मुद्दते बीत गई इस इंतजार में,
आकर देखे तू मेरा हाल,
पर ये तो है बस एक ख्याल ।
संगीता दरक ©
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
अपने भीतर कितना कुछ,
बिखेर आई हूँ ।
तब कहिं जाकर ,
कुछ लोग राई का पहाड़
बना लेते है ,
और तो और,
उस पर चढ़ा भी देते है।
खुद तो अपनी जिंदगी
मजे से जीते हैं ,
और दूसरों की जिंदगी में
जहर घोल देते है !!
संगीता दरक माहेश्वरी
महावीर जन्म कल्याणक पर्व पर आप
सभी को बहुत-बहुत बधाई...शुभकामनाये
हम अपना व अपनो का जन्मोत्सव तो बड़े हर्ष से मनाते हैं, लेकिन बात जब उस परमात्मा की हो।
इनका जन्म अंतिम जन्म हुआ। और उसके बाद अहिंसा अपरिग्रह और आत्मध्यान आदि के माध्यम से मोक्ष चले गए।
मन मे अपार हर्ष होता है महावीर भगवान के पद चिन्ह पर निरंतर चलने वाले,
मुनि 108 श्री प्रणम्य सागर जी और 108 चन्द्रसागर जी महाराज श्री का आगमन माह दिसम्बर सन 2015 मैं मनासा हुआ और इस पुनीत पावन अवसर का लाभ
हमें भी मिला...
महाराज श्री ने अपने प्रवचनों के साथ
सभी को अर्हम योग भी सिखाया।
मुझे महाराज श्री के समक्ष कुछ बोलने का अवसर मिला। आज आप सबसे वही साझा कर रही हूँ
"सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी"
सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
दौड़ते दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।
संतों की वाणी की छांव में,
पल भर बैठता है आदमी।
दर-दर भटकता है, राम को ढूंढता है
लेकिन जब ज्ञान गुरुवर का मिलता है
अपने अंतरात्मा में,
राम को पहचानता है आदमी ।
गुरु की वाणी से ही सँवरता है ,
शिक्षा और संस्कारों के महत्व को
जानता है आदमी ।
गुरु के ज्ञान से उन्हें,
अमल में लाता है आदमी ।
ओम अर्हम के नाद से अपने
स्वास्थ्य को सुधारता है आदमी ।
सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,
और अपनी आपाधापी से जब
थकता है,पल भर सुस्ताता है,
गुरुवर के चरणों में आदमी ।
संगीता दरक माहेश्वरी
काँटो को भी चमन चाहिए
रहने को फूलों के पास
थोड़ी सी जगह चाहिए
खुशबू ना मिले ना सही
थोड़ी सी चुभन तो चाहिए
बहारें हमें भी छुए
पतझड़ बनकर ही सही
जिंदगी हमें भी मिले
चाहे फूलों के तले ही सही
संगीता दरक©
तुम वो हो ही नही जैसा मेने चाहा
साथ तुम्हारा ऐसा मिला ही नही जैसा मेने चाहा
न तुमने समझा मुझे कभी ऐसे जैसा मैंने चाहा
हर बार उम्मीद लगाई मैने तुमसे
पर मेरी उम्मीद में तुम थे ही नही
चल तो रही है जिंदगी पर
वैसे नही जैसे मेने चाहा
निभाया है ,आगे भी निभा लुंगी पर
वैसे नही जैसे मैंने चाहा
जाने क्यों तूम वो हो ही नहीं
संगीता दरक©
सपनों को तो साथ चाहिए
सपनों को तो साथ चाहिए
बस एक अंधेरी रात चाहिए
आएंगे और समा जाएंगे
पलकों तले और कभी बह जाएंगे अश्को में
मैं कह उठती हूँ
क्यों आते हैं मुझे सपने
जो नहीं है मेरे अपने
कभी लगता है इन से डर
भागती हूँ उनसे दूर
मगर फिर सोचती हूँ यही तो मेरा सहारा है
क्यों कि हकीकत तो मुझसे दूर भागती है
संगीता दरक माहेश्वरी©
ख्वाहिशो की पतंग को, कोशिश के मांजे से उमंगो की ढील देते रहना।
ऊंची उड़ान भरते हुए डगमगाने लगो तो, बढ़ते कदम थोडे पीछे ले लेना।मंजिले वही थी हमने राहें बदल ली,
कारवां वही था हमने हमराजखूब की कोशिश हमने निभाने की
चालाकिया समझ न आई हमे जमाने कीदहेज प्रथा
बेटे का सौदासातु तीज रो त्योहार
वैशाख की गर्मी के बाद सावन की ठंडी फुहार बड़ी सुहानी लगती है एक तरफ आसमान प्यार बरसाता है तो धरती हरियाली ओढ़ने लगती है हरियाली को देखकर मन झूमने लगता है सावन के झूले और तीज त्यौहार साथ में बरखा की फुहार ।
हमारे यहाँ कहते हैं कि नाग पंचमी से त्योहारों का आगमन होता है और ऋषि पंचमी से समापन श्रावण मास में शिवालयों में शिव भक्ति की गूंज सुनाई देती है, हरियाली अमावस्या में मालपुये की मिठास ।
और उसके बाद छोटी तीज सिंजारा और लहरिये की बात है खास
युवतिया हो या ब्याहता सब के लिए खास तीज का यह त्यौहार मेहंदी रचे हाथ और सातू की मिठास लिमडी की पूजा और दूध भरी परात और उसमें पायल ककड़ी नींबू और दीये और लिमड़ी के दर्शन करना चांद को अर्घ्य देना और उसके बाद सत्तू पासना सब कुछ उमंगों से भरा हुआ ।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया बड़ी तीज मनाई जाती है, बड़ी तीज का उत्सव भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है।
राजस्थान बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश पंजाब और राजस्थान के कोटा के बूंदी शहर में सातु तीज का मेला भी लगता है।
बड़ी तीज के सिंजारे का अपना ही महत्व है इस दिन सुहागिन महिलाएं लहरिया की साड़ी पहनती है, और सोलह सिंगार करती है अविवाहित कन्या भी मेहंदी लगाती है ,उनके लिए जिनकी सगाई हो जाती छोटी तीज का सिंजारा भी महत्वपूर्ण होता है ,उनके ससुराल से लहरिया की साड़ी और श्रृंगार का सामान और जेवर मिठाई आदि आते हैं। बड़ी तीज के दिन जौ, चने ,चावल,मैदे का सत्तू बनाया जाता है (एक प्रकार की मिठाई जो आटे को भूनकर शक्कर घी के साथ बनाई जाती है )
,4 साल एक धान के आटे का सत्तू पासा(खाया) जाता है या ऐसे 16 साल तक चने, गेहूँ, चावल ,जौ, खाया जाता है।
आजकल तो सातु के लडुओ को तरह-तरह से सजाया जाता है ,
विवाहित महिलाओं का सत्तू का पिंडा (लड्डू) उनके पति द्वारा खोला जाता है और लड़कियों के सत्तू का पिंडा उनके भाई के द्वारा खोला जाता है ,इस तरह पिंडे के साथ सग (एक और लड्डू)होती है जिसे अपने बड़े (सास या जेठानी,ननद)को पैर लगकर दिया जाता है सच में हमारी परम्पराओ में संस्कार और स्नेह दोनों है।
संगीता दरक©
आप मेरे इस लेख को भारतीय परंपरा पत्रिका में भी पढ़ सकते है ।
"जो रंग चढ़ा है आज ( देशभक्ति )
का उसे उतरने मत देना।"
दौड़ता है रगो में ,जिस रफ्तार से लहू
वो रफ्तार कम न होने देना।
और बात जब देश हित की
होतो क्या पार्टी क्या ताज।
वीरो की ये धरती है ,बता देना
नापाक इरादे रखने वालों को ।
देखा जो हमारी तरफ आँख
उठाकर खाक में मिला देंगे।
जय हिंद जय भारत
संगीता दरक ©
यूँ ही नहीं बनती
कविता और ये कहानियाँ
परिस्तिथियाँ बनती है,
और मन में विचारो के बादल उमड़ते है
शब्द बरसते है ,
कोई बूँद अपने में भाव लिये
कागज पर उतरती
और कोई बिना भाव लिये मिट जाती
उन्ही बूंदों से कोई कविता कहानी बन जाती
और आपके दिल को स्पर्श
करने की कोशिश करती
और ये कोशिश निरन्तर रहती ।
संगीता दरक©

कुछ रिश्ते हमे बने बनाये मिलते है
और
कुछ बन जाते हैं कुछ निभाने पड़ते है
और
कुछ निभ जाते हैं।
संगीता दरक©
वो मिट्टी, वो आबो हवा
हमें नही मिली
वरना पनपना तो
हम भी जानते थे।
संगीता दरक©

आज फिर पुराने ख्वाबो को मैं
सिरहाने रखकर सो गई,
नये ख्वाबो की तलाश में
आज फिर सुबह हो गई!
संगीता दरक©
मैं और उम्मीद
उम्र के साथ बढ़ते
कभी बंनती बिगड़ती
तो कभी नई पनपती
आस कभी न छूटती
संगीता दरक©
कहते है कि हमारा सबसे पहला गुरु या टीचर जीवन दायिनी माँ होती है और उसके बाद ज्ञान देने वाले गुरु का महत्व हमारे जीवन में अधिक होता है
और गुरु को गोविंद से भी बढ़कर बताया है आज मेरी रचना समर्पित है मेरे गुरु को जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया
नमन गुरुवर
सपनो को हमारे ,जो करते हैं साकार,
साँचे में ढालकर देते है जो आकार ।
सफलता के शिखर पर जो पहुँचाते है,
सच्चाई की राह हमे दिखलाते हैं।
कामयाबी को छू जाते है ,
जो थामें गुरु का हाथ,
सफलता उसके हरदम रहती साथ।
दीप सा जो जलता है ,
प्रकाश पुंज बनता है,
और वो ज्ञानमयी प्रकाश,
अज्ञान के अंधेरो को हरता हैं।।
✍️संगीता माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
उफ्फ, ये इश्क है
जरा संभल कर कीजिये ।
दिल को अपने ,
यूँ बेदखल न कीजिये !!
संगीता दरक©
मेरा जन्मदिन 24 जून को था उस दिन मेरे मन में जो भाव विचारो का रूप लिये उमड़ रहे थे मैने उन् शब्द को स्वरूप दिया
और आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ
आप सबके स्नेह के लिये सदा आभारी रहूँगी
जन्मदिन मेरा.......
सोचती हूँ आज
जन्मदिन मेरा ,कैसे मनाऊँ
बच्चो के जैसे इठलाऊँ,या
एक साल उम्र बढ़ने की जिम्मेदारी निभाऊँ
बीते वर्षो में क्या खोया क्या पाया
इसका हिसाब लगाऊँ
वर्तमान पर रखू नजर या
भविष्य को बेहतर बनाऊँ
अपनो ने दिया अपार स्नेह उस पर
इतराऊँ
या किसी की नाराजगी से दुःखी हो जाऊँ
अधूरी ख़्वाहिशों को देखू या
पुरे अरमानों की ख़ुशी मनाऊँ
सोचती हूँ इन सबसे
सोचती हूँ इन सबसे, परे हो जाऊँ
और करू शुक्रिया ईश्वर और माता पिता का
कर्म पथ पर अपने आगे बढ़ती जाऊँ
कर्म पथ पर अपने आगे बढ़ती जाऊँ।।
संगीता माहेश्वरी ©
आइए भारतीय परंपरा के साथ एक और और गौरवशाली परंपरा की बात करते हैं इस देश के उपवन में कई जाति के भिन्न-भिन्न फूल खिले हैं और यह अलग-अलग होते हुए भी सभी एक हैं और सभी एक दूसरे के भावनाओं का सम्मान करते हैं
मानव सभ्यता का जब से विकास हुआ तब से मानव अकेला नहीं रहता । वह परिवार और रिश्ते नातों से बंधकर सुखपूर्वक जीवन यापन करता है व्यक्ति को परिवार की जितनी आवश्यकता है ,उतना ही समाज की भी आवश्यकता है समाज से ही व्यक्ति को पहचान मिलती है इसे हम यूँ समझ सकते हैं व्यक्ति- परिवार- समाज -शहर और देश आज् मैं माहेश्वरी समाज की बात कर रही हूँ। भारत के राजस्थान राज्य में आने वाले मारवाड़ क्षेत्र से सम्बद्ध होने के कारण इन्हें मारवाड़ी भी कहा जाता हैं माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस जिसे महेश नवमी के रूप में जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है चलिये आज हम माहेश्वरी समाज जो भगवान महेश की संतान है उनके बारे में जानते है कहा जाता है कि सप्त ऋषियों की तपस्या भंग करने पर 72 उमरावों को ऋषियों ने श्राप दिया और वे पाषाण बन गए । पाषाण बने उमरावों की पत्नियों ने भगवन से याचना की तब भगवान शिव और माता पार्वती ने इन उमराव को नव जीवन दिया । लेकिन उनके हाथों से हथियार नहीं छूटे थे। इस पर भगवान शंकर ने कहा कि सूर्यकुंड में स्नान करो, ऐसा करते ही उनके हथियार पानी में गल गए, उसी दिन से वह जगह लोहागर्ल के रूप में प्रसिद्ध हो गया। आज भी राजस्थान के सीकर के पास लोहागढ़ नाम से स्थान है। जहां लोग स्नान कर भगवान महेश की प्रार्थना करते हैं। क्षत्रियों के शस्त्र तलवार और ढालों से लेखन डांडी और तराजू बन गए । और इस दिन को महेश नवमी माहेश्वरी उतपत्ति दिवस के रूप में मनाया जा रहा है ज्येष्ठ शुक्ल 9 युधिष्ठर सवंत 5159 से अभी वर्तमान तक मनाते आ रहे है महेशनवमी के दिन भगवान शिव की आराधना और शोभा यात्रा निकाली जाती है ,और भी कई कार्यक्रम होते है समाज के लोगो को सम्मानित भी किया जाता है माहेश्वरी के 5 अक्षर में आप देखिये म, ह ,श, व ,र सभी में गठान है जैसे शिव की उलझी जटाओ से ही उतपन्न है और धीरे धीरे ये समाज विस्तृत हो गया और हरेक क्षेत्र में उन्नति करने लगा । समाज संगठित हुआ और समाज का प्रतीक चिन्ह भारतीय संस्कृति के अनुरूप बनाया गया सफेद कमल के आसन पर भगवान महेश सांवले लिंग में विराजित शिव पर त्रिशूल एवं डमरु शोभायमान कमल पुष्पों पंखुड़ी वाला कमल पुष्पों सभी देवी देवताओं को प्रिय कमल कीचड़ में खिल कर भी पावन है और कमल पर आसित बिल्वपत्र तीन गुणों का संकेत देते हैं सेवा त्याग सदाचार मानव जीवन को यर्थात करने वाले तीनों गुण और यही भावना रखकर मानव समाज में सेवा देता है तो समाज के शिखर पर पहुंचता है माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति जड़ में समाहित है और शिव और शक्ति का आशीर्वाद है । |
1891 में अजमेर स्व. श्री लोइवल जी किशनगढ़ के दीवान की अध्यक्षता में समाज संग़ठन की नींव रखी
और गौरव एवं गर्व की बात यह है की
माहेश्वरी समाज का ये संगठन पहला जातिय संग़ठन था ।
जय महेश के उदघोष के साथ
साथ शुरु हुए समाज के कार्य जो समाजजन की भलाई के साथ मानव हित में भी सहयोगी थे
माहेश्वरी बंधू एकत्रित होकर चिंतन करने लगे और छोटी छोटी सभाओं ने महासभा का रूप ले लिया।
आज 21 वी सदी में हमने यूँ ही प्रवेश नही किया । इससे पहले समाज की कई कुरीतियों को जैसे पर्दा प्रथा, बाल विवाह ,दहेज प्रथा आदि
1929 में पर्दा प्रथा के बहिष्कार की घोषणा की ,इस अधिवेशन में महिलाओं की संख्या अधिक थी
1931 में विधवा विवाह के बारे में के बारे में प्रस्ताव रखा जो 1940 में जाकर पारित हुआ
1946 में दहेज प्रथा का विरोध और देश में माहेश्वरी समाज ही सबसे पहला समाज है जिसने बाल विवाह को निषेध किया शारदा एक्ट 1930 में 1930 में एक्ट 1930 में दीवान बहादुर हरी विलास जी शारदा शारदा अजमेर द्वारा रखा गया।
आज भी माहेश्ववरी समाज निरन्तर क्रियावान है ।
समाज द्वारा समाज जन के लिए कई ट्रस्ट बनाये जो समय समय पर समाज जन के लिये काम करते है।
माहेश्वरी जाति का संगठन विस्तृत है माहेश्वरी भारत में ही नही वरन नेपाल बांग्लादेश अमेरिका और भी देशों में है
और अपनी बुद्धि कौशल और योग्यता के आधार पर चाहे वो शिक्षा, राजनीती या प्रशाशनिक अधिकारी या खेल का मैदान हो कोई सा भी क्षेत्र हो माहेश्वरी किसी से कम नही है ।
जन सेवा में भी आगे रहते है समाजजन
देश के अनेक शहरो में सेवा सदन स्थापित किये । और आगे भी अनेक कार्य किये जा रहे है ।
माहेश्वरियो की 72 खाप और गोत्र है और अपनी संस्कृति अपने रीति रिवाज है ।
खानपान या हो पहनावा या संस्कारो की हो बात तो माहेश्वरीयों की बात जरूर होती है ......
मेने अपनी कविता "माहेश्वरी है हम" में अपने शब्दो में अपनी बात कही है जरूर पढ़िए इसका लिंक दे रही हूँ । https://sangeetamaheshwariblog.blogspot.com/2020/05/blog-post_30.html संगीता माहेश्वरी दरक |
28 मई महिला स्वस्थता एवं स्वच्छता दिवस ,जी हाँ इसे मासिकधर्म दिवस भी कह सकते है । ये ऐसा विषय है जिस पर आज भी चुप्पी बनी हुई है ।
इसी विषय पर मेरी रचना प्रस्तुत है उम्मीद करती हूँ मेरी कलम अपने उद्देश्य में सफल् हुई होगी
मासिकधर्म......
नारी निभाती सारे धर्म,
समझकर अपने कर्म,
रक्त सोखने का करो तुम उचित उपाय।
साफ कपडे या सेनेटरी पेड का करो चुनाव।
इन दिनों करो न कुछ ज्यादा काम,
लो पोष्टिक आहार और करो थोड़ा आराम।
बेटी से अपनी खुलकर करो तुम बात,
समझाओ उसको साफ सफाई की हर बात,
ये है एक शारीरिक प्रक्रिया जो होती सभी के साथ,
घबराने और शर्म की नही है बात।
जैसे शरीर के बाकी अंगों की करते हो सफाई,
वैसे अंदरूनी अंगों की भी हो सफाई।
इस विषय पर क्यों मौन रहती हो तुम, अब ना शरमाओ खुलकर बात करो तुम।
हो कुछ परेशानी तो इलाज करवाओ,
तुम सृष्टि को सजाती हो ।
हर मास पीड़ा से गुजरती हो ।
हाँ एक धर्म हर माह निभाती
हो तुम ।।।
संगीता माहेश्वरी दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
मेरे देश का हाल तो देखो
प्रशासन की योजनाओं का लगा है अंबार,
व्यवस्थाओं का हाल तो देखो।
शराब ,गुटखे बिकते धड़ल्ले से
वैधानिक चेतावनी और,
ना खाने का विज्ञापन तो देखो।
होती हैं घटनाये, सुलगती है माँ की गोद,
इन घटनाओं पर राजनीति करने का
अंदाज तो देखो।
संसद के कैंटीन के खाने का हो जायका
या हो वीआईपी सुविधाऐ ,
कभी आम आदमी की तरह कतारों में लगकर तो देखो।
सत्रह उलझनों में उलझा रखा है आदमी को,
कभी इनकी उलझनों को सुलझाकर तो देखो।
लाडली से लेकर सुकन्या और अनगिनत योजनाए ,पर बेटियो को"निर्भया" बनने से रोककर तो देखो।
लगी है आग चारो तरफ, पूछते हो जला
क्या -क्या,
कभी ये आग बूझाकर तो देखो ।
उस पिता का दिल कभी अपने सीने पर लगाकर तो देखो।
बनाते हो हर बात को मुद्दा, कभी मुद्दे की बात करके तो देखो ।
पक्ष विपक्ष बनकर करते हो तकरार ,
देश हित में कोई मुद्दा उठाकर तो देखो।
चुनावी दौरे ,रैलियों में जितना जोश दिखाते हो ।
कभी देश हित में आजमाकर तो देखो।
स्वछता का चलाया है जो अभियान सही मायने में देश की गंदगी को हटाकर तो देखो।
अंत में--
""मत बैठो आँखे मूँदकर पता नही कब क्या हो जायेगा। फिर कोई भेड़िया बचपन
तार -तार कर जायेगा""
देश को आगे बढ़ाना है तो बढ़ाओ पर बेटियो को तो बचाओ।।।
✍️संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
कोरोना महामारी ने समूचे विश्व में हाहाकार मचा दिया,इस महामारी में कुछ हाथ मदद को आये किसी ने अवसर समझ समय का लाभ उठाया।मेरे मन के भाव ने कुछ शब्दों को यूँ पिरोया पढ़िए और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराये
आपदा में अक्सर,
ढूढँते है अवसर।
घात लगाये बैठे करने को शिकार ,
करते नही किसी बात का जो विचार,
टूटे हुए को और तोड़ा जाये,
पूरी तरह उसको निचोड़ा जाये,
अपनी सुख सुविधाओं के लिये
संचय कुछ और किया जाये ,
रख मानवता को ताक में
क्यों न अवसर का लाभ उठाया जाए।
आपदा में अक्सर , मिलता है अवसर
अपनी छवि को खूब चमकाया जाये।
जनता के हित से अपना हित
भी किया जाये।
रोज थोड़ी-थोड़ी सुर्खियां बटोरी जाये।
आपदा में अवसर तलाशा जाये ।
मानवता की बाट जोहती आपदा,
देती मानव को सेवा भाव का अवसर,
टूटती आशाओं की दीवार को बचाया जाए,
किसी की लाचारी ,और भूख को
मिटाया जाये ।
बची रहे इंसानियत ,
काम कुछ ऐसा भी किया जाये।
ढूढँते है अवसर...
✍️संगीता माहेश्वरी दरक©
माँ
आज मातृ दिवस है ,वैसे तो हर दिन माँ का होता है । आज माँ की बात की जा रही हैं।
लेकिन,आज मेरा विषय कुछ अलग है ,
माँ शब्द की सार्थकता क्या माँ बनने में ही है ,क्या शिशु प्रसव करने वाली ही माँ होती है , उनके हिस्से में भी तो मातृत्व है जो इस सुख से वंचित है ,और इसे वो भगवान की मर्जी मानकर स्वीकारती है
आप सोचिये वो कितनी हिम्मत वाली है जो माँ नही बनती फिर भी परिवार में माँ की भूमिका बखुबी निभाती है ।
और उम्रभर अपने ममत्व को उड़ेलती रहती है ।
माँ बनने के लिये संतान को जन्म
देना आवश्यक नही ,
माँ बनकर उसका पालन करना
भी माँ बनना ही है।
मेरी पोस्ट से कोई आहत न हो मेँ किसी का मन नही दुखाना चाहती हूँ।
भगवान कृष्ण की माँ यशोदा और देवकी दोनों थी यहाँ एक ने पोषण किया तो दूसरी ने जन्म दिया ।
स्त्री सृजन का कार्य करती है ,वो संसार को सवांरती है और कभी कभी ईश्वर किसी किसी को इस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य सौपता है।
माँ तो अपनी संतान में अपने भविष्य के सपनों की अपेक्षा रखकर अपना जीवन व्यतीत करती, लेकिन जो स्त्री बिना भविष्य की आस लगाए अपने सारे दायित्वों का निर्वहन करती है वो तो सच में बहुत बड़ी होती है।
संगीता दरक माहेश्वरी©
हौसला तू रख, यूँ हिम्मत न हार,
तूफाँ में है कश्ती ,जाना हैं उस पार।
ना देख तू जल की धार,
हिम्मत की बना ले तू पतवार।
तूने ही तो (मानव) पहाड़ो को काटकर रास्ता बनाया,
धरती को चीरकर अन्न उगाया,
चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय परचम लहराया।
सृष्टि सृजन का बीड़ा भी तूने उठाया।
पहले भी तू, कई मुश्किलों से सम्भला हैं,
माना कि रात लंबी और गहन अँधेरा हैं
पर हर रात के बाद होता भी सवेरा हैं
रख सोच तू सकारात्मक,ऊर्जा का करले संचय,
योग और आयुर्वेद को अपना करः स्वास्थ्य के प्रति हो जा सजग
"मास्क,सेनेटाइज और दो गज की दुरी
कुछ दिनों के लिये है जरूरी
कोरोना को देना है मात
तो वैक्सीन लगेगी हर हाथ"
संगीता दरक©
कोरोना काल में दिल में दर्द था तो कलम भी यही बंया करः रही
कैसी है ये अंतिम विदाई
ना जाने दौर ये कैसा आया,
ना अपनों का कांधा पाया,
ना तो कोई रस्म निभाई,
कैसी है ये अंतिम विदाई ।
जीवन के कुरुक्षेत्र में, कितने
किये प्रपंच
मृगतृष्णा में रहा दौड़ता ,
जीवन कसता तंज।
जोड़ा सब ,ना जुड़ा राम से,
कितना तू अज्ञान
ईश्वर सत्ता सर्व विदित है ,
मत कर तू अभिमान।
ना जाने दौर ये कैसा आया,
ना अपनों का कांधा पाया,
ना तो कोई रस्म निभाई,
कैसी है ये अंतिम विदाई... 🙏
✍️संगीता दरक©
ये कैसा विकास ,ये कैसी आधुनिकता हम क्या थे और क्या हो गए ,कभी सोचा हम कहाँ आ गए ।
पढ़िए दोस्तों और सोचिये जरूर
ये कहाँ आ गए हम........
अभी वर्तमान परिस्तिथियों को देखकर सोचती हूँ की हमें नाक और मुहँ ही ढकने है अगर आँखे ढकना पड़ जाये तो,,,,,,,,
ईश्वर न करे ऐसा दिन और परिस्तिथियां आये की हमे आँखे बंद करना पड़े।
पर सच में क्या हमने अपनी आँखे खोल रखी हैं।
हम इंसान अपने सामने किसी जीव को टिकने तक नही देते ,
हम धरती से आसमान तक अपनी ही सत्ता चाहते हैं ।
अरे एक छोटी सी चींटी के झुंड देखते ही हम लक्ष्मण रेखा चॉक ढूंढने लगते है
हम विकास के नाम पर फैलते जा रहे है बस अपनी सुख सुविधाओं से हमे मतलब है ,फिर चाहे वो मकान बनाने हो या हो सड़के बंनाने की हो बात पेड़ कट जाये चाहे खेत उजड़ जाये हम उनको नजरअंदाज करके सड़के बनाते है
हमे जीने के लिये हवा, खाने को भोजन पीने को पानी रहने को घर और ये हम सब जुटाते भी है प्रकृति से हमे धुप छाया बारिश सर्दी गर्मी सारे मौसम चाहिए ।हरेक मौसम समय पर आये ।हम भले ही इस प्रकृति के लिये कुछ करे न करे हमे सब चाहिए ।
विकास भी कम नही हुआ, इसको भी अनदेखा नही कर सकते हम निःसन्देह हम हरेक क्षेत्र में विकसित हुए ।
आज विज्ञानं ने बहुत तरक्की कर ली है हम मिनटों में कही भी पहुँच रहे ,कही भी ,किसी भी समय हो किसी से भी बात कर सकते है ।
और हम निकट भविष्य में इतना अधिक ज्ञान, विज्ञानं खोज लेगें की पुरानी सारी उपलब्धियां उसके सामने छोटी नजर आएगी
पर ये कैसी विकास की दौड़ जिसमे हमे पता ही नही की हम पाना क्या चाह रहे हैं ।
पेड़ो का कटना,प्रदूषण,परमाणुपरीक्षण और नष्ट होती भूमि की उर्वकता और खनिजों का दोहन और बढ़ती हुई जनसंख्या इतना सब हो रहा है और हम मूक बने विकास को जो (देख) रहे है। जीने के लिये हमें ज्यादा कुछ नही चाहिए , पर हमें थोड़ा पर्याप्त नही लगता।
हमे बहुत सारा चाहिये ,और इस बहुत सारे के चक्कर में हम खुद मिट रहे है
कहते है तृष्णा तो समुंदर के समान चौड़ाई और गहराई लिये होती हैं जिसका कोई पार नही होता।
आज हम इन परिस्तिथियों में पहुँचे हैं इसके जिम्मेदार हम स्वयं है प्रकृति का शोषण करते आये है हम
क्या हमें समझाने
के लिये प्राकृतिक आपदाएं जरूरी है आज के हालात भले ही प्राकृतिक आपदा न हो लेकिन क्या कोरोना को हमने नियंत्रण में रखा मेरा अभिप्रायः ये है कि हम कोरोना को लेकर गम्भीर क्यों नही हुए । क्यों हमे अपनी और दूसरों की जान की परवाह नही हैं
हवा ,पानी और भी कई खनिज सम्पदाएँ प्रकृति हमे बिना किसी शुल्क के प्रदान करती है निःस्वार्थ ,बस हमसे इतनी अपेक्षा रखती है कि हम प्रकृति के नियमो से छेड़छाड़ न करे ,लेकिनयहाँ तो इसकी फेहरिस्त तो बहुत लंबी है हम तो बस अपने स्वार्थ से गिरे अरे पृथ्वी का सबसे समझदार प्राणी मानव है ,और हम तो संग्रह और उपभोग में लगे है और इसके लिये जो करना पड़े वो सब करे जा रहे है
विकास देश का नही हमारे मन का संवेदनाओ का होना चाहिए,
भावनाओ सवेंदनाओ के कारण ही हम जानवरो से भिन्न है। वरना जी तो वो भी रहे है ।
प्राकृतिक आपदाएं आती है हम सहम जाते है ,थोड़े समय हम अपने पाप पुण्य का अवलोकन करते है ।
लेकिन फिर सब वही ,कब जागेंगे हम ऐसा नही की हमे वक्त रहते जगाया न हो ,जागृत लोगो की भी कमी नही है पर 100 में से 10 लोग जिन्होंने जगाने का बीड़ा उठाया है ।
कभी सोचा है ,जो सुख सुविधाओं से सम्पन्न जीवन हम जी रहे है वो कितनी मुसीबतों के बाद हमारे महापुरुषों ने हमे दिलाया है ।
देश को आजाद करवाया और कुरीतियों और प्रथाओं से मुक्त करवाया ।
और एक सशक्त देश जिसकी सनातन संस्कृति पर हम जितना गर्व करे उतना कम है
"ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का "आज भी हम इन पंक्तियों पर झूमते तो है, पर मतलब समझने को तैयार नही है ।
हम जैसे घर बसाते है वैसे देश बसाया
हमारे महापुरुष तो हमे हराभरा बाग सौंप कर गए हम अपने पीछे आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जायेंगे।
मुझे कहना पड़ रहा है क्यों की
धरती माँ तो कुछ बोलेगी नही आसमाँ भी कुछ कहेगा नही,
हम अपनी सफलताओं पर फुले नही समाते जँहा हमने चिकित्सा के क्षेत्र में इतना विकास किया वहाँ हमने इतनी सारी बीमारियों को भी न्योता दिया।
यहाँ पर मैं उपलब्धियों आविष्कारों के सद्पयोग दुरूपयोग की विवेचना नही कर रही हूँ।
आज हमें जो दाना ,पानी और हवा मिल रहा है वो अशुद्ध है ,
हम ये भागदौड़ जीने के लिये ही तो करः रहे है।
पाषाण युग में मानव जी रहा था उसके बाद मानव सभ्यता की श्रेणी में आया और मानव सभ्य हुआ ,
लेकिन क्या वो सभ्यता आज भी हमारे साथ है, आज मानवता कहा है ।
अभी भी हम जाग जाये तो कोई देर नही
क्यों हम भगवान की बनाई हुई सृष्टि को सुन्दर नही रख पा रहे अरे मानव जीवन को तो देवता भी तरसते है ।
क्यों हम उस टहनी को काट रहे है जिस पर हमने अपना घरौंदा बनाया है।
हमे किसी को नही सुधारना हमे पहल अपने आप से करना है उम्मीद करती हूँ मेरी कलम अपने उद्देश्य में सार्थक होगी
🙏🙏
कुछ पंक्तिया जिंदगी के दर्द को बयां करती हुई ...
जायका जिन्दिगी का तूने यूँ बदल दिया
रिश्तों में ना रही मिठास
त्योहारो में ना रही बात खास
केक और सेल्फी पर आकर सारा मामला अटक गया,
पहले वाला बचपन और प्यार
जाने कहा भटक गया।।
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान संगीता दरक माहेश्वरी