी आत्मसम्म्मान की आती, और बात अलगाव पर पहुँचती तो उसे अहसास होता की वास्तव में उसका घर है कहाँ।
जमीं का टुकड़ा ,कीमत चुकाकर खरीदो और पैसों के बल पर मकान बना लो
पर उसको घर स्त्री ही बना सकती है
जी हाँ आज भी ऐसे घर जहाँ गृहलक्ष्मी
का वास नही वहाँ सुकूँन नहीं।
इसलिये कभी हमारा भी आकलन कर लिया करो
आपके हिसाब के एक हिस्से में हमसे ही आपका पलड़ा भारी है
"माना कि पुरुष के पीछे नारी चलती है पर संसार नारी के बिना नही चलता"
संगीता दरक©
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
मेरा हिसाब,mera hisab,my account
#यूँ तो अक्सर, #yes so often , #yu to akser
हम हर रोज कितनों से मिलते है लेकिन कोई ऐसा मिलता है जो सबसे अलग होता है ........
यूँ तो अक्सर.........
यूँ तो अक़्सर मिलते हैं ,
बहुत से लोग इस जहाँ में।
मग़र कोई मिलता नहीं ,मुझसे
जैसे तुम मिलते हो।
दिन ढलता है, पलक झपकते
रात गुज़र जाती है,
और तुम शाम की तरह बस
एहसास में रह जाते हो।
मेरी हर बात, हर चुप्पी में
तुम ही तुम होते हो ।
मग़र शब्दों के बादलों में
चाँद की जैसे छुप जाया करते हो।
किसी नज़ारे में कोई बात
नहीं होती,
हर बात बेबात,
जब कभी... जहाँ कहीं... तुम मेरे इर्दगिर्द होते हो।।।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
पुरुष, Male, purush
. ।। पुरुष।।
ये पुरुष, जैसे विशाल समंदर का आगाज़
अनंत गहराई उसमें छिपे राज़
छत मेरी,सर पे उसके
जिम्मेदारियों का ताज
भावनाओं के किनारों में,
ये कभी बंधता नहीं
कभी शांत, कभी उफ़ना के,
शांत रहता नहीं
वोअपनी बात,कभी किसी से
कहता भी नही,
रिश्तों में बंधा हुआ बेटा,भाई पति,व पिता
सबके सपनों को सदा
अपनी आँखों में बुनता
हमेशा अपने चेहरे पर,
मुसकान से खिलता,
विषम परिस्तिथियों में जैसे
मजबूत कांधा हो ,
प्रकृति ने इसे जैसे अति
कठोरता से सँवारा हो ।
बचपने से बुढ़ापा मज़बूती से
उसे निखारा हो ।
अपनी भावनाओ को वो,
बाखूबी से छिपाता है ,
बेटी,बहन,पत्नी,माँ के
लिये खुशियाँ लाता है
इच्छाऐं बेच कर,वो सपने सबके ख़रीदता है
हाँ ये पुरुष समंदर सा होता है ......
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
#तुम और यादे , #you and memories#
"तुम और गुलाब "
तेरी यादों से भरी यह किताब,
उस पर यह गुलाब ।
क्या कहूँ, तेरी हर बात बेहिसाब। अनगिनत लम्हें,जो भुलाए नहीं भूलते यादों में आज भी हम मिलते,
खुशियों के फूल हैं खिलते।
बस उस रोज का वह गुलाब ,
और तेरा वह जवाब,
है मेरे लिए नायाब ।
आज भी दिल के कोने में
उसकी खुशबू का पहरा है।
तेरी मेरी यादों का रिश्ता
आज भी गहरा है ।
तुम ,गुलाब और यादों की किताब
❣️❣️✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वाभिमान मेरा भी👩,my self respect
स्वाभिमान मेरा भी.....
आज एक सीरियल में इन शब्दों को सुनकर मेँ सोचती रह गई..........
"स्त्री का स्वाभिमान उसकी जिद और पुरुष की जिद उसका स्वाभिमान"
वाकई ये शब्द हरेक स्त्री के जेहन में
होते है, बस हर कोई कह नही पाता।
अपने आप को महत्व देना,
कोई कम बात नही होती।
कहने को कितना कुछ बदला है,
पर आज भी स्वाभिमान और जिद,
और जिद और स्वाभिमान के बीच
का फासला कम नही हुआ ।
आज भी पुरुष का अहंकार ज्यों का त्यों है और स्त्री का समर्पण आज भी बरकरार है ।
स्त्री को रिश्तों को निभाने की दुहाई दी जाती है,और संस्कारों की दीवार खड़ी कर दी जाती है ।
पति पत्नी के रिश्तों में तनातनी हो या रिश्ता टूटने की कगार पर हो तो सबसे ज्यादा गलती पत्नी की ही निकाली जाती है ,अभिप्रायः यह है कि समर्पण स्त्री के हिस्से ही आया है। त्रेता युग में सीता जी ने त्याग किया और आज भी स्त्रियों से त्याग की अपेक्षा की जाती है,
और उनको खरा उतरना भी पड़ता है अपने को सही साबित करने के लिये करना पड़ता है।
मैं यह भी नही कहती की समय परिवर्तन नही हुआ पर सोच वही है।
ना में रिश्तों को तोड़ने के पैरवी कर रही हूँ ,मैं तो बस मन को समझने और स्वाभिमान को बरकरार रखने की पक्ष में हूँ,।
आपकी जिद का सम्मान होता है ,
तो हमारे स्वाभिमान की कद्र भी होनी चाहिए। और ये अपेक्षा मायके और ससुराल दोनों पक्षों के हरेक रिश्ते से रहती है।
रिश्तों की डोर की पहली और दूसरी
दोनों छोर की और नारी ही होती है
और रिश्ता बरकरार रखने में
नारी की ही भूमिका महत्वपूर्ण होती है ।फिर हर बार उसको समझने में ही कमी क्यों है सोचियेगा जरूर✍️
संगीता दरक©
मतलब के रिश्तों में,matlab k rishto m,
मतलब के रिश्तों में,
बेमतलब उलझने लगे।
परायों की भीड़ में,
हम अपनों को ढूंढने लगे।
चंद रोज की है जिंदगी,
और इसे हम अपना समझने लगे।
ख़्वाहिशें अपनी भूलकर,
सींचे जिनके सपने,
बदल गए वो ,
ना रहे अब अपने।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
मैं अक्षर, letter i ,M akasher
मैं अक्षर✍️
और अक्षर से बना शब्द।
शब्दो से तुक मिले तो बने जीवन की कविता,
और शब्दों के ताने बाने से बुनी ये कहानियां
जीवन की कहानी या कहानी के आसपास जीवन,
कहानी मन को सुहाती जब सुखद होता उसका परिणाम।
और दुःखद अंत होता जो हो मन उदास उठते सो सवाल ।
कहानी कागज पर हो, और कलम करती हो फैसला।
तो देते मोड़ अपने हिसाब से, और जो हो जीवन की कहानी तो उस ईश्वर के हाथ हमारी कहानी की कलम
और भाग्य का कागज जो होता तकदीर में लिख देता वो।
कहानी दिखाती है जीवन को आईना बिन बोले बहुत कुछ कह जाती ।
कहानी के पात्र हमारे जेहन मे घुमते,
और कभी हम उन पात्रों में खो जाते।
कहानियां नये मोड़ देती जीवन को ताजगी से भर देती।
कहानियां कल्पना की धरा पर सजती सँवरती और कभी भटके हुए को राह दिखाती तो कभी उदास चेहरों पर मुस्कान बिखेर जाती
बुलन्दी को छूने वाले और महान लोगो की कहानियां करती हमे प्रेरित उंचाइयों को छूने को ।
कहानियां का सफर बंद किताबो और लाइब्रेरी, तक था लेकिन आज मोबाइल लेपटॉप की स्क्रीन पर आकर ये ठहरा है
बहुत सारे मन पर आज भी कहानियों का पहरा है।
इन कहानियों को कभी सच्चे शब्दों में तो कभी काल्पनिक शब्दों में गढ़ा जाता ।
सच में ये कहानियां साँसे लेती है जीती है
अनंत समय तक ..........
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
जी लो..ये जिंदगी,live this life
जी लो........ये जिंदगी
जान लो जीवन का मर्म,
कर लो अच्छे कर्म।
जो किसी को दुःख पहुँचाओगे,
तो सुख कहाँ से तुम पाओगे।
रिश्तों में तुम कड़वाहट न घोलो,
हँसकर मीठा तुम सबसे बोलो।
क्या तुम लाए क्या ले जाओगे,
अपनी अच्छी यादें ही,
यहाँ छोड़ जाओगे।
छोटा सा जीवन है,
कर्म अच्छे तुम कर लो।
खाते में ढेर सारा अपने
पुण्य अर्जित कर लो।।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
बेजार सी एक रात,a poor night
बेजार सी एक रात
बेजार सी एक रात आँखों में,
आज मेरे यूँ उतरती है।
ख्वाबो की खलिश,आँखों को
यूँ खटकती हैं।
ख्वाहिशों की बंजर जमीं में
रेगिस्तान सी पसरी हुई यादे
कैक्टस सी चुभ रही है।
अँधेरी रात आँखों से
कतरा-कतरा बह रही हैं।
बेताब है आँखे मेरी पाने
को आफताब
शायद अब्र उजाले के ले आए।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
ये दिसंबर ,december
ये दिसम्बर
अधूरे ख़्वाब और
पूरी हुई मन्नतों का गवाह है
ये दिसम्बर।
मिली हुई मंजिलो और
अधूरे सफर का हमसफ़र है
ये दिसम्बर।
किसको क्या मिला,किसे है गिला
हिसाब सबका रखता है
ये दिसम्बर।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
वो शादियां वो रस्म रिवाज ,Those marriages, those rituals,
कितना कुछ बदल गया समय के साथ-साथ
रीत रिवाज और हमारे पुराने अंदाज ,पहले के शादी समारोह में खर्च कम और आनन्द अधिक मिलता था और अब सब बदल गया ।
इन्ही सबको दर्शाती मेरी रचना पढ़िये और याद कीजिये पुराने दिनों को और हो सके तो कुछ सोचियेगा 🙏🙏
"वो शादियां वो रस्म रिवाज"
जाने कहा गई,
वो शादियां वो रस्म रिवाज़।
शरमाई सी दुल्हन और दूल्हे के अंदाज।
वो उन दिनों की रौनक ,
और घर को सजाना,
पड़ोसियों के घर मेहमान को ठहराना ।
वो गीत वो बताशों की मिठास,
वो अपनों के साथ,ख़ुशी और अट्टहास।
वो हल्दी की खुशबु , मेहंदी वाले हाथ,
जाने कहा गई वो शादियां वो रस्म
रिवाज़।
वो दुल्है को देखने की होड़,
वो बारात की भीड़।
वो हर द्वार पर दूल्हे का स्वागत ,
जाने कहा गई हर वो बात,
वो शादियां वो रस्म रिवाज़।
वो स्वागत,आदर और सत्कार,
वो भोजन परोसने की मीठी मनुहार,
वो मीठी नोकझोंक वो तकरार।
जाने कहा गई वो शादियां,
वो रस्म रिवाज़।
वो रस्में जिनमें देते नेक,
और सबके पीछे छिपी वजह अनेक,
वो सात फेरों के साथ,
वचनों की सौगात,
जाने कहा गई वो हर बात
रिश्तों के गठबंधन की मजबूत गाँठ,
वो कम खर्च के महंगे ठाठ।
जाने कहा गई वो शादियां वो रस्म रिवाज़।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
नये साल में फिर.......
नये साल में फिर
नये साल में फिर ,मुलाकात होगी।
फिर दिल से दिल की बात होगी।
कुछ यादे, कुछ फ़साने,
कुछ हमारे कुछ तुम्हारे।
नयी आशाओं के दीप जलेंगे,
उम्मीदों के फूल खिलेंगे।
फिर नई कोई बात होगी,
नये साल में फिर मुलाकात होगी ।
फिर साँझ ढलेगी सुप्रभात होगी,
आँगन में फूलों की महक होगी,
नये साल में फिर मुलाकात होगी।
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
अलविदा 2020
अलविदा 2020
बीतने को है एक साँझ,
होने को है एक नयी भोर।
नया उजाला नयी उमंग,
फैली चारो और।
नया गगन नयी चली है बयार,
खोलकर पंख उड़ने को,
जिंदगी है बेकरार।
सपनो की कश्ती में सवार,
किनारे की और।
बीतने को है एक साँझ
होने को है एक नयी भोर।
नयी ख्वाहिशे नयी उमंगें
ले रही है आकार,
नया सफर नयी मंजिले
भी हैं तैयार।
बीतने को है एक साँझ,
होने को है एक नयी भोर।
"थमता नही सफर जिंदगी का,
बस मुसाफिर बदल जाते है,
आइने वही रहते,
बस चेहरे बदल जाते है"।
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
हाथों की लकीरे, hand lines , hatho ki lakiren
क्यों हम कर्म से ज्यादा विश्वास हाथों की लकीरों पर करते है ।आज इसी विषय पर मेरी रचना पढ़िये और सोचिये और अपने कर्मो पर विश्वास रखिये।🙏
हाथों की लकीरे
हाथों की लकीरों को हाथों में रहने दे
है मंजूर, तकदीर को जो होने दे
मुकद्दर से जो मिलता है,
वो समेट लिया कर
आरजुएं इतनी भी अच्छी नही होती
पढ़ले तकदीर हर कोई हमारी
इतनी सस्ती भी नही होती
वक्त से पहले और नसीब से ज्यादा
किसी को मिलता नही
काँटों के बिना गुलशन कभी
महकता नही
जो बैठे है तकदीर को पढ़ने वाले
पूछो उनसे अपनी किस्मत का हाल
रख भरोसा तू नेक काम किये जा
तकदीर पूछेगी तुझसे बता
तेरी रजा क्या है।।।
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं,These lamps burn themselves
जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास भर दे
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं
जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
मिट जाए, हर मन की त्रास
रिश्तों में हो भरी मिठास
अपने कर्मों का हो एहसास
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
ईश्वर में हर पल हो आस्था,
सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
बड़ो को मिलता हो सम्मान
मिट जाए जग से अज्ञान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
एक वक्त की बात है,once upon a time ,ek vkt ki bat h
मन कभी-कभी अतीत में चला जाता है और पुरानी बातों को याद करता है मेरी कलम आज यही लिख रही है
एक वक्त की बात है
जब गाँव शहर सब एक थे,
मुखोटों के पीछे छुपे,
दिल सबके नेक थे।
जब वादों की कीमत पर ,
जलती थी इंसानियत।
और ख्वाबो के सितारों पर,
चमकती थी कायनात।
समय की हवाओं में बहके,
ऐसे दूर हम आ गए।
जहाँ गाँव हुए चकाचोंध
शहर में समा गए।
लोग बदले सोच बदली और
चल पड़े तलाश में मौजमस्ती
बड़ी ईमारत और सुनहरे
ख़्वाब में।
उस कस्तूरी की तलाश में
भटका वो सारा जँहा ।
जब सब बसा सकता था
वही अपना गाँव अपना देश,
अपनी दुनिया ।
भूल गया वो गाँव,
जो एक वक्त देश था।
बदल गये सब लोग,
जैसे कल का उतरा वेश था ।।
एक वक्त की बात है।।।
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
बचपन बचाओ,save childhood, Bachpan bachao
आप सभी पाठकों को नमस्कार
बाल मजदूरी में बचपन खो जाता है ,
बचपन बचाओ
इसी विषय पर मेरी आज की रचना जो मार्च 1997 में दैनिक भास्कर समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी , प्रस्तुत है
(बालशोषण)
बचपन बचाओ
बचपन में मैं खेला नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
गरीबी का पालन पोषण
करता,
अपने बचपन को उसमें
दफन करता।
कंधों पर मेरे घर का बोझ था।
शरीर से कोमल कमजोर था,
सुबह से शाम तक हुक्म चलता था।
बचपन से ही जुल्म हुए मुझ पर कितने। बचपन में मैं खेला नहीं,
स्कूल को मैंने देखा नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
कंधे मेंरे बोझ से दबे हुए,
आंखें मेरी सपनों में डूबी हुई।
मैं भी बच्चा बनना चाहता हूँ,
मैं भी पढ़ना चाहता हूँ।
बचपन मेरा बीत न जाए।
सपने मेरे बिखर न जाए।
कोई हमारा बचपन बचाओ ।
बड़ों से हमें बच्चा बनाओ।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
ये जीवन है y jivan h, this is life
जीवन कैसे रचता है बसता है उतार चढ़ाव
में भी ठहरता नही
पढ़िये मेरी रचना में बीज का सफर
जीवन के छोर तक🙏
ये जीवन है......
सृजन को लालायित बीज,
बना इक पौधा
यौवन की दहलीज पे आके,
सजा वृक्ष घना
फैली शाखाएँ चारों ओर,
रचाया संसार अपना
फलता फूलता, सुगंधित, सुरचित,
तन पर अपने नीड़ बनाता
सुख, दुख की छांव और धूप तले
जड़ें गहराईं, शाखाओं ने आकाश नापा
इक ओर किसी डाली के
बिछड़ने का शोक मनाया,
तो दूसरी ओर नयी कोपलों की
परवरिश में खिलखिलाया,
पतझड़ और बहार के मौसम को
उसने हरदम यूँ सहज अपनाया।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
आम आदमी हूँ मैं
सबसे सरल और सीधा लेकिन मुश्किलों भरा जीवन जीने वाला आम इंसान ।
लेकिन उसे अपने आप को हरेक परिस्तिथियों में खुश रखना आता है यही सब मेरी रचना में पढ़िये.....
आम आदमी हूँ
जानता हूँ, जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती हैं।
जीएसटी और नोटबंदी को
त्यौहार सा मना लेता हूँ।
दिये हो तो रोशन कर देता हूँ
वरना ,अंधेरों से काम चला लेता हूँ। आम आदमी हूँ,ख्वाहिशें
बेचकर गुजारा कर लेता हूँ।
उलझता नहीं मैं अच्छे दिनों की
प्यास में।
जानता हूँ, बरसो बैठा रहा
मेरा राम भी इसी आस में ।
काले और सफेद(धन)
के चक्कर में नहीं पड़ता ,
मिट्टी में सोना उगाना जानता हूँ।
जानता नहीं मैं, राजनीति के
दाँव पेच लेकिन 56 इंच का
सीना लिए पहरेदारी करता हूँ
सीमा पर ।
आम आदमी हूँ साहब जीना जानता हूँ
आता है मुझे, अपनी ख्वाहिशों
पर पैबंद लगाना ।
देता हूँ बच्चों को आसमाँ उड़ने के
लिए पर , बंदिशें आरक्षण
की भी जानता हूँ।
सामान्य सी मुस्कान लिए आरक्षण
का दर्द भी झेल जाता हूँ।
हँसता हूँ हर पल जिंदगी जी लेता हूँ। जानता हूँ , जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती है मुझे !!!
✍️संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
मेरा स्वाभिमान,my self respect
मेरा स्वाभिमान
लाई थी साथ ,मैं
अपने स्वाभिमान को।
पर साथ अपने रख ना पाई ।
स्वाभिमान के साथ रिश्तों को
निभाना कठिन लगता है ।
स्वाभिमान जब साथ होता है,
तो रिश्ते सिमटने लगते है।
और जब अपने स्वाभिमान
को पुराने कपड़ो की
तह के नीचे रख देती हूँ तो ,
सब सहज हो जाता है
संगीता दरक©
दिल❣️की बात Dil ki bat
दिल
सीने में दिल है मेरे,धड़कता भी है
पत्थर न समझों, इसे पिघलता भी है
संगीता दरक©
भूल गए हम.....Bhul gay hum #childrensday #baldivaswe forgot .
दोस्तों नमस्कार , आपको कितना याद है और कितना भूल गए आपने जो बचपन जिया क्या अभी की पीढ़ी वैसा बचपन जी रही है ।शायद नही ,इसी विषय पर मेरी रचना पढिये और् अपने पुराने दिनों को याद करिये और सोचियेगा की
क्या "भूल गए हम"
भूल गए हम........
पहले भी दो रोटी का जुगाड़ वो करते थे ,
पर हमसे बेहतर वो जीते थे।
जीने की जद्दोजहद में, हम जीने के अंदाज भूल गए । ख्वाहिशों के पीछे,भागते- भागते
रिश्तों के साथ सुस्ताना भूल गए ।
वो खुली छत पर आसमान को निहारना
और तारों को गिनना,
गिनने की गिनती हम भूल गए ।
ना रूठना याद रहा ना मनाना
सोशल मीडिया के चक्कर में ,अपनों
की खुशियों को भूलना हम भूल गए।
छुपम छुपाई,राजा मंत्री चोर सिपाही
पकड़ा और पकड़ी (पुराने खेल)
मोबाइल के गेम के चक्कर में सारे
खेल खेलना हम भूल गए।
समर कैंप और छुट्टियों में भी
क्लासेस इन क्लासेस के चक्कर में,
नाना-नानी के घर की मौज
हम भूल गए ।
बना लिए बड़े-बड़े मकान और
खुशियाँ
जहाँ की खरीद ली
बस मकान को घर बनाना,
और थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए ।
बस थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए।
समय और नई सोच के चक्कर में हम
परिवार को आगे बढ़ाना भूल गए ।
आने वाली पीढ़ी को मामा और बुआ के
रिश्तो में बाँधना हम भूल गए ।
दिया सबको सब कुछ बस थोड़ा सा
वक्त देना हम भूल गए।
याद रहा जीना हमको बस जीने का
अंदाज हम भूल गये।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
#बधाई हो बेटा हुआ-#Congratulations son is born- #badhai ho beta hua
"बधाई हो बेटा हुआ" ये शब्द कितनी बार सुनने को मिलते है हमे ,आज बेटिया बेटो से कम नही है लेकिन आज भी सोच बदली नही है यही दर्द बताने की कोशिश की है मैने उम्मीद करती हूँ आप सबको पसंद आएगी ।
बधाई हो ....बेटा हुआ
ख़ुशी होती है, मुझे जब सुनती हूँ।
की उसके बेटा हुआ।
इसलिये,खुश नही होती मैं,
की उस माँ के कुलदीपक हुआ।
बल्कि इसलिये की उस माँ को
अब नही सहना पड़ेंगे ताने
नही होगा अब उस पर
नुकीले व्यंग्यो से प्रहार
मिलेगा अब उसकी बेटियो
को थोड़ा प्यार
अब नही सहना पड़ेगी
उसे प्रसव पीड़ा
बेटे के इंतजार में अब
मासूम बेटियाँ
नहीं आएगी इस जीवन में
जिनकी परवरिश
भी नही हो पाती
✍️संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
#मुझे गर्व है , #proud of my culture
भारत त्योहारों का देश है, मेरे देश की बात ही अलग है आप भी अपनी संस्कृति को पढ़िये मेरे साथ मेरी रचना में
मुझे गर्व है ........
मुझें गर्व है मेरे सनातन धर्म
और संस्कृति पर
हरेक त्यौहार कुछ न कुछ कहता है
जीवन में रंग भरता रंगों का त्यौहार
तो रिश्तो की मिठास को
बढ़ाता रक्षा पर्व
और करता अँधेरे का नाश
दीपो उत्सव
हर त्यौहार की बात निराली है
त्यौहारों की मिठास और अपनों
का साथ जीवन में लाता है उमंगें नई
हर त्यौहार की बात निराली है
कई सपनों और ख्वाहिशो की
नींव तो दीवाली है
कितना भी हो हम परेशां पर
त्यौहार के आने से मन में
भर जाता उल्लास
बिछड़े अपने भी घर लौट आते है
सारे त्यौहार में अपने मिल जाते है
जीवन को गति देते , ये त्यौहार
ईश्वर में आस्था को दर्शाते
ये त्यौहार
छोटे बड़े सबकी खुशिया का कद
बढ़ाते ये त्यौहार
क्यों न हो हमे गर्व ,
हर त्यौहार हमे जीने का संदेश देते है
👏👏🙏
संगीता दरक©
मैं दीया माटी का , I am a lamp of clay , M diya mati ka
एक संवाद दीये और मेरे बीच
"मैं दीया माटी का "
एक दिन पूछा मैंने, दीये से
क्यों जलते हो तुम।
दीया बोला,मैं तो उजाले के
लिए तेल और बाती को साथ
लिएबरसों से जल रहा हूँ ।
आज भी अंधकार को मिटा रहा हूँ। लेकिन यहाँ आदमी-आदमी
को जला रहा है।
मैंने कहा बने हो मिट्टी के,
क्या इस बात से अनजान हो।
दीया बोला मिट्टी का हूँ
जानता हूँ मैं जलता,तपता हूँ ।
तभी तो बिखरकर नए
साँचे में ढलता हूँ।
अपने अस्तित्व को पहचानता हूँ।
तुम इंसानों की तरह
अपनी मिट्टी को नहीं भूलता।
मैंने कहा बिकते हो बाजारों में
फिर इतने अरमान क्यों ?
आएगा एक हवा का झोंका,
फिर इतना अभिमान क्यों,
दीया बोला बिकता हूँ बाजारो में,
लेकिन किसी अमीर की
जागीर नहीं ।
गरीब के घर में भी जलता हूँ ।
उसके सुख-दुख के साथ
चलता हूँ।
मेरे उजाले को तुम बाँट
नहीं पाओगे।
अँधेरे के खिलाफ हर
जगह मुझे ही पाओगे ।
आए चाहे बयार या कोई
तूफाँ मैं अपने कर्म से नहीं हटता
हाँ होता है मुझे भी अहंकार जब अलौकिक कान्हा के सामने
अपनी ज्योति बिखेरता हूँ
मिट्टी का दीया हूँ, चारों और
प्रकाश बिखेरता हूँ
संगीता दरक
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दीपावली के बहाने ,excuses of diwali
दीपावली के बहाने......
छोड़कर सारे अफसाने
मिल जाये हम,
इसी बहाने।
मन का मैल करें दूर
मन में चमकाएँ
जीने का नूर,
इसी बहाने ।
दिल में प्यार की ज्योत जलाए
मिलकर खुशियाँ मनाए हम,
इसी बहाने ।
करें मंगल कामना हम
भूल कर सारे गम,
इसी बहाने।
गम का वनवास करें आज
हम खत्म,
अब ना करें कोई किसी
पर सितम,
आज खाए हम यह कसम,
इसी बहाने ।
दीप बनकर प्रकाश
फैलाए ,
रोशनी की राह दिखाए हम,
इसी बहाने।
छोड़कर सारे अफसाने
मिल जाए हम
इसी बहाने।
संगीता दरक
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#मैं जिंदगी हूँ, #life
""मैं जिंदगी हूँ, कोई बोझ नही""
दो वक्त की रोटी,
और कुछ लिबास
क्या मांग लिया तुझसे ,
मैंने ऐसा खास
जो तू हजार ख़्वाहिशों
के बीच मुझे
जीना ही भूल गया
संगीता दरक©
#लाखो चाँद ,#millions of moons #karva choth #करवा चौथ #मेरा चाँद
आज चाँद को देखकर चाँद बनने की कोशिश ...हाँ सच में पढ़िये मेरी रचना
लाखो चाँद
लाखो चाँद, आज टकटकी लगाए
देखेंगे उस चाँद को।
और मांग लेंगे खुशियाँ जहाँ की
करता वो रोशन आसमाँ को ,
तो हम भी इस जमीं की रौनक है।
तू हर रोज घटता बढ़ता है,
तो हम पर भी,
रिश्तों का रंग चढ़ता रहता है।
तेरी शीतलता का जवाब नही,
और हम सादगी और सृजनता में बेमिसाल है।
आज तेरे दर्श को हम यूँ बेताब है,
हमारे लिए तो तू आज आफ़ताब है।
ऐ चाँद यूँ ही तू रोशन रहना,
और जोड़िया हमारी
सलामत रखना
संगीता दरक
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#मन के दरिया,#river of mind 
मन के दरिया में
भावों की हिलोर उठी
मैं बांधने लगी, शब्दों के पूल
इस मन को,
उस मन तक मिलाने के लिये।।
✍️संगीता दरक©
#जीवन ये चल रहा है,#life goes on
जीवन ये चल रहा है
जीवन ये कैसा चल रहा हैं,
अपना ही अपने को छल रहा हैं।
हर तरफ कैसा ये माहौल है,
हरेक चेहरे पर उठता एक सवाल है।
बढ़ती महंगाई और जीवन की जिम्मेदारियाँ,
कम आमदनी में सबकी (सारे खर्च की) हिस्सेदारियां।
वो परिवार के साथ में बैठना,
और दिल खोलकर बातें करना।
अब तो सब सपना सा हो गया हैं
वक्त की अपनों के पास,
कमी सी हो गई है।
दुनियां की भीड़ में,
सुकूँ को तलाशता है आदमी।
अपनों के बीच अपनेपन
को तरसता है आदमी।
अपने आप से देखो
भाग रहा है आदमी।
और अंत में...
तलाश रहा हूँ मैं भी वही,
सुकून इस जहाँ में
शायद नयी कोई भोर होगी
और जीवन मेरा उजाले
से भर जायेगा।।
संगीता दरक
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कुछ पल सुस्ता लूँ
जीवन की भागदौड़ से जब मन थक जाता है तब मन कुछ यूँ कहता है
"कुछ पल सुस्ता लूँ"
जीवन की आपा धापी में,
कुछ पल सुस्ता लूँ ।
करके साधना,
नित्य की ये
दौड़ धुप में अपने आप को
खो आया ।
अपने आपको अपनी
अंतर आत्मा से मिलवा दूँ।
करके शांत चित्त को ,
आज समझा दूँ।
नश्वर है ये जीवन,इसे बतला दूँ।
जीवन की हो साँझ,
उससे पहले थोड़ा पुण्य कमा लूँ
डूबती है ज्यों ये साँझ
जीवन भी खो जायेगा
एक दिन फिर होगी भोर
फैलेगा उजियारा चहूँ और
संगीता दरक
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#साथी हाथ बढ़ाना ,#partner raising hand
साथी हाथ बढ़ाना
खुशियाँ हो चाहे गम हो,
दौलत ज्यादा हो या कम ।
तू समझ ना ,
किसी को छोटा या बड़ा
सर पर तेरे आसमाँ,
और तू नीचे खड़ा।
करः सके तू किसी का भला, तो तू करः
और बढ़ा सके जो हाथ,
किसी को बढ़ा लिया करः
साथी हाथ बढ़ाना ,यही सबसे कह दिया कर
एक अकेला कुछ न करः पायेगा
पर जब सब मिलकर हाथ बढ़ाएंगे तो
ना मुमकिन भी मुमकिन बन जायेगा
संगीता दरक
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#कोई राम बनकर तो आये # Ram #God
"रावण जलने को तैयार नही"
रावण बनने को, और जलने को
अब की बार तैयार नही।
कहता है मेरे समक्ष ,मुझे
जला सके वो राम नही ।
हर बार तो मैं जलता हूँ अपने पाप सहित मिटता हूँ,
किया था मैंने तो सीता का हरण
उस पाप की वजह से बरसों से मैं जल रहा हूँ
लेकिन जो पापी ,मासूमो के साथ करते है खिलवाड़ और
लेते है जो कानून और लंबी तारीखों की आड़
मुझसे बढ़कर पापी हे वो इस धरा पर
क्या उनका संहार नही हो सकता
मुहँ में राम बगल में भी हो राम क्या ये नही हो सकता।
जिसने अपनी सारी बुराइयों को हो जलाया
वो आकर मुझें बनाये और अंत में मुझे जलाये।
संगीता दरक
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#आज फिर रावण जलेगा#dashhara festival
दशहरा पर्व"
आज फिर रावण जलेगा !
फिर हम में से ही कोई,
रावण बनायेगा।
सारी बुराइयों को उसमे समाएगा। फिर,उसे राम बनकर चिंगारी
लगायेगा
लेकिन क्या?
ये सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा ।
हम यूँ ही तमाशा देखते रहेंगे ।
बनाने वाले रावण बनाते रहेंगे ।
हम रावण को तो जलाते हैं।
लेकिन ? बनाने वाला जो
आज भी हमारे साथ खड़ा है !
उसका क्या??🤔🤔
✍️संगीता दरक
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बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts
शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान संगीता दरक माहेश्वरी
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कोरोना को हराना है पडी है देश पर कोरोना की मार मिलकर करो इस पर प्रहार थोड़ा सा धैर्य और संयम रखो ना जाओ बाजार लगाओ ना भीड़ रखो दूरियां स...