#जीवन ये चल रहा है,#life goes on

      जीवन ये चल रहा है
जीवन ये कैसा चल रहा हैं,
अपना ही अपने को छल रहा हैं।
हर तरफ कैसा ये माहौल है,
हरेक चेहरे पर उठता एक सवाल है।
बढ़ती महंगाई और जीवन की जिम्मेदारियाँ,
कम आमदनी में सबकी (सारे खर्च की) हिस्सेदारियां।
वो परिवार के साथ में बैठना,
और दिल खोलकर बातें करना।
अब तो सब सपना सा हो गया हैं
वक्त की अपनों के पास,
कमी सी हो गई है।
दुनियां की भीड़ में,
सुकूँ को तलाशता है आदमी।
अपनों के बीच अपनेपन
को तरसता है आदमी।
अपने आप से देखो
भाग रहा है आदमी।
और अंत में...
तलाश रहा हूँ मैं भी वही,
सुकून इस जहाँ में
शायद नयी कोई भोर होगी
और जीवन मेरा उजाले
से भर जायेगा।।
                   संगीता दरक
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कुछ पल सुस्ता लूँ

जीवन की भागदौड़ से जब मन थक जाता है तब मन कुछ यूँ कहता है

         "कुछ पल सुस्ता लूँ"
  जीवन की आपा धापी में,
   कुछ पल सुस्ता लूँ ।
करके साधना, 

नित्य की ये
दौड़ धुप में अपने आप को
खो आया ।
अपने आपको अपनी
अंतर आत्मा से मिलवा दूँ।
करके शांत चित्त को ,
आज समझा दूँ।
नश्वर है ये जीवन,इसे बतला दूँ।
जीवन की हो साँझ,
उससे पहले थोड़ा पुण्य कमा लूँ
डूबती है ज्यों ये साँझ
जीवन भी खो जायेगा
एक दिन फिर होगी भोर
फैलेगा उजियारा चहूँ और
          संगीता दरक
      सर्वाधिकार सुरक्षित

#साथी हाथ बढ़ाना ,#partner raising hand

     
     साथी हाथ बढ़ाना
खुशियाँ हो चाहे गम हो,
दौलत ज्यादा हो या कम ।
तू समझ ना ,
किसी को छोटा या बड़ा
सर पर तेरे आसमाँ,
और तू नीचे खड़ा।
करः सके तू किसी का भला, तो तू करः
और बढ़ा सके जो हाथ,
किसी को बढ़ा लिया करः
साथी हाथ बढ़ाना ,यही सबसे कह दिया कर
एक अकेला कुछ न करः पायेगा
पर जब सब मिलकर हाथ बढ़ाएंगे तो
ना मुमकिन  भी मुमकिन बन जायेगा
                   संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित

#कोई राम बनकर तो आये # Ram #God

"रावण जलने को तैयार नही"
रावण बनने को, और जलने को
अब की बार तैयार नही।
कहता है मेरे समक्ष ,मुझे
जला सके वो राम नही ।
हर बार तो मैं जलता हूँ अपने पाप सहित मिटता हूँ,
किया था मैंने तो सीता का हरण
उस पाप की वजह से बरसों से मैं जल रहा हूँ
लेकिन जो पापी ,मासूमो के साथ करते है खिलवाड़ और  
लेते है जो कानून और लंबी तारीखों की आड़
मुझसे बढ़कर पापी हे वो  इस धरा पर
क्या उनका संहार नही हो सकता
मुहँ में राम बगल में भी हो राम क्या ये नही हो सकता।
जिसने अपनी सारी बुराइयों को हो जलाया
वो आकर मुझें बनाये और अंत में मुझे  जलाये।
                     संगीता दरक
                 सर्वाधिकार सुरक्षित

#आज फिर रावण जलेगा#dashhara festival

दशहरा पर्व"                  
आज फिर रावण जलेगा !
फिर हम में से ही कोई,
रावण बनायेगा।
 सारी बुराइयों को उसमे समाएगा। फिर,उसे राम बनकर चिंगारी
लगायेगा
लेकिन क्या?
ये सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा ।   
हम यूँ ही तमाशा देखते रहेंगे ।   
 बनाने वाले रावण बनाते रहेंगे ।    
  हम रावण को तो जलाते हैं।
लेकिन ? बनाने वाला जो
आज भी हमारे साथ खड़ा है !
उसका क्या??🤔🤔

               ✍️संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित

#मैं सामान्य #General#

मैं सामान्य , ये हर सामान्य व्यक्ति का ऐसा दर्द है जो बंया करना जरूरी है पढ़िये और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे 

मैं सामान्य (General)
मैं सामान्य,मेरी हर बात सामान्य।
जन्म लेते ही एक शब्द,
पीछे पड़ जाता है,
और सारी सुविधाओं के बीच,
अड़ जाता है।
मैं सामान्य,रहते हुए आगे बढ़ता हूँ।
परीक्षा हो या नोकरी का फार्म,
रेलवे का रिजर्वेशन,
हो या हो राशन कार्ड
"सामान्य" का ठप्पा लगा रहता।
मैं सामान्य सी बात समझता,
और जी जान लगाकर पढ़ता,
आगे बढ़ता पर बढ़ ना पाता।
कर जीने का मैं भी चुकाता हूँ।
फिर भी सारी सुविधाओं से
वंचित रह जाता हूँ।
जब हर बात में,
मैं सामान्य तो बुद्धि में क्यों ?
मैं खास हो जाता हूँ।
क्यों मेरे 60% और उनके 40%
क्या मैं विलक्षण हूँ ,
यदि हाँ तो मैं उच्च हूँ
फैसला आपका है,बताइये
मुझे सामान्य श्रेष्ठ बनकर जीना है।।।
           संगीता दरक
       सर्वाधिकार सुरक्षित

#जनता बेचारी,#poor people

           जनता बेचारी😇
रफाल और अगस्ता के बीच में
फंसीबेचारीजनता                             
 लुभावनी बातें और
पाँच साल का शासन,
करोड़ों की हेरा फेरी,
ऊपर से सीना जोरी !
जनता केश लेस, और
नेताओं की ऐश ।
हर बार के लिये नया मुद्दा और
आकर्षक चुनावी घोषणा पत्र ।
भोली भाली जनता आ जाती
बहकावे में, और करे भी तो क्या ।
इनकी घोषणाएं लगती  प्यारी,
पड़ती हमारी  जेब पर ही भारी।
नये दाँव पेच लेकर  हर बार तैयार है ।
देश की किसी को दरकार नही।
सत्ता की लालसा में एक दूसरे को
कोसने में लगे हैं।
लगी हो आग कहीं भी ये तो अपनी रोटियां सेंकने में लगे है
सत्ता और कुर्सी की लालसा में इनको इतना गिरा दिया।
हर बार कोई मुद्दा इनको मिल ही जाता हे
ऐसे ही इनको पाँच साल का शासन मिल जाता है।।।।
              संगीता दरक
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व्यंग्य :- वाहः नेताजी,

   व्यंग्य वाह नेताजी 

आज सुबह मुझसे,
नेताजी ने नमस्कार किया। 
उस दिन से मेरे साथ चमत्कार हुआ ।
जो मुझसे, बोलने में कतराते थे ।
मुझे देख, जरा ज्यादा इतराते थे।
उन्होंने आकर मुझसे पूछा ,
क्यों भाई क्या बात है।
बड़े बड़े तुम्हारे साथ हैं ,
पहचानते हैं क्या ?
मैं बोला पहचानते क्या,
जानते हैं, घर पर आते जाते हैं।
वे बोले चलो अच्छा है,
तुम भी अपने वाले हो ।
मैं सोचता रहा ,और
मन ही मन मुस्कुराया।
और कह उठा ,
वाह क्या चीज  है नेता।।।
                संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित

जैसे खाली पन्ने, blank pages

      जिंदगी जैसे खाली पन्ने
लफ्जो से पूछो कोई,
क्या कुछ सहा है
कभी ख़ामोशी से ,तो कभी चीखों से
सब्र से कभी तो बेसब्री से
मतलब से कभी बेमतलब होने लगे
आजकल बड़े खामोश रहते है
लफ्ज किसी से कुछ कहते नही है,
और बस में किसी के रहते नही
अहसासों की कमी सी हो गई है,
जिंदगी खाली पन्ने सी हो गई है।
                     संगीता दरक
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ये दर्द

रिसता है ये दर्द धीरे -धीरे
पिघलकर आँखों से उतरता है
और कागज पर आकर शब्दों
में ढल जाता हैं।
                संगीता दरक© 

#हे माँ सुनो पुकार,# maa ,

   आजकल का माहौल देखकर मन दुखी हो जाता है और माँ के दरबार में अर्जी लगाती हूँ मैं कुछ इस तरह पढ़िये मेरी पार्थना  

"हे माँ सुनो पुकार"
हे माँ अष्ट भुजाओं वाली ,
आओ इस कलयुग की धरा पर।
इन मानव वेष में बसे,
भेड़ियों का करने संहार।

पूजते हैं तुझे,करते है
तेरी आराधना।
पर समझते नही
ममत्व की भावना।

हर माँ की आँख भीगी है यहाँ,
रोती ,बिलखती है बेटियां यहाँ।

दे दो माँ इतनी शक्ति हमें,
डटकर करे मुकाबला।
करे अस्मत पर जो हमारी प्रहार,
करः दे हम उसका संहार।

सत् दे दो आजकल की नारियों को

 लज्जा को गहना ,जेवर को अपना हथियार बना ले।

तन को अपने स्वस्थ और मन को

 सुंदर सृदृढ़ बना ले।

हर दिन हो नवरात्रा,ऐसा माहौल
बना दो।
माँ करो अब ऐसी कृपा
हर नर हो नारायण,
और नारी हो देवी।
                     संगीता दरक
                     सर्वाधिकार सुरक्षित

#हाय रे महगांई, #hi re inflation

           "हाय रे महंगाई "
  सुबह से शाम तक दौड़ रहा है 
आदमी
 पता नहीं ,किसके पीछे भाग
रहा है आदमी
  जितना पास जाता है, उतना
दूर होता है
    पता नहीं, किसके पीछे भाग
रहा है आदमी
         ऐसी ही है महंगाई.....
   सुबह से शाम तक करती है
पीछा महंगाई
चीनी से लेकर दाल तक छाई हैं  महंगाई

  काजू ,बादाम तो मिलते नहीं थे
अब दाल रोटी भी नसीब
नहीं होती।  
बच्चो को पढ़ाना हो गया है भारी
 सैलेरी महीने से पहले हो जाती है
पूरी

आते है त्यौहार ,मनाने पड़ते है।
  घर में तेल हो न हो तो भी दीये जलाना पड़ते है

जेब में पैसे हो न हो,बच्चो को
तोहफे दिलाने पड़ते है
   घर का खर्च चलाना हो
गया है मुश्किल
      आसमान चढ़ती महंगाई ने
दिन में तारे दिखा दिये।
            ✍️संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित

वक्त हूँ. Wakt hu , i am the time

 वक्त ,समय जी हाँ बहुत कीमती है आजकल किसी को भी समय नही है हर कोई कहता है कि समय नही है  अपने अपनों के लिये भी वक्त नही निकालते है और कभी बेवजह भी खर्च कर देते है ।
पढ़िये मेरी रचना 
   
     वक्त हूँ मैं

वक्त हूँ
वक्त हूँ ,यूँ बेहिसाब खर्च न किया कर,
    कभी अपनों से मिलकर ,
   अपनी खबर भी लिया कर ।
ख्वाईशो में अपनेें,
सपने उनके भी मिला लिया कर ,
देखकर जो तुझे जीते है,
कभी उनके लिये भी जी लिया कर ।
बुन लिया कर ख़्वाब,उनके भी
 जो  आज भी पैबंद
अपने खुद सीते है।
 बेशक उड़ तू आसमानों में,
पर पैर जमी पर रखा कर
साथ उनके भी कभी
चल लिया कर ।
जिनके बगैर तू चलता न था ।
छत है ,वो घर की दीवारों से
लगाये रखना ।
आशीष उनका अपने
हिस्से में बचाये रखना।
वक्त हूँ ,यूँ बेहिसाब खर्च
न  किया कर ।
पर अपनों पर यु बेगानो
सा हिसाब ना लगाया कर!!
वक्त ही हूँ अपने  - अपनों
पर बेहिसाब खर्च किया कर!!
                    संगीता दरक माहेश्वरी
                सर्वाधिकार सुरक्षित

आज की ताजा "खबर",News

  खबर की भी  खबर लेना चाहिए क्यों की आजकल खबर अपना किरदार अच्छे से नही निभा रही है
पढ़िये और गौर करियेगा 
    
 
       आज की ताजा खबर
खबर को अब, खबरदार होना पड़ेगा।
वरना खबर की,
खबर लेते देर नही लगेगी।
खबर भूख से निकली है,
तो रास्ते में ही दम तोड़ देगी।
और ख़्वाहिशों की खबर होगी,
तो दूर तलक जायेगी।
ऐ खबर ,तेरे कांधे पर ना जाने कितने हाथ होंगे ,
तुझे सबकी खबर रखना है।
कितनी बंदूके तेरे कांधे पर होगी,
सबका हिसाब तुझे देना होगा ।
ऐ खबर तू न्याय के लिये निकली है ,
तो तुझे धैर्य रखना होगा ।
तूझें सच और झूठ के पलड़े में
कितनी बार तोला जायेगा ।
बस तुझे अपनी खबर को ,
खबर बनने से रोकना होगा।
खबर तेरा वजूद तेरी
औकात तय करेगी ।
कितने दिन तुझे सुर्खियों में रहना है,
ये तेरे लिबास तय करेंगे
   हर खबर पर है नजर सबकी
घात लगाये  बैठे है ,खबर की ,
खबर को खबरदार करः दो,
देखो खबर बनने से!!!! 
             संगीता दरक
        सर्वाधिकार सुरक्षित

#चाँद की बात, #moon talk

चंदा मामा की बात करते है आज,
जो सबके लिये अलग अलग रूप
लिये है
बच्चो के लिये बड़ो के लिये,चाँद को
हर रूप में हम देखते है पढ़िये और आनंद लीजिये मेरी रचना में

चाँद की बात,,,,,,🌙🌒🌓🌔🌕
बचपन में जब हम जिद करते थे,
तो माँ समझाकर,
चाँद की परछाई थाली में दिखा देती थी,
और आज चाँद हमे समझाता है ,
कभी ईद का चाँद तो कभी
करवा चौथ का चाँद बनकर ।
चाँद भी सोचता होगा ,
मन ही मन मुस्काता होगा।
ये मुझे छूने की कोशिश में लगे है,
लेकिन मेरी शीतलता को
महसूस न कर पाए।
करते है मेरा दीदार ,पर मुझे ये समझ न पाए ।
मैं तो बिखेरता हूँ, चाँदनी
लेकिन ये तो अपने अपने हिस्से
समेटने में लगे है ।
मैं तो परिस्थतियोंवश अपना चेहरा बदलता हूँ।
घटता बढ़ता हूँ, लेकिन इंसानी
फिदरत से हैरान हूँ मैं
हर चेहरे पर कई चेहरे चढ़े है।
        
             संगीता दरक माहेश्वरी
                सर्वाधिकार सुरक्षित
                                       

SMS की फाँस

         SMS की फाँस
ना दर्द का एहसास है ,
ना प्यार में मिठास है
दे दी उन्होंने फिर "एस एम एस"
की फाँस,
तोड़ दी फिर आस ।
ना कागज पर लिखा कलम से ,
ना दिल से सोचा ना दिमाग से।
चले गए सीधे मोबाइल के मैसेज में,
दबा दिया इनबॉक्स।
कर दिया हमको सेड,
करके मैसेज सेंड।
मिस कॉल दे देकर हमको याद करते है।
बात करने पर नेटवर्क बिजी करते है।
डाल दिया हमको भी रिमाइंडर में,
स्विच को ऊपर नीचे करते हुए ,
हमारी भी याद आ जाती है।
फिर कभी कोई मैसेज
हमें भी मिल जाता है!!!

          ✍️संगीता दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित

#आखिर कब तक ? #ये बेटिया जलेगी #चलो आज कुछ करते हैं

#चलो आज कुछ करते है

चलो कुछ बुनते है ,
मिलकर कुछ बनाते है
खुशियों के दामन को,
काँटों से बचाते हैं
थोड़ा ठहरते है ,
अंधेरो को दूर करते है,
उजालो की और बढ़ते है
चलो आग लगाते है ,
बुझी राख को फिर से जलाते है
नींद से सबको जगाते है
चलो आज सच से मिल आते हैं
सच की तपिश से झूठ
को पिघलाते हैं।
जमीं पर पैर रखकर ,
आसमान को छूते है
चलो आज हवा से बातें करते है
टूटते इंसानों को आज जोड़ते हैं ,
चलो आज इंसान बनकर,
इंसानियत को बचाते हैं
और हैवानो को सजा दिलवाते है
हर दिन नवरात्रि हो ,
ऐसा माहौल बनाते है।
शहर ऐसा बसाते है,
कि बेटिया महफूज रह सके।
   "सबक ऐसा उनको सिखाते है,
की रूह काँप उठे"
और फिर कोई हाथ,
किसी बेटी की तरफ ना उठे
चलो आज स्वछता का अभियान,
सही मायने में हम चलाते हैं,
दिलो दिमाग की गंदगी को मिटाते है ।
चलो अपनी संस्कृति को बचाते हैं
पुराना भारत फिर से  बनाते है।
चलो आज......

                  संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरा ख़्वाब, my dream ,khawab

मेरा ख़्वाब "
आज फिर कोई ख़्वाब
हाथ से मेरे यूँ फिसल गया।
मानो रेत से बनाया हो मैने महल ।
लेकिन, ये वही ख़्वाब तो है ।
जिसे मैंने बचपन से संजोया ।
अपनी पलको तले बसाया।
फिर क्यों हुआ वो पलको से मेरी दूर ।
चिलमन में जा बैठा ,किसी और के
फिर मैं रहीअकेली।
                       संगीता दरक माहेश्वरी
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#बेटी हूँ, बेटी ही समझना,#to be a daughter

एक पिता को बेटे के जन्म का इंतजार रहता है,लेकिन बेटी का जन्म होता है
तब उस बेटी के भाव अपने पिता के लिये क्या होते है , 

पढ़िये मेरे शब्दों में

    "बेटी हूँ, बेटी ही समझना"
जानती हूँ, आपको इंतजार था बेटे का।
लेकिन माँ की गोद में मुझको पाया।
उतरा चेहरा देखकर आपका,
मन में मैंने भी ठान लिया था।
बेटे से बढ़कर हूँ, दिखाऊँगी।
बेटी को बेटी की तरह ही प्यार मिले,
बेटा कहकर उसका मान मत खोना।
परवरिश बेटी के अस्तित्व
की ही करना,
यूँ बेटा कहकर बेटी को
सम्मान ना देना।
मेरे मन की कोमलता को,
तुम कमजोर ना समझना।
बेशक पिता की नजर से
मुझे परखना
और बेटी हूँ तुम्हारी ,
कहने में मत झिझकना।
कोमल हूँ, कमजोर नहीं,
सृष्टि चलाने का रखती हूँ दम।
फर्ज सारे मैं भी निभाऊँगी
किसी भी क्षेत्र में बेटों से नहीं मैं कम।
बेटी हूँ मैं बेटी ही समझना ।
                       संगीता दरक
                    सर्वाधिकार सुरक्षित

ये कैसी जिंदगी , life,

मैंने ऐसे कई व्यक्ति देखे जिनकी नजर में जिंदगी की परिभाषा कुछ और ही है उसी पर मैंरे मन के विचार

     ये कैसी जिंदगी
उनके विचारों के प्रतिबिंब में , 
     जिंदगी की झलक नहीं दिखती

सोचती हूँ ,कैसे होंगे उनके
विचार  
कैसा होगा उनका आचार
जो आम जिंदगी में ,
नहीं पाया जाता
          
क्या इतने उच्च विचार है,
उनके जहाँ जिंदगी का निशा
तक नहीं 
या हम जीते हैं वो जिंदगी नहीं
  
 उनकी नजरों में क्या है जिंदगी   
लेकिन कभी सोचती हूँ ,
वे केवल सोचते हैं
उनके विचार में है जिंदगी              
सांसों में नहीं  
 
 उनके सपनों में है जिंदगी,
बातों में नही ।
उनके विचारों के प्रतिबिंब में
जीवन की झलक नहीं मिलती
                    संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित
 

ये रिश्तों की बगिया,garden of relationships.,


      ये रिश्तों की बगिया........

ये रिश्तों की बगिया ,यूँ ही नहीं महकती।
मिट्टी सा समर्पण,और बीज सा धैर्य
रखना होता है।
मिलती तो हैं बहार ,पर पतझड़
को भी सहना पड़ता है,
और काँटों तले फूलों सा
खिलना पड़ता है।
ये रिश्तों की बगिया, यूँ ही नही महकती,
पत्तियों और शाख़ की जिम्मेदारी भी निभानी होती है।
कभी मालिक तो कभी माली बनना पड़ता है।
सुखी टहनियों को,अलविदा कहकर
नयी कोपलों की उम्मीद
जगानी पड़ती है।
ये रिश्तों की बगिया यूँ ही नही महकती,
त्याग और विश्वास से इसे
सींचना पड़ता है।।।
              ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

आदमी आदमी ना रहा

    जिस रफ्तार से हम जी रहे है अपने आपको पीछे छोड़ते जा रहे है इसी व्यथा को बंया करः रही मेरी रचना     
 
आदमी आदमी ना रहा
फिरते हैं शब्द भी, अपने अर्थ के लिये
रिश्तों की मिठास, अट्टहास बन गई

उलझा है आदमी ,
शब्दों के जाल मे ऐसे,
सहेजता कुछ नही उड़ेलता है ,बस

हर त्यौहार फीका -फीका सा लगता है
दिखावा ही आदमी की पहचान बन गई
कुदरत ने बदला कुछ नही,
बस हम इंसानों की नियत बदल गई
रिश्तों की जिम्मेदारी
अब आफत बन गई

दिखावा और  बेईमानी
अब शराफत  बन  गई
देखो अपनी संस्कृति को
पश्चिमी   सभ्यता छल गई

आदमी आदमी न रहा
मशीन बन गया
आदमी का काम मशीन
और मशीन का काम आदमी
कर  रहा

देखो कैसे जीने के नाम पर
अपने आपको छल रहा
और राजनीति के नाम पर आज भी देश बंट रहा !
             ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

भ्रूण हत्या 👧female foeticide

  बेटियाँ जब माँ के गर्भ में ही मार दी जाती है तो उसे कन्या भ्रूण  हत्या कहते हैं

 एक बेटी जब माँ के गर्भ में आती है तो वह अपने आप को इस दुनिया में लाने के लिए कहती है ,

मेरे शब्द उसी  व्यथा को  बयां कर रहे हैं 

कैसे एक अजन्मी बेटी अपने माँ पिता और दादा -दादी से अपने जीवन को बचाने के 

और दुनिया में लाने का कहती है  ।    

भ्रूण हत्या (अजन्मी बेटी)

माँ से कहती है
  सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे।
मैं भी आँखों का तारा बनूँगी ,
तुम्हारा मैं भी सहारा बनूँगी।
फिर कहती पिता से, प्रतिबिम्ब हूँ तेरा
यूँ मुझसे नाता न तोड़।
यूँ जीवन देकर मुँह न मोड़ ।
सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा मुझे आकार तो लेने दे।
दादा-दादी से कहती है ,
मैं भी तुम्हारा मान बढ़ाऊँगी।
दादा को मैं भी सोने की सीढ़ी चढ़ाऊँगी।
संस्कार में भी सारे पूरे करूँगी
तुम्हारी ममता का मान में भी रखूँगी
अंश हु तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे
आज जो कहना है ,वह कहने दे
नयी सृष्टि तो मैं ही रचूँगी,फिर क्यों मेरी रचना की होती है विकृति
क्या ? यही है तुम्हारी संस्कृति !!!
                ✍️संगीता दरक
                सर्वाधिकार सुरक्षित

चुनावी बारिश,election rain,

   सोचिये कभी  चुनाव भी बारिश की तरह हो तो ,आनंद लीजिये और पढ़िये मेरी रचना
    
   चुनावी बारिश
चुनाव का मौसम आया
प्रचारों की बारिश लाया ।
देखते है ,बाढ़ आयेगी या अकाल। बूँदेआयेगी या मूसलाधार बारिश ।
बादल सब तरफ काले होते है
पहले कहते है,
फिर सब मुहँ मोड़ लेते है।
देखते है कौन सी बारिश आगी।
इक्कीसवीं सदी का कीचड़ लायेगी ।
जिस पर बिना फिसले
ही हर कोई चल सकेगा।।।
         
            ✍️संगीता दरक "माहेश्वरी"
                 सवार्धिकार सुरक्षित

ख़्वाब ऐसे होते है....dreams are like this,

आज सपनो की बात करते है कैसे बुंनते है हम सपने .....

रात के कैनवास पर जीवन के रंगों से
उकेरी हुई आकृतियाँ ,
होती है ख़्वाब ।
कुछ मन से,कुछ अनमने से ।
लुभावने ख़्वाबों, को
पूरा करने में जुट जाता
ये तन-मन
होते पूरे, जब ख़्वाब
झूम उठता मन
अधूरे ख़्वाब मिटते ,
फिर लेते नया कोई आकार।।
                संगीता दरक माहेश्वरी
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

रफ्तार ऐ जिंदगी, speed a life , Rafter a jindagi


जीवन की भागदौड़ में हम माता पिता को ही भूल रहे है ,हमारे पास उनके लिये समय नही है दोस्तों आप मेरी बात से सहमत है पढ़िये इसी विषय पर मेरी रचना

रफ़्तार ऐ जिंदगी
नजर भर उनको भी,
देख लिया कर,
जिनकी आँखों में तू ही बसा।
हर खबर में तू रहना,
पर उनकी( माँ पिता) भी खबर रखना।

जेहन में अपने, इतनी सी बात रखना।
तेरा रब जो हैं, उसको भी"माँ"ने बनाया।

कोई तेरा इंतजार करे,ऐसी
उम्मीद जगाये रखना।
और देना हो जब
उन्हें कांधा ,तो तू तैयार रहना।

उन सुखी टहनियों पर भी
कभी नरम कोपले,
हुआ करती थी
जिस छाँव पर ,आज
तू इतरा रहा है ,
कभी उसी शाख़ की टहनी
हुआ करता था।
          संगीता दरक माहेश्वरी
          सर्वाधिकार सुरक्षित

यूँ हर बात का हिसाब ,yu her bat ka hisab

यूँ हर बात का...

क्यों कभी कोई अचानक दुनिया को छोड़ने का फैसला कर लेता है ,क्यों लाखो दिलो पर राज करने वाले अपने दिल के राज किसी को बता नही पाते
आज की मेरी ये रचना भी इसी बात को लेकर है....


यूँ हर बात का हिसाब ना लगाया कर
जिंदगी है जी लिया कर

माना कि सफर लंबा है
थोड़ा ठहर भी जाया कर

ख्वाब जो हुए पूरे
खुशियाँ उनकी भी मना लिया कर

अधूरे ख्वाब को ख्वाब समझ
भूल जाया कर

जिंदगी है जी लिया कर

बेशक चेहरे पर चेहरा चढ़ा लिया कर,
पर किसी एक से तो दिल की बात किया कर

माना कि लाखों गम है जिंदगी में
खुशियाँ भी तो हजार हैं
कभी उनको भी समेट लिया कर

जिंदगी है जी लिया कर
जिंदगी है जी लिया कर

         संगीता दरक
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#तेरी_रजा_क्या_है#Zindagi

कुछ ख़्वाब कुछ उम्मीदें हैं
तुझसे, जिंदगी
बता तेरी रज़ा क्या है,
हर बात तेरी ही होकर रही तो
जीने के लिये बचा क्या है !

         संगीता दरक माहेश्वरी
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करः लीजिये ना, थोड़ा एडजस्ट,adjust a bit ,adjustment

☺️"थोड़ा एडजस्ट करः लीजिये "

Adjust बड़ा सहज और सुंदर सा
ये दिखने वाला शब्द कितने ही रिश्तों की नींव का पत्थर बना बैठा है।
इस एडजस्ट के कारण जाने
कितने रिश्ते साँस ले रहे है।
नाम भले ही 6 अक्षर का ,
पर काम बड़े बड़े करः जाता ।
जीवन के हरेक मोड़ पर इस शब्द को सार्थक करना पड़ता है।
और आश्चर्य की बात ये है कि एडजस्ट शब्द हमारे (नारियों) हिस्से कुछ ज्यादा ही आया है।
रिश्ते के हर रूप को सँवारने के लिये, हमें एडजस्टमेन्ट बिठाना ही पड़ता है।
बहुत कम बार ऐसा होता है कि
हमारे लिये कोई और
एडजस्ट करता है।
और हाँ अगर किसी ने हमारे लिये एडजस्ट किया है ।
तो उसका ऋण हम अच्छी तरह से लौटाती है ।
बचपन में ही माँ कह देती है,
बेटी थोड़ा तू ही समझ ले (मतलब समझ जाओ की ये समझना ही एडजस्टमेंट है) थोड़ा एडजस्ट करः ले।
फिर बात  पढाई की हो या हो ख्वाहिशो की फिर वहाँ
भी एडजस्टमेंट ।
और जब रिश्तो को जोड़ने की बारी आती है तो ये "एडजस्ट" हमारे पीछे ही खड़ा होता है।
जैसे ही इसकी जरूरत हुई बीच में आ जाता है ,और नए रिश्ते के साथ इस "एडजस्ट" के पौधे को भी सींचते रहो। कहि कोई रिश्ता टूटने की कगार पर हो तो झट से सब सलाह देने लगते है, कि किसी एक को तो एडजस्ट करना चाहिए।
और एडजस्ट करते -करते हम तो ऐसे आदी हो जाते है, कि हमारा एडजस्टमेन्ट एक तरह का "कम्पोस्ट" बन जाता है।
जब रिश्तो में कुछ तकरार हुई, और रिश्ता मुरझाने लगा तो, हमने एडजस्टमेंट की कम्पोस्ट उसमे डाल दी। हो गया फिर  से रिश्ता हरा भरा
रिश्तों की बात हो या खाने पीने की आज जरा "एडजस्ट" करः लीजिये ।
कभी सैलेरी हाथ में  कम आती हो तो सहसा मुँह से निकल ही जाता है कि अबकी बार तो "एडजस्ट" करना पड़ेगा
और हम मिडिल क्लास के लोगो के लिये तो "एडजस्टमेंट" एक एंटीबायोटिक की तरह है ,
अपने सपनो और ख्वाहिशो के पूरे ना होने पर उनके रिएक्शन से ये एंटीबायोटिक एडजस्टमेंट ही हमे बचाता है।
सफर करते वक्त आपको टिकना होतो, आप कह देते है थोड़ा एडजस्ट करः लीजिये।
आपने तो कह दिया पर अब बैठा हुआ हर व्यक्ति थोड़ी -थोड़ी जगह आपके लिये बनायेगा,
और आखिरी किनारे पर जो व्यक्ति बैठा है एडजस्ट का सब बोझ उस पर आएगा ।
आप चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिये, बैठ जायेंगे ।
ये जीवन भी ऐसा ही है कोई थोड़ा एडजस्ट करने को राजी हुआ तो दूसरे चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती हैं ,
बस हमे ये ध्यान रखना है कि एडजस्ट का भी अपना एक लिमिट होता है, करने वाला व्यक्ति कहि इसके बोझ को बर्दाश्त न करः पाए और या तो रिश्ते बिखर जायेंगे या वो खुद बिखर जायेगा ।
यदि a d j u s t को हम इस तरह अलग अलग आपस में बाँट ले तो कोई एक इसके बोझ तले नही रहेगा।
जीवन सहज और सुखद हो जायेगा।
             संगीता दरक ©
    

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