2 जून की रोटी #रोटी #2जून #जुगाड़ #2 वक्त #

 दो जून की रोटी


गोल-गोल रोटी जिसने पूरी दुनिया को अपने पीछे गोल-गोल 

घुमा रखा है। यह रोटी कब बनी यह कहना थोड़ा मुश्किल है

 पर हाँ, जब से भी बनी है तब से हमारी भूख मिटा रही है।

आज दो जून की रोटी की बात करते है,

 अक्सर कहा जाता है कि हमें दो जून की रोटी भी

 नसीब नहीं हो रही।

"दो जून की रोटी" यह पंक्ति साहित्यकारों ने, फिल्मकारों ने

 सभी जगह काम में लिया है।

फिल्मों की बात करे तो उसमें भी रोटी का जिक्र हुआ "रोटी" और "रोटी कपड़ा और मकान" जो उस समय की सुपर हिट फिल्म हुई

इतना ही नही साहित्य जगत में प्रेमचंद जी ने भी रोटी की महिमा का बखान किया

जून शब्द अवध भाषा का है जिसका अर्थ होता है समय। 

तो दो जून अर्थात् दो समय की रोटी यानी दो समय का भोजन।

जानकारों की माने तो कहा जाता है कि जून में भयकंर गर्मी पड़ती है और इस महीने में अक्सर सूखा पड़ता है।

 इसकी वज़ह से चारे-पानी की कमी हो जाती है। जून में ऐसे इलाकों में रह रहे ग़रीबों को दो वक्त की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। 

इन्हीं हालात में 'दो जून की रोटी' प्रचलन में आई होगी।


यह रोटी (Roti) शब्द संस्कृत के शब्द ‘रोटीका’ से आया और यह बात को 16वीं शताब्दी में लिखित आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी मिलता है।

साथ ही 10 वीं और 18 वी शताब्दी में भी रोटी का ज़िक्र किया गया।

हम आदिम मानव के समय की बात करें तो,

 तब वह अपनी भूख जानवरों के शिकार और फल से 

मिटाते थे फिर आग की खोज और उसके बाद अनाज और उसके

 बाद रोटी बनी होगी जो आज जिसे लोग फुलका, चपाती,

 रोटली एवम् भाखरी वगैरह के नाम से भी पुकारते  हैं। 

यह हम भारतीयों का ख़ास भोजन है। 

आज चाहे जो फास्टफूड मिलता हो पर रोटी के बिना 

सब अधूरा लगता है।  ख़ासतौर से उत्तर भारत में जहाँ गेहूँ की पैदावार ज़्यादा है। कहा भी जाता है कि हमारी पहली ज़रूरत रोटी कपड़ा और मकान होती है ।

इसकी अहमियत का अन्दाज़ा हमारी कहावतों में भी मिल जाता है। जैसे लोग कहते हैं कि फलाने गाँव से हमारा ‘रोटी-बेटी का रिश्ता’ है।


अब रोटी चाहे गोल हो या हो कोई और आकार, पतली हो चाहे मोटी, घी में चुपड़ी हो या सूखी हो, उसके साथ प्याज हो या चटनी, दाल हो या हो ढेर सारी सब्जियाँ। रोटी ने अपनी भूमिका हरेक के साथ निभाई दाल रोटी हो या प्याज  रोटी हो रोटी ने कभी भी अपना कदम पीछे नही हटाया।

महंगे आधुनिक रसोईघर में बनी हो चाहे खुले आसमान के नीचे रोटी भूख तो मिटाती ही मिटाती है। 

रोटी ने अपने रूप भी बदले पराँठे तन्दूरी लच्छा नान और

 भी न जाने क्या-क्या ।


और इस रोटी के लिए इंसान क्या-क्या करता है, किसी को यह आसानी से मिल जाती और किसी को बड़ी मुश्किल से

 यह रोटी आलीशान महलों से लेकर झोपड़ी तक किसी अमीर की थाली से ग़रीब के हाथों में दिखाई देती है।

कहते है कि आदमी इस पापी पेट के खातिर सब कुछ करता है, यह रोटी इंसान से अच्छे-बुरे सभी कर्म करवाती है। 

ईमानदारी की रोटी से मन तृप्त हो जाती है,

 वही बेईमानी की रोटी से मन ही नहीं भरता। 

तो आप सब भी दाल रोटी खाओ और प्रभु के गुण गाओ ।।



          

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

 

होलिका दहन

आज उठाती है सवाल!

होलिका अपने दहन पर, 


कीजिए थोड़ा

 चिन्तन-मनन दहन पर। 

कितनी बुराइयों को समेट

 हर बार जल जाती,


न जाने फिर क्यों 

इतनी बुराइयाँ रह जाती।


मैं अग्नि देव की उपासक,

भाई की आज्ञा के आगे नतमस्तक।


अग्नि का वरदान था  

जला न सकेगी अग्नि मुझे,


पर जला दिया पाप, अधर्म, अहंकार ने

प्रह्लाद को, मैं जलाने चली नादान

पर बचाने वाले थे उसको भगवान।


सच आज भी तपकर निखरता है, 

और झूठ आज भी टूटकर बिखरता है। 


देती जो मैं सच का साथ,

ईश्वर का रहता मुझ पर हाथ!!!

सब्र का बाँध @sparshbypoetry #poetry #hindikavita #poetrylover #new #ttreanding


     सब्र का बाँध


 सुना है सब्र का होता है बाँध,

फिर सहनशीलता की,

 गहरी नदियों में,

जब उफान आएगा।

 और यह उफान जब बाँध की

 दीवारों से टकराएगा,

तो निश्चित ही एक दिन 

बाँध टूट जाएगा,

 और बह जाएँगे

ढह जाएँगे कई अनगिनत रिश्तें।

 जो अंहकार में जीते,

और बिन सोचे समझे 

हमारे सब्र का इम्तिहान लेते हैं।।।

        

           संगीता दरक माहेश्वरी©

हाइकु #राजनीति #दल #पार्टी #कमल #हाथ का पंजा

 हाइकु.......

नेताओं संग

राजनीति के रंग

बदले पल में


नाथ के साथ

क्या खिलेगा कमल

बनेगी बात


देंगे क्या साथ

कमल के बनेंगे 

हाथ मलेंगे


दल-बदल

इनकी चाल देखो

जिधर माल


 गठबंधन

अपना कोई नहीं

स्वार्थ के सारे 


हाथों में हाथ

 है बगल में छुरी

 घात  लगाए।।


   संगीता दरक माहेश्वरी


प्रेम का सफर #rose day #proposeday #teddyday #valintaine day #loveshyari #prem #shorts

 प्रेम में प्रपोज 

 किया तुमको 

तुम्हारी मुस्कान से

पूरे हुए अरमान

सिलसिला प्रेम का 

अनवरत रहा


प्रेम का निर्वाह 

जिम्मेदारियों के 

संग होने लगा

जीवन कई रंगों से 

खिलने लगा

सत्ता #hindikavita #ram #netao #ayodhya #Rammandir #Bjp #congress #rajniti #satta #shorts #sparshbypoetry #sangeetamaheshwari

 राजनीति में नेताओ की करतूत देखिए 

सत्ता के मद में राम के अस्तित्व

को नकार रहे हैं 

उसी पर मेरी कुछ पंक्तियाँ





है राम तुममें, तो मुझमें भी है 

न हो तू भ्रमित 

अरे जिनसे हैं ये पंच तत्व

उनका क्या नहीं हैं अस्तित्व

नादान हैं वो जो राम को नहीं जानते

आत्मा में परमात्मा को वो नहीं मानते

बैठे थे मेरे राम जब तम्बू में 

अब मिल रहा उन्हें जब मंदिर

क्यों करते हो राजनीति


जो राम का नहीं

वो काम का नहीं

है धरा से अम्बर तक 

सत्ता जिनकी

उनको किसी सत्ता का 

कहना बेकार है 

ये इंसानियत नहीं

कुर्सी का अंहकार है

धर्म #विनाश #निर्माण #विध्वंश #भाईचारा #shorts #poems #poetry #viralshorts

 धर्म होता क्या ?

धर्म    का   अर्थ  

  होता    सत्कर्म 

 अस्तित्व के लिए करता

नही कभी  अधर्म

होता नही धर्म

छोटा या  बड़ा

धर्म तो सत्य की

राह पर खड़ा


धर्म विध्वंस नहीं करता

सदा निर्माण में

विश्वास रखता

भटके को राह

दिखाए धर्म

सिखाता करने

सच्चे कर्म

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी #हिन्दी कविता #प्रचण्ड #भीष्म#नाग#परेड #सलामी #तोपो #तिरंगा #भारत #

 26 जनवरी गणतंत्र दिवस

आओ, आज हम 75 वाँ

 गणतन्त्र दिवस मनाते हैं 


21 तोपों की सलामी के

साथ तिरंगा फहराते हैं 


 विश्व के सबसे बड़े 

लोकतांत्रिक देश हम कहलाते हैं

 

प्रचण्ड, पिनाक, नाग, भीष्म हैं तैयार 

दुश्मनों को देश की ताकत हम बताते हैं


सबसे लम्बे लिखित संविधान

का गौरव मनवाते हैं

 

470 अनुच्छेद, 25 भाग

 और 12 अनुसूचियाँ

अधिकार बतलाते हैं


नये भारत की नई

तस्वीर बनाते हैं

अवध में राम #अयोध्या #2024 #22जनवरी #राम मंदिर

 प्रभु को अवध मिल गया




  जनमानस भी खिल गया

  प्रभु को अवध मिल गया

  अलख जगा दी सत्य की

   विपक्ष यही हिल गया


   देखो गगन पर छाया

  चाँद को छूकर आया

  कई दिनों का संघर्ष

  है आज रंग लाया


 हो  सनातन   की   जब   बात

 धर्म के नाम पर करो मत आघात

 देश  की सीमा  में  है  जो   रहना

  देश  हित  की ही   करना बात  



 देश  विकसित हो   रहा 

  नए कीर्तिमान  गढ़  रहा

  विश्व  गुरु बनने  को  है

दुश्मन भी अब काँप रहा


  तत्पर हैं साथ चलने को

 होड़ में थे जो आगे बढ़ने को

 हमें जो कमजोर समझते

आतुर हैं हाथ मिलाने को 


 भारत विश्व का प्रेरक बन गया

प्रभु को अवध मिल गया

सनातन संस्कृति से परिपूर्ण

सुशासन जैसा खिल गया

   

संगीता दरक

राम आएँगे #राम आएँगे#अयोध्या उत्सव #राम मंदिर #जय श्री राम

 राम आएँगे

जय श्री राम

आए प्रभु अवध

विराजे आज 


भव्य मंदिर

दीये जले हजार

फैला प्रकाश


सनातन हो

परम्परा की बात

प्रभु के साथ



राम ही राम 

हुआ है धरातल

 फैला उजास


 मिटा संकट 

हुआ है उजियारा

आए हैं राम


भगवा रंग

फैला है चहुँ ओर

मिटा तमस


 पाँच सौ वर्ष

बीता ये वनवास

आई खुशियाँ


भव्य मंदिर

सत्तर एकड़ में

जन हर्षाए


पावन माटी

सरयू का है जल

 स्वर्ण की शिला 





 

करोड़ो की बातें @sparshbypoetry

 हाइकु 


"करोड़ो के" 😃😃


रखो धीरज

ऐसा करो कमाल

हो मालामाल


मिटी गरीबी

लाए हैं ख़ुशहाली

भरी तिजोरी 


धर धीरज

हाँफ रही मशीने

अधीर जन


राजनीति में  

देखो हो रही ऐश 

भोली जनता


करोड़ों  बातें

जनता कहाँ जाने

बनें जो साहू


भरी तिजोरी 

करके भ्रष्टाचार

लोकतंत्र में


भूखी जनता

 भरपेट नेताजी

बिना डकारे



चल सखी अब की बार #हिंदी कविता#खुशियों के फूल #सखी

 चल सखी अबकी बार...

मन के आंगन में हरियाली बिछाते हैं,

खुशियों के फूल खिलाते हैं ।

उमंगो की बुँदे बरसाकर,

मीठी यादों को टटोलकर

चल सखी अबकी बार

 इसमें आस के बीज रोपते हैं।

उत्साह और जोश के मौसम में 

धैर्य का खाद देते हैं,

आत्मविश्वास की लगा झड़ी 

चल सखी अबकी बार मन के आँगन में

 हरियाली बिछाते हैं।

भरोसे के बीज से उत्साह का पौधा

 निकल आएगा,

उल्लास से हरा-भरा शाखाओं संग इतरायेगा।

कलियों की महक से मन खिल जाएगा,

चल सखी अबकी बार 

मन के आँगन में हरियाली बिछाते हैं।

             संगीता दरक माहेश्वरी

#बढ़ती उम्र विवाह की #देरी से होते विवाह

 जय महेश

विषय :-बढ़ती उम्र विवाह से जुड़ी समस्याएं व निदान

इस पर मेरे विचार


समाज में सदा सन्तुलन यथावत रखेंगे।

बच्चों का विवाह युक्त समय पर करेंगे।।

नहीं  कोई असमंजस न कोई फिक्र हो। 

हर जगह हम माहेश्वरियों का जिक्र हो।।


जीवन में हर कार्य नियत समय पर होना चाहिए, प्रकृति भी हमें यही सीख देती है सूरज उगने में कभी देर नही करता चाहे कुछ भी परिस्तिथियाँ रही हो और ढलता भी नियत समय पर।

अभी कुछ वर्षों में हमारे समाज की जटिल समस्या है बढ़ती उम्र बच्चो की, विवाह की उम्र में विवाह नहीं हो रहे जिससे अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है ।

अविवाहित युवाओं के माता-पिता की दशा बहुत खराब है ।

27 से लेकर 35 वर्ष के युवा अविवाहित घूम रहे हैं।

विवाह नहीं होने के कारण:- युवाओं का उच्च शिक्षा प्राप्त न करना ,गाँव मे रहना,नोकरी के क्षेत्र में न होना या अच्छा पैकेज न होना।

या संयुक्त परिवार में रहता हो।

आज के दौर में लड़कियाँ जहां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है, और नए- नए ओहदे पर कार्य कर रही है,ऐसे में लड़कियों और उनके अभिभावकों की महत्वकांक्षा  बहुत बढ़ गई है उनको लड़का नोकरी पेशा चाहिए और तो और पैकेज भी अच्छा चाहिए और लड़का बड़े शहर में रहता हो परिवार छोटा हो ये सब कारण और इतनी मांगे जो उचित नहीं हैं विवाह विलम्ब के लिये कारण बनते है ।

विवाह की उम्र होते ही जब माता- पिता द्वारा बच्चो को कहा जाता है तब बच्चे अपने कैरियर को लेकर चिंतित रहते है और जब तक वो सैटल होते है तब तक विवाह की उम्र निकल जाती हैं।

आधुनिक चकाचौंध में युवा पीढ़ी अपने कैरियर और भविष्य को लेकर इतना गम्भीर है कि जब उनको विवाह के लिये कहा जाता है तो वो कहते है कि कर लेंगे क्या जल्दी है, ऐसा कहते कहते कब उम्र ढल जाती है पता ही नही चलता।

पहले के समय मे सम्बन्ध करवाने में मध्यस्थ की भूमिका बहुत खास होती थी, दोनों पक्ष मध्यस्थ की बात सुनते थे। और कुछ बात भी हो जाती तो मध्यस्थ की भूमिका से बात सम्भल जाती थी लेकिन चूंकि बच्चे आजकल घरवालों के कहने में ही नही तो फिर मध्यस्थ का क्या कहे।

आजकल बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर जाते है और वही रह जाते जिससे रिश्तेदार उन्हें ज्यादा जानते ही नहीं ऐसे में कोई सम्बन्ध करवाता नही और कहते है कि कौन जिम्मेदारी ले रिस्क कोन ले पता नही (लड़का या लड़की) कैसे  है ।

युवकों की बढ़ती उम्र की चिंता ने अभिभावको को दूसरे समाज मे सम्बन्ध करने को मजबूर कर दिया फलस्वरूप दूसरे समाज में हमारे समाज के सम्बंध हो रहे है 

देरी से विवाह होने पर सन्तान उतपत्ति में भी समस्या आती है 

विवाह सम्बन्ध टूटने का एक कारण ये भी है कि बढ़ती उम्र में विवाह होने से दोनों के विचार और सामंजस्य नही बैठता ।

निदान निदान 

हर समस्या को समय रहते अवश्य सुलझाना चाहिए

हम माहेश्वरीयो से  दूसरे समाज  प्रेरणा लेते है

  हमें अपने  बेटों और बेटियों को पढ़ाना चाहिए उच्च शिक्षा भी दिलाना चाहिए लेकिन  अपने संस्कार और रीति-रिवाजों से उन्हें दूर नहीं रखना चाहिए और विवाह की उम्र होते ही उनको कह देना चाहिये की विवाह की उम्र में ही  विवाह होना चाहिए पढ़ाई और कैरियर तो विवाह के बाद भी बन सकता है  अभी एक स्लोगन बहुत चल रहा है बेटी ब्याहो  और बहू पढ़ाओ इसका मतलब यही है कि बेटियों को समय से ब्याह दो और शादी बाद बहुओं को पढ़ाओ।

एकऔर बात  बेटियो के माता पिता को अपनी महत्वकांशाओ को कम रखना चाहिए और अपनी बेटी के लिए अच्छा लड़का ,सिंगल फेमेली, अच्छा पैकेज ,बड़ा शहर ये सब सोच न रखते हुए  सुसंस्कारी परिवार और कमाने वाला लड़का हो ऐसी सोच रखनी चाहिए 

समाज द्वारा समय समय पर परिचय सम्मेलन करवाने चाहिए  और सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे ग्रुप्स बनाये जाए जिसमे एक दूसरे से सम्बन्धो की चर्चा हो सके । 

समाज के लोगो को ये समझना होगा कि समाज का  समाज मे ही सम्बन्ध हो जिससे परिवार में संस्कार आएंगे और हमारा समाज उन्नत समाज बनेगा

समाज की ऐसी समस्याओं के निराकरण हेतु समाजजन को समय- समय पर विचार विमर्श करके ठोस कदम उठाने चाहिए।

हमे अपने समाज के बच्चो को संस्कार शुरुआत से ही  देने चाहिए। ताकि युवा होने पर वो सही निर्णय ले सके।


    संगीता  दरक माहेश्वरी

      

#लव जिहाद #संभल जा ये इश्क है न प्यार#love#eshk#dharm#sanskar

 


 संभलना होगा तुमको

यूँ जिंदगी के फैसले चंद लम्हों
में  किया नहीं करते,
अपनी एक मुस्कान पर जान
 लुटाने वाले को जिंदगी भर का
 गम दिया नहीं करते।

नौ महीने जिस माँ ने रखा 
तुम्हें कोख में
  तेरे सपनों  को पिता ने  
किया हरदम पूरा,
ऐसे माता-पिता को छोड़
 दिया नही करते।

जिसके लिए तू रिश्तों को 
तोड़ रही है,
अपनी किस्मत की लकीरों
 को मोड़ रही है।

तेरे सर पर है जो सवार,
सम्भल जाना
 ये इश्क है ना प्यार।

किसी दिन तुम्हें छोड़ देगा,
तेरे विश्वास के टुकड़े-टुकड़े
कर देगा।

तेरे अपने तो तेरा साथ  देंगे
तुम्हें गले से भी लगा लेंगे।

पर सम्भलना तुम्हें होगा,
यूँ गलत राह से बचना होगा।

संस्कार और धर्म के महत्व को
समय रहते समझ लेना,
अपनी जिंदगी को सँवार लेना।

परिवार करे तुम पर गर्व
काम तू ऐसे कर लेना ।।।
           संगीता दरक माहेश्वरी

#दोस्ती #friendship #यारी #मित्रता

  दोस्ती   सुहाना  अहसास  है।

  सभी  रिश्तों  में  ये  खास  है।

  बड़े भाग्य से मिले एक दोस्त, 

  समझ  लो  कायनात पास है

#ये किताबें #बुक्स #विश्वपुस्तकदिवस

 ये किताबें

खामोश रहकर भी कितना
सिखाती,
काम की थकन को पलों में
मिटाती,
बीते पलों को फिर से
खिल-खिलाती,
सारे ज्ञान को अपने में
दर्शाती,
जीवन जीनें की नित राह
दिखाती,
होता मन उदास जो साथ
निभाती,
लेपटॉप,मोबाइल में खो
जाती,
ये किताबें हर दिन नजरें
बिछाती।।
     संगीता दरक माहेश्वरी

#धरती #पृथ्वीदिवस #नदियाँ

 धरती   तरुवर   माँगती, 

नदियाँ    माँगे   नीर।

अति दोहन नित है बुरा, 

मनवा अब रख धीर।।

#बढ़ते तलाक क्यों और कैसे रोके#how to keep love in relationship

 बढ़ते सम्बन्ध विच्छेद कारण और निवारण


सम्बन्ध अर्थात एक साथ बँधना या जुड़ना
किसी से जुड़ना  मन में उत्साह भर देता है और उसी से जब विच्छेद होता है तो मन दुखी हो जाता है।
संबंध विच्छेद एक पक्ष की तरफ से नहीं होता है क्योंकि कोई एक निभाने का प्रयास करता है तो शायद संबंध बने रहते हैं।
हमारे समाज का चिंतनीय पहलू एक यह भी है कि समाज में युवकों के सम्बन्ध नही हो रहे ऐसे में सम्बन्ध विच्छेद का होना दुःखद है ।
सम्बन्ध विच्छेद के कारण:-
*आजकल विवाह सम्बन्ध में पहले की भांति गुण और गोत्र नही देखे जाते पहले लड़के और लड़की के गुण मिलाते थे, ओर माँ के मामा और पिता के मामा की साख टालते थे, मतलब एक गोत्र होने पर रिश्ता नही होता था, क्यों कि ऐसा माना जाता है कि एक ही कुल के परिवार में स्वभाव प्रवति एक जैसी रहेगी तो पति पत्नी के रिश्तों में सामंजस्य या तालमेल कैसे आएगा ।
जैसे दोनों को अगर गुस्सा क्रोध ज्यादा आएगा तो रिश्ता कैसे निभेगा।
*बहुत सी बार बच्चे शादी के लिए तैयार नहीं होते (उनकी उम्र तो हो जाती है) तो उनको जब घर वाले राजी करते हैं तब वो अपने रिश्ते को निभा नही पाते है।

*आजकल सही उम्र में विवाह नही हो रहे बढ़ती उम्र के सम्बन्धो में तनाव होता है फलस्वरूप  सम्बन्ध टूट जाते है ।

*कहते हैं कि एक सिक्के के दो पहलू होते है
पुनर्विवाह  होने से बहुत से घर बसे है लेकिन आजकल ऐसी सोच हो गई कि चलो नही निभ रहा तो दूसरा सम्बन्ध कर देंगे ।
* बच्चे आजकल बाहर रहकर पढ़ाई करते हैं और परिवार से दूर रहकर बच्चे बाहर के माहौल में ढलने लगते हैं, और अपने संस्कारों से दूर होने से बच्चों में अपने रीति रिवाजों की समझ नही होती।
परिवार में साथ रहकर कैसे रिश्तो को निभाना है, कैसे एक दूसरे को समझना है वो समझते ही नही है ।
आज की युवा पीढ़ी  हर चीज को पैसे से खरीद लेंगे ऐसी सोच रखते हैं इसलिए भी  रिश्तो को इतना महत्व नहीं देते।

*आजकल बेटियाँ भी खूब पढ़ लिख रही है अपने पैरों पर खड़ी हो रही है खुद कमा रही है तो वह भी समझती है कि मैं क्यों सहन करूँ या निभाऊं, मैं तो अपना जीवन अपने मुताबिक जी सकती हूँ।

*बेटी ससुराल की हर बात मायके वालों को बताती है तो माँ अपनी बेटी के मोहवश गलत सीख देती है ये भी संबध विच्छेद का एक कारण है।
मायके वालो का जरूरत से ज्यादा बेटी के घर में हस्तक्षेप बेटी को ससुराल में किसी चीज की कमी हो तो वो कमी मायके वाले का पूरा करना भी कही न कही गलत है।
आज  रिश्ते इस मोबाइल फोन की वजह से भी टूट रहे हैं ।

*महानगरों में रहने वाले पति-पत्नी की जीवन शैली ऐसी होती है कि दोनों को बात करने समझने समझाने का समय नहीं।
समय की कमी और हमारी बढ़ती जरूरतो ने इंसान को मशीन बना दिया है,
पति-पत्नी का एक दूसरे को समय नहीं दे पाना यह भी  कारण है सम्बन्ध विच्छेद का।

*आजकल नई हवा यह भी चली है की शादी के दो-तीन वर्ष बाद भी युगल अपना परिवार बढ़ाते नहीं है,कहते हैं कि बच्चे से पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है लेकिन वह पति पत्नी अगर दोनों कामकाजी है तो दोनों अपनी भविष्य की योजनाओं की ओर देखते हैं दोनों अपने भविष्य के बारे में सोचते और कहते हैं कि एक बार सेटल हो जाए फिर परिवार बढ़ाएंगे।

निवारण
ऐसी कुछ बाते जिनको अमल में लाये तो  बढ़ते सम्बन्ध विच्छेद को रोका जा सकता है#
*सम्बन्ध करते समय गोत्र का ध्यान रखा जाए और गुण भी मिलाए जाए।
*विवाह सही उम्र में हो और
बच्चो की रजामंदी से  हो और वो विवाह के रिश्ते को लेकर पूर्ण रूप से तैयार हो तो ही विवाह करे ।
*पहले विवाह सम्बन्धो में  मध्यस्थ की भूमिका प्रमुख रहती थी,मध्यस्थ दोनों पक्ष की बातों को रखता और दोनों पक्ष मध्यस्थ की बात को महत्व देते थे ।और सम्बन्ध टूटने की कगार पर होता है तब मध्यस्थ दोनों परिवारों को साथ मे लेकर बात करते है ।
*बच्चे बाहर रहे पर उनको अपने त्योहारों और घर के  कार्यक्रमो उत्सव में उनको जरूर बुलाए ताकि वे अपने परम्पराओ और रिवाजो को समझे।

*बेटीयों को उच्च शिक्षा जरूर दिलाए मग़र जीवन के तौर तरीके रिश्ते नाते परम्पराओ के बारे में भी समझाए।

*बेटी का हर बात को मायके वालों से न कहना और माँ की सही  सीख भी बेटी के संसार को बसा सकती है ।
जरूरत पड़े तो बेटी और दामाद को बिठाकर समझावें।
बेटी की गलतियों को मायके वाले को बढ़ावा नही देना चाहिए और न ही (वरपक्ष)बेटे की गलतियों को अपने परिवार द्वारा छुपाना नहीं चाहिए।
*शहरों में परिवार से दूर रहने वाले पति पत्नी को एक दूसरे को समय जरूर देना चाहिए। साथ  बैठने से कई  समस्या सुलझ जाती है ।
परिवार के साथ रहते हैं तो एक दूसरे की गलती या मनमुटाव होने पर परिवार के  बड़े समझाते हैं तो दोनों समझ जाते हैं
छोटी- छोटी बातें बड़ी नहीं बनती
रिश्तो के महत्व को समझाते ।

*पति पत्नी को अपने काम के भविष्य की योजनाओं के  साथ अपने रिश्ते के भविष्य का भी सोचना चाहिए समय से परिवार को बढ़ाना चाहिए ।जिनसे दोनों के सम्बन्ध और प्रगाढ़ हो।
और अंत में.....
पहले सम्बन्ध करने से पहले घरवालों की बात होती थी  लड़का लड़की देखते थे  और रिश्ता तय हो जाता था और शादी हो जाती है और बेटियों को माँ की सीख रहती है कि तेरा घर वही है तुझे वहीं निभाना है और रिश्ते निभते भी थे
लेकिन अब खुले विचार के लड़के लड़की एक दूसरे को खूब समझते फोन पर बातें करते मिलते और शादी तय होती और उसके बाद दोनों में सामंजस्य तालमेल नहीं बैठता है और हो जाता है संबंध विच्छेद।
ऐसी स्तिथि में दोनों परिवारों को बैठकर बात करनी चाहिए उनको ये अहसास दिलाना चाहिए की
पहले आपस में इतनी बातें नहीं होती थी तो भी रिश्ते अच्छे से निभते थे । किसी को स्वीकार करो तो उसकी कमियों के साथ दोनों एक दूसरे की भावनाओ का सम्मान करना चाहिए।
आजकल पति पत्नी में एक दूसरे के प्रति सम्मान की कमी हो गई है ,रिश्तो में
अहंकार ने अपनी जगह बना ली।
पति पत्नी का स्वरूप नारायण और लक्ष्मी सा होता है इस रिश्ते में दोनों को एक दूसरे के प्रति आदर और सम्मान देना चाहिए।
एक दूसरे की कमियों को नजरअंदाज करना चाहिए ।
कभी कभी ऐसा भी होता है कि पत्नी मायके वालों का ज्यादा ध्यान रखती है या उनका हस्तक्षेप ज्यादा होता है मायके वाले अगर धनाढ्य है और ससुराल में इतनी सम्पन्नता न हो तो भी पत्नी को अपने ससुराल का मान रखना चाहिए।
और अगर परिस्तिथि विपरीत हो तब पति को ध्यान रखना चाहिए । 
पति और पत्नी दोनों को विवाह जन्मजनमोत्तर का बंधन है और जोड़ियां ईश्वर बनाता है ऐसा सोचकर सम्बन्धो का निर्वाह करना चाहिए । कभी एक नाराज हो तो दूसरा मना ले कभी एक थोड़ा सब्र रख ले
जीवन रूपी गाड़ी को खींचने के लिये दोनों पहिये समान रूप से जुटे रहे बस ।फिर सुखी संसार।।
                       
               
 













बात प्रेम की ,#love #pyar #prem #eshk

बसन्त ऋतु में प्रकृति ने प्रेम की चादर ओढ़ ली, जब प्रकृति ही प्रेममय है तो फिर इस प्रेम से कोई कैसे बचे।

 प्रेम, प्यार, उल्फत, मोहब्बत, इश्क व लव

 न जाने कितने नाम, लेकिन एहसास एक।

  प्यार सभी रिश्तों में होता है, तभी हम रिश्ते निभाते हैं, बिना प्रेम के कोई रिश्ता निभ नहीं सकता।

 क्योंकि जहाँ प्रेम नहीं, स्नेह नहीं, वहाँ रिश्तों की कल्पना ही नहीं कर सकते।

 प्रेम कब नहीं था, पहले भी था, अब भी है, हमेशा ही रहेगा।

 राधा को कृष्ण से प्रेम था, मीरा भी कृष्ण से प्रेम करती थी, मगर इनके प्रेम में शारीरिक आकर्षण नहीं था, मन से प्रेम, भाव से प्रेम और दोनों के लिए ही प्रेम का उद्देश्य उसको पाना नहीं था, बल्कि आपस में समाने का था। आज के दौर में प्रेम के मायने बदले हैं, अब प्रेम समर्पण नहीं सिर्फ अपना हक माँगता है।

 

क्या प्रेम अपनी पराकाष्ठा तक पहुँच पाता है।

 क्या है प्रेम की पराकाष्ठा आज के दौर में ? 

कहते हैं कि प्रेम की पराकाष्ठा राधा और समर्पण की पराकाष्ठा मीरा और इस प्रेम व समर्पण की पराकाष्ठा श्री कृष्ण है। 

प्रेम क्या है महज आकर्षण या यौवन की दहलीज का  सुनहरा ख्वाब।

क्या प्रेम को पाना ही उसकी सार्थकता है।  प्रेम किसे नहीं होता, यह तो सबको होता है, बस कोई इजहार कर देता है और कोई प्रेम की मंजिल को पा लेता है।  

प्रेम उम्र के बन्धन को भी नहीं स्वीकारता।

 न ही यह किसी में भेद करता है, कब किससे प्रेम हो जाए पता ही नहीं चलता।

 क्योंकि प्रेम सोचने का अवसर ही नहीं देता।

आजकल प्रेम निश्छल नहीं रहा, प्रेम स्वार्थी हो गया है।

 इसके लिए चाहे अपने रूठे  या अपनों को छोड़ना पड़े, इसकी परवाह नहीं करता। आज के प्रेम करने वालों से हम त्याग की उम्मीद नहीं कर सकते।

बहुत कम ऐसे होते हैं, जो अपने अपनों के लिए अपने प्रेम को भूलना स्वीकार करते हैं।

 प्रेम के मायने बदल गए सोच बदल गई, और प्रेम पाने के बाद भी वह अपनी मंजिल पर पहुँचे या नहीं यह किसी को अवगत ही नहीं।

 बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो रिश्ते में बन्ध तो जाते हैं पर निभा नहीं पाते।

 वह प्रेम को समझ ही नहीं पाते हैं।

प्रेम पाने का ही नाम नहीं है, प्रेम एक से होता है तो उसके सारे अपनों को भी अपनाना होता हैं। 

लेकिन आज के दौर का प्रेम बस दो लोगो के बीच तक ही सीमित है, प्रेम एक-दूजे पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो अपनों की परवाह किए बिना गलत कदम उठा लेते हैं।

प्रेम होने का सबूत नहीं दिया जा सकता है, प्रेम तो बस महसूस किया जाता है। प्रेम को करना नही समझना है, और प्रेम को परखना है तो पहले हमें प्रेम में 

समर्पित होना पड़ेगा।

आजकल लिव इन रिलेशनशिप में जो रहते हैं वो अपने आपको प्रेमी कहते है। निभ जाए तो प्रेम और न निभे तो टुकड़े-टुकड़े प्रेम के।

प्रेम को प्रेम ही रहने दो, प्रेम छिनता नहीं सर्वस्य न्यौच्छावर करता है । 

प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं है। प्रेम को बस प्रेम ही रहने दो।।

#99का फेर #99kafer #Illusion

 


                      99 का फेर

कहते हैं कि इस जग की माया में जो फँसा वह फँस कर ही रह गया।

एक बार अगर कोई 99 के फेर में पड़ जाए तो निकलना मुश्किल है, वह इसमें ही लगा रहता है।

बात 99 की हो या ...........999 रूपए की हो 

इस निन्यानवे  के ऑफर से कोई बच जाए तो बड़ी बात है।

हम दौड़े-दौड़े जाते हैं, हमें  सौ से निन्यानवे कम

 लगता है, हम इन दोनों के फासले को भूल जाते हैं। सच कहूँ तो इस 99 के फेर में हम एक रुपए को बहुत महत्व देते हैं।

 निन्यानवे काऑफर हो और उस पर एक 

खरीदने पर दूसरा  फ्री  भी हो तो सोने पर सुहागा।

 त्यौहार की आहट सुन ये  ऑफर जरूर आते हैं और हमारे दिलों दिमाग में दस्तक दे जाते हैं और दिल भागा-भागा जाता है इनकी ओर।

जीवन में खुशियों का अवसर ऑफर के बिना अधूरा है, ऐसा सोचकर हम ऑफर में फँस जाते हैं।  बात ऑफर की हो तो हम इनसे दूर नहीं रह सकते हैं। 

हमें हर ऑफर में अपनी सैलरी+ इन्क्रीमेंट+ मेहनत= ऑफर लगता है।

इस रफ्तार भरी जिन्दगी में जहाँ हम 99 के चक्कर में पड़े हैं, आदमी का काम मशीन और मशीन का काम आदमी कर रहा है। हमारी व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि हमें अपनों के लिए समय ही नही है।

हमारी जरूरतें इतनी बढ़ गई है कि हम बस उनको पूरा करने में लग जाते हैं। हमें हर चीज अच्छी और बस अच्छी ही चाहिए। खाने की बात हो तो हमें बेमौसम के फल और सब्जियाँ ही चाहिए, भले ही वो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए, हमें तो बस

 खाना है। बात खाने की ही नहीं है, कपड़े की बात हो या शादी समारोह की, हमें सब काम बहुत अच्छा करना है, पैसों की पूरी ताकत के साथ फिर चाहे उसके लिए हमें कुछ भी करना पड़े। हमें पता ही नही हम क्या पाने की चाह में दौड़ रहे है। 

जीवन पहले भी जीते थे आनन्द से, पहले भी 

जीवन चल रहा था, हमारी जरूरतें कम थी और कम जरूरतों के साथ जीवन खूब सुखी था। 

बड़े-बड़े मकान और उसमें सारी सुविधाएँ गाड़ी 

और न जाने क्या-क्या।

अपनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई, मिलने-मिलाने के लिए अवसर तलाशने पड़ते हैं। 

न हमें अपने लिए समय है, न अपनों के लिए

रिश्तों में उलझने बढ़ती जा रही है, हम सुकून की तलाश में भटक रहे हैं। अपनी व्यस्तता भरी जिन्दगी में हम अपनी सेहत का ख्याल भी नहीं रख पा रहे। हम अपने और अपनों के लिए जितनी उठापटक

 करते हैं, क्या हम पैसों से सारी खुशियाँ खरीद

 सकते है।  हम क्या पाना चाहते हैं और क्या वो

 हमें मिल रहा है।

क्यों हम निन्यानवे को सौ बनाने के चक्कर

 में पड़े हैं। हमें खुशहाल जीवन जीने के लिए 

अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कम 

करना पड़ेगा।

तभी हम अपनी जिन्दगी  को सुकून से जी पाएँगे।

खुशियों के अवसर ऑफर के रूप में हमें कई बार मिलते हैं, बस हमें उनको समझने और उनका लाभ उठाने की देर है। 

 छोटी-सी जिन्दगी है  मजे से जिओ बस और खुशियों के अवसर तलाशते रहो।

       संगीता दरक

पतंग ,मकर संक्रांति, पतंगबाजी, गुड़तिल की मिठास, खिचड़ी

 मकर संक्रांति #पतंग #उड़ान #आसमान #गुड़ #तिल्ली 

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, सच में बहुत अद्भुत अनोखा देश है हमारा, अनेक ऋतुएँ और मौसम व इनके अनुसार खानपान और ऋतु परिवर्तन के समय पर त्योहारों का आगमन सब कुछ अद्भुत!

      यूँ तो सृष्टि के कण-कण में ईश्वर का वास है। लेकिन सूर्य और चन्द्रमा ईश्वर के द्वयचक्षु सदृश है।  जब-जब सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, हम प्रभावित होते हैं।

     ऐसा ही एक त्योहार हैं मकर संक्रांति, शीत ऋतु के पौष मास में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं यहाँ 

 "मकर" शब्द मकर राशि और संक्रांति अर्थात संक्रमण अर्थात प्रवेश करना एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के स्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।


     पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य अपने पुत्र शनि की नाराजगी भूलकर उससे मिलने जाते हैं, शनि मकर राशि के स्वामी है। ऐसा भी कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन भागीरथी के तपोबल पर भगवान विष्णु के अंगूठे से गंगा माता पृथ्वी पर प्रकट हुई।

       प्राचीन उपनिषदों के अनुसार उत्तरायण का आरम्भ मुक्ति का मार्ग दिखाता है। 

 महाभारत में जब पितामह भीष्म बाणों की शय्या पर लेटे होते हैं, तो वह भी  उत्तरायण शुरु होने पर ही अपना शरीर छोड़कर मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

 वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में प्रवेश करता है, दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं।  रातें धीरे-धीरे छोटी होने लगती है।

         विनयचन्द्र मौद्गल्य है की  रचना   

 "हिन्द देश के निवासी हम सभी जन एक हैं, रंग-रूप वेश भाषा चाहे अनेक हैं"

ये पंक्तियाँ हम भारतीयों के लिए कितनी सटीक है। मकर संक्रांति देश के सभी हिस्सों में मनाया जाता है, बस अलग-अलग नामों से। मकर संक्रांति का त्योहार हरियाणा और पंजाब में लोहड़ी के रूप में 

        बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के रूप में, मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने के पीछे भी आरोग्य वृद्धि का कारण होता है। खिचड़ी में हल्दी

 व घी का सम्बन्ध गुरु और  सूर्य से होता है।

 असम में माघ बिहू, मुगाली बहू के रूप में तमिलनाडु में पोंगल, केरल में मकर, विलक्कू और उत्तराखण्ड में घुघूती भी कहते हैं।

         गुजरात के अहमदाबाद शहर में  पतंगबाजी का उत्सव दो दिन तक चलता है, अहमदाबाद में पंतग और मांझे (पतंग उड़ाने का धागा) का बाजार लगता है।

 राजस्थान और मध्य प्रदेश में इस त्योहार को  संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पर मकर संक्रन्ति के दिन गेहूँ का खिचड़ा (पूरे गैहूँ को गलाकर विशेष रूप से बनाया गया) दूध और चीनी मिश्रित करके बनाया जाता है। 

          मकर संक्रांति के दिन दान करना शुभ माना जाता है। इस दिन गरीबों को अन्न-वस्त्र का दान और गाय माता को घास व गुड़ खिलाते हैं। सुबह जल्दी उठकर नदी तालाब में स्नान करना या जल में तिल डालकर स्न्नान करने की भी मान्यता है। सुहागिने इस अवसर पर चौदह वस्तुएँ कलपती है और अपने से बड़ो को पाँव लगकर (प्रणाम करके ) देती है। कहीं-कहीं सक्रांति की सुबह अलाव भी जलाया जाता है। 

           बच्चो में पतंगबाजी को लेकर गजब का उत्साह रहता है, कहीं-कहीं पुराना खेल गिल्ली-डण्डा भी खेलते हैं। हमारे हर त्योहार के पीछे अच्छी भावना रहती है। 

हर त्योहार जीवन मे उत्साह उमंग भर देता है।

         लेकिन ये उत्साह कभी कभी दुखदाई भी होता है। मकर संक्रांति पर्व पर गगन में पतंगों का अम्बार लग जाता है। पतंग उड़ाने की शुरुआत कब और कैसे हुई इसके बारे में कोई लिखित रूप से कुछ स्पष्ट नहीं है, लेकिन भारत में यह पतंग उड़ाने की परम्परा बहुत पुरानी है, इस परम्परा ने आज प्रतिस्पर्धा का रूप ले लिया है। उड़ान भरना किसे अच्छा नहीं लगता, हवा के रूख के साथ हो या हवा के विपरीत हो डोर थामें उंगलियाँ हवा के रूख को देखकर पतंग से आकाश नापने की चाह किसे नहीं होती। आसमान एक दिन हमारे लिए है, पर परिंदों की आवाजाही में कोई रुकावट न हो हमारे धागे से उन्हें चोट न पहुँचे, इसलिये हम चीन के मांझे का इस्तेमाल न करके अपने देश मे बनने वाले कपास के धागे, जिनको तेज बनाने के लिए किसी रासायनिक नहीं बल्कि गौंद चावल के आटे और अन्य सामग्री का उपयोग किया जाता है। 

       वैसे 2017 में चीनी मांझा जो कि रसायन और धातु के मिश्रण से ये ब्लेड जैसा धारदार होता है, ये टूटता नही है, स्ट्रेच होता है और तो और इलेक्ट्रिक कण्डक्टर होता है, जिससे इसमें करंट भी आ सकता है। इसे प्रतिबन्धित भी किया गया है, लेकिन हमारे देश मे अभी भी इसका उपयोग हो ही रहा है, इस धागे से पतंग उड़ाने वाले के हाथ कट जाते हैं और पक्षियों को भी चोट लग जाती है। राह चलते हुए किसी वाहन चलाने वाला इस धागे में उलझ जाए तो दुर्घटना हो सकती है। अगर चाइनीज मांझा ट्रेन के पेंटोग्राफ में उलझ जाए तो उसमें से चिंगारी निकलने लगती है। पतंग पहले भी उड़ती थी, आसमां को छूती थी मगर परिन्दों की आवाजाही में कोई बाधा नही होती और कोई अप्रिय घटना नही घटती थी।

सरकार प्रतिबन्ध तो लगाती है पर हम मानते नहीं और इसका हर्जाना भी हमें ही भुगतना पड़ता है। क्यों हम अपने त्योहारों को पुराने तरीके से नही मनाते। 

हम सब मिलकर इतना प्रयास करें कि गुड़ और तिल की मिठास का स्वाद और त्योहार का उल्लास बना रहे, बस! हम अपनी खुशी में औरों का भी ध्यान रखें

त्योहार जीवन में प्रसन्नता का उजास भरते हैं न कि दुःखों का अँधेरा। अस्तु -


       ~~ संगीता दरक माहेश्वरी

                  

#मेरा मन #तेरे साथ #यादें #बहुत देर

 ❤️ बहुत दूर तक निकल आता है,

मेरा मन तेरे साथ 
ढूँढता है एक ऐसा कोना,
जहाँ बैठकर हम बाते करे
और बस करते  रहें।

खुशी में तुझे
गले लगाने की,
ग़म में समझाने  की
जिद करता है ये मन।

मन की बात जब
होती नहीं पूरी,
तो ये लौट आता है,
तेरी यादों को लेकर
रहता यादों के साथ ❤️
                    

बात तो नजर की है ! Bat to najer ki h

 बात तो नजर की है!


 मैंने उसको देखा और देखते रह गया! अरे, मैंने तो उसको देखा ही नहीं! अरे ज़रा एक नजर देखो तो सही! मैं तो उसे देख ही नहीं सकता! कभी हम लालायित रहते है देखने को, और देखते ही उसमें अच्छाई बुराई को ढूँढने लगते हैं।

हमारी नजर जैसे ही किसी को देखती है मन मष्तिष्क सोचने लगता है, उसके प्रति भाव जागृत होते हैं, क्रिया प्रतिक्रिया होने लगती है। कभी-कभी हम ऐसा भी देखते है कि नजर ही नहीं हटती और कभी ऐसा भी कि फिर देखने को मन ही ना करे।

प्यार भरी नज़र पराए को भी अपना बना लेती है। वहीं तिरछी या टेढ़ी निगाह दूरियाँ और संदेह पैदा करती है। बच्चों को प्यार भरी नजर से देखो तो वह अपने पास दौड़ा चला आता है और गुस्से वाली नजर से देखो तो मुँह बनाकर रोने लगता है।

आँखे होते हुए भी हम कभी-कभी कितना कुछ नजरअंदाज कर देते हैं। क्यों हमारी नजर कुछ ऐसा देखना चाहती है जो हमें नहीं देखना है? महाभारत की द्यूत  सभा में धृतराष्ट आँखों से अंधे थे लेकिन बाकी सबकी आँखे होते हुए भी उस सभा में द्रोपदी का चीर हरण हुआ और सबने देखा, कोई भी उसे रोक नही पाया।

अभी दुनिया में कितने अपराध हो रहे है, तो क्या मैं यह कहूँ कि आँखे न होती तो शायद इतना कुछ ना होता! जब आप देखेगे ही नहीं तो कुछ होगा ही नहीं, मन में भाव दुष्भाव आएंगे ही नहीं! 

लेकिन एक बात और ये भी है कि 

कभी-कभी नजर देख कर कुछ गलत हो तो ठीक भी कर सकती है। महाभारत में धृतराष्ट्र अंधे थे, तो उनकी पत्नी पति के अंधत्व के कारण अपनी आँखों पर पट्टी बांधने का निर्णय लेती है। ऐसा निर्णय लेना कोई सहज नहीं है, लेकिन वह पतिव्रता पत्नी ऐसा निर्णय लेती है, लेकिन वह यह न करके अपने पति की आँखे बनती तो शायद इतिहास कुछ और होता।

खैर हम इस बात को यही छोड़ते हैं।क्योंकि बात तो नजर की है कि आपकी नजर कैसी, आपने देखा क्या, और देखने पर मन में भाव क्या आये। आपकी नजर किसी पर नजर रख सकती है, तो किसी नजर को नजर से बचा सकती है। आँखे  नहीं हो तो भी मन में भाव तो विचारों को उत्पन्न करते हैं, आँखे बंद होती हैं तब भी मन सोचना तो बंद नहीं करता है। 

ये नजर ही तो है जो किसी को फलक पे तो कभी जमी पर गिरा देती है, किसी की नजरों से बचना मुश्किल है।

"जो देखकर भी नहीं देखते हैं" हेलेन केलर का पाठ भी हमें यही बताता है कि हम आँखे होते भी नहीं देखते हैं। प्रकृति ने हमारे चारो और सुंदर नजारे बिखेरे है फिर हमारी नजर सुंदरता को क्यों नहीं देखती ।

हेलेन केलर, जो आँखों से देख नही सकती थी, लिखती है  "जब अपनी मित्र से पूछा जो जंगल की सैर करके लौटी कि तुमने 

क्या-क्या देखा तो मित्र का जवाब था कि कुछ खास तो नही" तो हेलेन केलर को बहुत आश्चर्य हुआ और वो सोचने लगी कि जिन लोगो की आँखे होती है वो कम देखते है। जिस प्रकृति के स्पर्श मात्र से उसका मन आनन्दित हो उठता है और देखने वालों को जरा भी आनंद की अनुभूति नही हुई आश्चर्य है ! 

कहने का अभिप्राय यह है कि हम आँखों वाले अपनी आँखों का सही उपयोग कर रहे है या नहीं! 

दुर्ष्टिहीन सोचते है कि दुनिया की सारी सुंदरता तो आँखों वाले ही देखते है, जबकि हम अपनी आँखों से क्या देख रहे और किसे अनदेखा कर रहे है !

मेरा ये कहना है कि भगवान ने जो आँखे  हमें दी है, उससे हम अच्छा देखें। वरना हमसे तो वो बिना आँखों वाले अच्छे, जो न देखते हुए भी अच्छा महसूस करते हैं ।

ये नजर बचपन में माँ से ममता मांगती है तो योवन काल मे पिता से हक मांगती है। ये नजर कब नजर से मिलती और आँखे चार कर लेती, कब ये जिम्मेदारियों को देखने लगती है। बात तो नजर की है हम इससे कहाँ कब क्या देखते हैं। 

ये नजर हमे आभास करवाती है कि भविष्य के गर्भ में क्या है, नजर से ही तो भाव झलकते है, ये नजर किसी की पीड़ा को देखकर नम हो जाए, किसी की खुशी में शामिल हो जाये, हमारी नजर ऐसी हो जाये कि चारो ओर ख़ुशियाँ ही खुशियाँ नजर आए। 

     संगीता दरक

हैप्पी करवा चौथ Happy karva choth

 तेरा हर ख्याल धड़कनों को छू जाता,

तू बिन बोले ही बहुत कुछ कह जाता,

हर बात तेरी अनोखी,अंदाज अलग सा,

मैं देखती रह जाती,

 तू आँखों से दिल मे उतर जाता ।

         संगीता दरक

रावण जलने को तैयार नहीं, Ravana is not ready to burn

     रावण जलने  को तैयार नहीं


रावण बनने को और जलने को,
अब की  बार तैयार नहीं ।
कहता है मेरे समक्ष, मुझे जला सके
वो राम नहीं ।
हर बार तो मैं जलता हूँ, अपने पाप सहित मिटता हूँ ।
किया था मेंने सीता हरण, उस पाप के कारण बरसों से जल रहा हूँ।
लेकिन जो पापी मासूमों के साथ करते खिलवाड़,
और लेते हैं जो कानून और लंबी तारीखों की आड़।
मुझसे बढ़कर पापी है इस धरा पर,
क्या उनका संहार नहीं हो सकता ।
मुँह में राम बगल में भी राम हो ,
क्या ये नहीं हो सकता ।
जिसने अपनी सारी बुराईयों को हो जलाया,
वो ही आकर मुझे बनाये और जलाए।
                      संगीता दरक माहेश्वरी
                          सर्वाधिकार सुरक्षित 

तू ही बता जिंदगी.....tu hi bata

 कुछ भुला दिया जाए,

 कुछ याद रखा जाए,

   तू ही बता जिंदगी,  

    तुझे कैसे जिया जाए।

    मिला जो नसीब से,
     छुटा जो तकदीर से,
  क्या उसे ही मान लिया जाए।
    तू ही बता जिंदगी, 
   तुझे कैसे जिया जाए। 
             संगीता दरक माहेश्वरी 

डाकिया डाक लाया,postmen



कहाँ गए वो पुराने दिन जब हम एक दूसरे को चिट्टिया लिखते थे ,डाकिया हर घर द्वार पर दस्तक देता था । आज के बच्चे तो पोस्टकार्ड को पहचानते ही नही है ।आज मेरी रचना का विषय यही है पढ़िये और अपने पुराने दिनों को याद करिये।



डाकिया डाक लाया... 

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

अहसासों को हाथों से समेटकर, 

लिफाफे में भरता न कोई।

लाल डिब्बा भर जाता था तरह- तरह की 

बातों से, 

आजकल लाल डिब्बे को खोजता न कोई।

 उम्मीद और इंतजार की टकटकी 

लगाता न कोई,

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

सालो संभालते हम इन चिट्ठियों को,

डिलीट का ऑप्शन होता न कोई।

कई-कई बार पढ़ते एक चिट्ठी को,

मन को भाती जैसी चिट्ठियां, 

वैसे भाता न कोई।

खुशियो  के दरवाजे को खटखटाता

न कोई,

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

मन की मेमोरी ऐसी भरता न कोई।

कभी खुशियो की सौगात, 

तो कभी मन की बात, 

आजकल सुनाता न कोई।

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

        संगीता दरक माहेश्वरी

            


मेरी डायरी,my diary

 मेरी डायरी

सबके मन का सुनती है, 

सुख-दुख का हिस्सा बनती है। 

जीवन के हर पल का हिसाब इस पर होता, 

कोई तिजोरी में तो कोई सिरहाने रख सोता। 

मेरी डायरी बनती कभी किसी यात्रा का हिस्सा, 

तो बनती कभी किसी जीवन का किस्सा। 

मन की हो या दिल की बात सब सुन लेती,

कितना भी कुछ हो जाए किसी से कुछ न कहती। 

रखता कोई गुलाब तो कोई प्रेम पाती ,

तनहाई को भी यादों से उसकी महकाती । 

हर रंग के भाव अपने में बसाती,

अधूरी ख़्वाहिशों और साकार सपनों

को अपने में सजाती। 

बातों से जब भर जाती कोने 

में रख दी जाती ,

चलती जब यादों की बयार 

एक -एक पन्ना छेड़ जाती। 

सबसे न्यारी मेरी डायरी

मन को भाती ,

अपनो से भी बढ़कर मेरा साथ निभाती ।

                  संगीता दरक माहेश्वरी©

ये पत्थर ,these stones

 इस पत्थर का सफर भी बड़ा अजीब है इसने आदमी के असभ्य से सभ्य होने तक साथ दिया

इस पत्थर के कई रूप है जैसा चाहा वैसा हमने इसे बनाया पढ़िए पत्थर की व्यथा मेरे शब्दों में            

                  ये पत्थर

      ये पत्थर चट्टान सा मजबूत था,

    लगा जिसके सिर उसके लिये यमदूत था!

    पर जब बिखरा तो बिखरकर टूट गया,

  जैसे अपनों का साथ इक पल में छूट गया!

   कभी इसे नींव का तो कभी मील का

     पत्थर बनाया,

   मिले तराशने वाले हाथ तो देकर आकार 

    किसी देवालय में बैठाया!

   कभी मस्जिद की दीवार में तो कभी 

    मंदिर के कंगूरों में सजाया,

  कभी बनाकर सेतु सागर पार करवाया!

कभी इसे रत्न शान शौकत तो कभी 

ठोकर में लुढ़काया,

  कभी किसी राह का रोड़ा तो कभी जोर               आजमाइश में आजमाया!

   इस पत्थर को हमने भी क्या खूब आजमाया,

   असभ्यता और सभ्यता के बीच का 

   सफर भी इस पत्थर ने पार करवाया!

   ये पत्थर तो आखिर पत्थर है फिर क्यों 

    हमने मानवता को पत्थर बनाया।

  और  धर्म के नाम पर इसे 

    अपना हथियार बनाया!


           संगीता दरक माहेश्वरी©

जमाने की भीड़........

         ज़माने की भीड़....

     जमाने की भीड़ से न रख वास्ता,

       बस ईश्वर में  रख तू  आस्था।

         झूठ से न रख वास्ता,

      चुन हरदम तू सच का रास्ता।

   निराशाओं का जीवन से न हो वास्ता,

   आत्मविश्वास भरपूर रख तू अपने अंतस्था।

    जीवन मे रोगों से न हो वास्ता,

     हरदम अपना तू  योग, प्राणायाम का रास्ता।

    रहे आनन्द ही आनन्द चाहे हो कोई अवस्था,

    बनाये रखना जीवन मे तू अपने अनुशास्ता।

     अभिमान अहंकार से न हो वास्ता,

    रखना तू हरदम  याद  ईश्वर की है ये

    प्रशास्ता (सत्ता) ।

        जमाने की भीड़ से न रख वास्ता,

          बस ईश्वर में रख तू आस्था।

              संगीता दरक माहेश्वरी©

World No-Tobacco Day (विश्व तम्बाकू निषेध दिवस)

 ये जीवन है अनमोल.....

यह जीवन है अनमोल,
नशे का जहर इसमे मत घोल।

जी ले ये जिंदगी, है बड़ी अनमोल।
नशे के पलड़े में मत इसको तोल ।

जीवन मे हो आगे बढ़ना,
तो नशे के चक्कर मे कभी न पढ़ना।

शराब गुटखा और सिगरेट
मत कर इन से यारी,
मौत के सामान की है ये तैयारी ।
    संगीता दरक माहेश्वरी©

मासिक धर्म दिवस, menstrual day

 28 मई का दिन.."मासिक धर्म दिवस"

"बात उन दिनों की"

स्वच्छता एवं स्वच्छता दिवस पर आप सभी को बधाई ।

सन 2014 में जर्मनी के एक NGO ने इस दिन को मनाने की शुरुआत् की ।

चलो आज हम खुद की बात खुलकर सबसे 

करते हैं।

वो जीवन देने के चार दिन ...

लाल रंग शक्ति का परिचायक है, आज मैं इस लाल रंग  की ही बात कर रही हूँ, नारी का दूसरा रूप  शक्ति और यही शक्ति अपने में सृजन को संचित करती है। असहनीय पीड़ा को झेलती है ।

बचपन की चहलकुद खत्म होते ही ,एक धर्म शुरु हो जाता है, जो विज्ञान की नजर में नारी को पूर्ण करता है, और उस माहवारी के साथ ढेर सारे नियंम कायदे।

 कही फुसफुसाहट तो कही चुप्पी और शर्म सी । 

लेकिन ये सब क्यों ?

ये एक शारीरिक क्रिया है जो स्त्रीत्व को पूर्ण करती है ,जब मातृत्व साकार होता है तो गुजंती है किलकारियाँ मनाते हैं उत्सव। तो  मासिक धर्म पर चुप्पी क्यों ?

क्यों कपड़े और पेड के बीच का सफर तय नही हुआ आज भी।

क्यों आज भी हम इतना शिक्षित और विकसित होने के बाउजूद भी पीछे है।

 बस बहुत हुआ ,टीवी में विज्ञापन आता है तो अब नज़रे नीची नहीं करना है, अब खुलकर बात करना है।

 स्वच्छता  और स्वस्थता को अपनाना है।

भारत जैसे देश में जहाँ महिलाओं के शिक्षा और स्वास्थ्य पर पुरजोर दिया जाता है वहाँ मासिक धर्म को लेकर कोई बात नही क्या हमे सेनेटरी नेपकिन कम मूल्य या निःशुल्क मिलने चाहिए । 

ताकि स्वस्थ और स्वछ्ता दोनों का ख्याल रहे ।

आश्चर्य की बात  ये भी है, 

कि यूँ तो हमारे देश में हर मुद्दे पर बहस और अधिकार की बातें होती है ,लेकिन सेनेटरी नैपकिन हर एक को न्यूनतम मूल्य या निशुल्क उपलब्ध हो ऐसा मुद्दा आज तक किसी ने नहीं उठाया।

और ये ऐसी जरूरत है जो हरेक वर्ग की महिलाओं और लड़कियों को चाहिए।


 हाँ हमारे देश की संसद में 2017 में निनॉन्ग इरिंग ने जरूर पीरियड लीव के लिए बात रखी थी।

भारत में माहवारी और महिलाओं की सेहत से जुड़े विषयों पर अब भी खुल कर बात नहीं होती। लेकिन अब धीरे- धीरे जागरुकता बढ़ रही है,

 कई स्तरों पर हो रही सामाजिक पहल के अलावा वर्तमान में एक सच्ची कहानी पर आधारित  बनी एक फिल्म पैडमैन में भी इस बारे में खुलकर बात करने पर जोर दिया गया। 

लखनऊ के मनकामेश्वरमठ की महंत दिव्यागिरी ने पिछले दिनों मंदिर परिसर में पीरियडस को लेकर एक गोष्ठी कराई, जिसका विषय था 'माहवारी, शर्म नहीं सेहत की बात'.

यूनिसेफ का एक अध्ययन बताता है कि 28 प्रतिशत लड़कियां पीरियड्स के दिनों में स्कूल नहीं जातीं, इसीलिए केरल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों ने सरकारी स्कूलों में फ्री सैनिटरी नेपकिन देने की शुरुआत की है, ताकि पीरियडस के कारण लड़कियों की पढ़ाई का नुकसान न हो। कई संस्थाएं भी महिलाओं को पैड मुहैया कराने के प्रयासों में जुटी हैं। 

अभी पेड मशीन लगाने की मुहिम भी शुरु की थी, 5 रुपये का सिक्का डालते ही मशीन एक पेड उगलती है ,लेकिन इन मशीनों  को रखरखाव यानि समय -समय पर उसमे पेड उपलब्ध होंगे तभी जरूरतमंद की पूर्ति होगी । मैं तो कहती हूँ की 

ये 5 रुपये भी क्यों निःशुल्क मिलना चाहिए।

र्ब्रिजरानी मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट नाम की संस्था देश भर में एक हजार पैड बैंक बनाना चाहती है. इन पैड बैंकों में उन महिलाओं को पैड मुहैया कराए जाएंगे जो इन्हें नहीं खरीद पातीं।

वाकई सेनेटरी नेपकिन तो फ्री होना ही चाहिए।

आज भी ग्रामीण इलाकों में रहने वाली ज्यादातर महिलाएं इन दिनों मे कोई सैनिटरी नेपकिन इस्तेमाल नहीं करतीं, कई बार वे आर्थिक कारणों से इन पैड्स को नहीं खरीद पाती हैं, तो कइयों को यह उपलब्ध नहीं होते हैं।

वो कपड़ा काम में लेती है जिसे धुप में खुले में सुखाया तक नही जाता शर्म के कारण। 

पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई बहुत जरूरी है, वरना कई तरह की बीमारियां  हो सकती हैं. इनमें बुखार, अनियमित पीरियड्स, खून ज्यादा आने के साथ गर्भधारण में दिक्कतें शामिल हैं।

अंत में एक बात और 

स्कॉटलैंड की संसद ने सर्वसम्मति से महिलाओं से जुड़े स्वच्छता उत्पादों को बांटने वाला कानून पास किया है। 

.कानून के पास हो जाने के बाद स्कॉटलैंड मासिक धर्म से जुड़े उत्पादों को मुफ्त में देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है

क्या ऐसा हमारे देश में हम महिलाओं के लिये हो सकता हैं।

बात उन दिनों की........

                      संगीता माहेश्वरी दरक©

बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts

 शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि  यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान         संगीता दरक माहेश्वरी