ना बंदिशों की परवाह है
ना बंदिशों की परवाह है,
ना परंपराओं की जकड़न
आत्मविश्वास का पहना,मैंने अचकन उम्मीद से भरे पंख मेरे,
हौसलों से भरी उड़ान है ,
समेट लूँ आज,सारा जहां में
कि साथ मेरे सपनों का आसमान है,
ना मन को समझाऊं मैं,
ना पग धरु पीछे में,
ना ख्वाहिशों को अपनी छिपाऊँ में , काबिलियत अपनी सारे जहां
को दिखाऊँ मैं।
कि साथ मेरे सपनों का आसमान है।
तारों के साथ आज,
उजाले की बात करते हैं ।
काले अँधेरो पर आज रौशनी बिखेरते है।
सपनों के आसमान में सूरज सा जगमगाते है,
धरती के तिमिर को पल में हराते है।
बस इतना सा अरमान है ,
साथ मेंरे आज सपनों का आसमान है।
संगीता दरक
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